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Tag Archives: लुगदी साहित्य

लोकप्रियता को कलात्मक-वैचारिक स्तर का पैमाना नहीं बनाया जा सकता

एक ज़माने में जिसको लुगदी साहित्य कहा जाता था आज वह लोकप्रिय साहित्य कहा जाता है। उसकी परम्परा पर वरिष्ठ कवयित्री कात्यायनी ने फ़ेसबुक वाल पर एक लम्बी टिप्पणी लिखी थी। आप भी पढ़ सकते हैं- मॉडरेटर ========================= फिल्मकार कोस्ता गावरास ने एक बार किसी साक्षात्कार के दौरान कहा था …

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‘पाप के दस्तावेज’ बनाम ‘पुण्य का साहित्य’

 ‘कादम्बिनी’ पत्रिका के दिसंबर अंक में गंभीर साहित्य बनाम लोकप्रिय साहित्य पर मेरा लेख प्रकाशित हुआ है. आपके लिए- प्रभात रंजन  =============================   हिंदी में सौभाग्य या दुर्भाग्य से गंभीरता को ही मूल्य मान लिया गया है. जबकि आरम्भ में यह मुद्रा थी. हिंदी गद्य के विकास में दोनों की …

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