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कितने ही चाँद रोने लगे हैं सियारों की तरह

70 के दशक के आरम्भ में अशोक वाजपेयी सम्पादित ‘पहचान सीरीज’ ने जिन कवियों की पहचान बनाई थी दिविक रमेश उनमें एक थे. अर्सा हो गया. लेकिन दिविक रमेश आज भी सृजनरत हैं. अपने सरोकारों, विश्वासों के साथ. उनकी कविता का मुहावरा जरूर बदल गया है लेकिन समकालीनता से जुड़ाव …

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किनारे बैठी औरत धोती रहती है अपने शोक

हाल के दिनों में जिन कुछ कवियों की कविताओं ने मुझे प्रभावित किया है महेश वर्मा उनमें एक हैं. हिंदी heartland से दूर अंबिकापुर में रहने वाले इस कवि की कविताओं में ऐसा क्या है? वे इस बड़बोले समय में गुम्मे-सुम्मे कवि हैं, अतिकथन के दौर में मितकथन के. मार-तमाम …

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नीलाभ की महाभारत कथा

हाल के बरसों में नीलाभ की चर्चा अरुंधति रे से लेकर चिनुआ अचिबे के शानदार अनुवादक के रूप में रही है. लेकिन नीलाभ मूलतः एक गंभीर कवि और लेखक हैं. अभी हाल में ही उन्होंने महाभारत कथा को आम पाठकों के लिए तैयार किया है. ‘मायामहल’ और ‘धर्मयुद्ध’ के नाम …

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