Recent Posts

मीडियॉकर लोग साहित्य में हावी होते जा रहे हैं

मुंबई के सुदूर उपनगर में आने वाला नायगांव थोडा-बहुत चर्चा में इसलिए रहता है है कि वहां टीवी धारावाहिकों के सेट लगे हुए हैं। स्टेशन के चारों ओर पेड हैं और झाडियों में झींगुर भरी दुपहरी भी आराम नहीं करते। लेखक निलय उपाध्याय कहते हैं कि ये नमक के ढूहे …

Read More »

साहित्य को श्रद्धा नहीं उसमें निहित सामाजिक प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण बनाती है

दिनेश्वर प्रसाद का निधन हो गया. वे हिंदी के एक प्राध्यापक थे, लेकिन मठाधीश नहीं. साहित्यसेवी थे. रांची में रहते थे. बरसों से फादर कामिल बुल्के के कोश को अपडेट करते रहते थे. उनको याद करते हुए विनीत कुमार ने बहुत आत्मीय ढंग से लिखा है- जानकी पुल.—————————————————- पटना से …

Read More »

मैं अज्ञेय जी से अभिभूत नहीं हूं

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘अपने-अपने अज्ञेय’ में १०० लेखकों के अज्ञेय से जुड़े संस्मरण हैं, जो अज्ञेय के व्यक्तित्व, उनके जीवन, उनके सरोकारों को समझने में मदद करते हैं. पुस्तक में अज्ञेय को लेकर आलोचनापरक लेख भी पर्याप्त हैं. दो खण्डों में प्रकाशित इस पुस्तक की बहुत …

Read More »