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Tag Archives: प्रवीण कमार झा

फांकी युग है और सब फांकीबाज़ हैं!

बहुत दिनों बाद प्रवीण झा अपने व्यंग्यावतार में प्रकट हुए हैं. इस बार एक नए युग की घोषणा कर रहे हैं- फांकी युग की. आइये पढ़िए- मॉडरेटर ================= फेसबुक के एक पोस्ट पर ‘लाइक’ गिन रहा था कि कवि कक्का का मेसैज आ गया। “आज फिर फांकिए?” गाँव गया था तो कक्का को ‘स्मार्ट-फ़ोन’ दे आया था। अब कक्का ‘व्हाट्स-ऐप्प’ करते हैं। मैनें फ़ोन घुमाया। “प्रणाम कक्का! कुछ गलती हो गयी?” “जीते रहो! लेकिन कुछ लिखो, तो पढ़ कर लिखो। आंकड़े लिखो। रिफ़रेंस दो। गप्प ही देना है तो आओ साथ भांग घोटते गप्प देंगें।” “कक्का! एक पत्रकार मित्र ने कहा लेख लिखो, तो लिख दिया।” “राम मिलाए जोड़ी। एक पत्रकार और एक फंटूसी डॉक्टर मिलकर अर्थव्यवस्था समझा रहे हैं। यहाँ भी वही, टी.वी. पर भी वही। सड़क सेपकड़ पैनल में बिठा लेते हैं। सब बेसिरपैर गप्प मारते हैं फांकीबाज!” “कक्का! अब मैं कौन सा टी.वी. पर बोल रहा हूँ? फ़ेसबुक पर ही तो…” “अच्छा! तो फ़ेसबुक है कि फांकीबुक?  तुम्हारी कोई गलती नहीं। यह युग ही ‘फांकी-युग’ है।।” “फांकी-युग? कक्का! यह ज्यादा हो गया। यह तो तकनीकी युग है। डिजिटल युग।” “तकनीकी युग तो बना ही फाँ…रने के लिए है।” कक्का की पीक थूकने की आवाज आई। “क्यों कक्का? तकनीक से सब आसान हो गया।” “तकनीक का आविष्कार ही हुआ कि मनुष्य फांकी मार सके। सब काम कम्पूटर करे, आदमी फूटानी मारे। टॉफ्लर का किताब सब पढ़ो।बूझाएगा। फ्यूचर शॉक पढ़ो फ्यूचर शॉक।” “अच्छा कक्का! अब ये भी बता दें कि आपका ये युग शुरू कब हुआ?” “1984 ई. में।” “अब यह क्या है कक्का?” “चौरासी! अड़तालीस का उल्टा चौरासी। ऐप्पल का कम्प्यूटर आया। ऐड्स का वायरस आया। नया वाला गाँधी आया। रूस में गोर्बाचोव चमका,अमरीका में रीगन। और वो गाना आया, प्यार प्यार प्यार, तोहफा तोहफा तोहफा….” “अाप और आपके तर्क। सब भांग का असर है कक्का। यह प्रगतिवादी युग है।” “किसका? हिंदी का? साठ में साफ हो गया।” “तो क्या 84 के बाद कुछ लिखा नहीं गया?” “लिखा तो गया, पर पढ़ा नहीं गया। सब फांकीबाज!” “ऐसे न कहिए कक्का। हाँ! हिंदुस्तान में अंग्रेजी का जमाना आया।” …

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