आज सत्यानंद निरुपम जी ने फ़ेसबुक पर अनुपम मिश्र के इस लेख की याद दिलाई तो मुझे ‘जनसत्ता’ के वे दिन याद आ गए जब एडिट पेज पर हमने यह लेख प्रकाशित किया था, याद आई अशोक शास्त्री जी की जिनसे घंटों घंटों इस लेख को लेकर चर्चा होती थी। …
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