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Tag Archives: बाबुषा कोहली

आदम हुआ न आदम, हव्वा हुई न हव्वा — बाबुषा की कविताएँ

तुमने खेल-खेल में मेरा बनाया बालू का घर तोड़ दिया था, तुम इस बार फिर से बनाओ, मैं इस बार नहीं तोड़ूँगी। ग़लती थी मेरी, मैंने तोड़े थे। मैं तुम बनती जा रही थी। तुम धूप ही रहो, मैं छाँव ही रहूँ। तुम कठोर ही रहो, मैं कोमल ही रहूँ। …

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