ऐसे सुहाने मौसम में और नहीं कुछ तो पीयूष मिश्रा के गीतों को ही पढ़ा जाए. 90 के दशक में जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढता था तब इन गीतों को बारहा सुना. आज पढ़ के ही संतोष करते हैं. इन गीतों का कोई सम्बन्ध बरसात से नहीं है, शायद …
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