निवेदिता जी लेखिका, हैं कवयित्री हैं और समर्पित ऐक्टिविस्ट हैं। उनकी इस कहानी में समकालीन संदर्भों में विस्थापन के दर्द को समझिए। उन लोगों के दर्द को जिनका न परदेस बचा न देस- जानकी पुल। ========================= आसमान में बादल नहीं है। लू के नुकीले नाखूनों ने उसके पुरसुकुन चेहरे को …
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