हिंदी में गंभीर विमर्श का माहौल खत्म होता जा रहा है, मर्यादाएं टूटती जा रही हैं. अभी कुछ दिन पहले वरिष्ठ कवि विष्णु खरे ने ‘कान्हा सान्निध्य‘ के सन्दर्भ में उसकी एक बानगी पेश की थी. आज उनके समर्थन में आग्नेय का यह पत्र ‘जनसत्ता‘ के ‘चौपाल‘ स्तंभ में प्रकाशित …
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