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Tag Archives: सुरेश कुमार

पुत्री जनम मति देई विधाता

सुरेश कुमार नवजागरणकालीन स्त्री विषयक मुद्दों पर बहुत शोधपरक लिखते हैं। इस लेख में भी उन्होंने 1887 में प्रकाशित एक पुस्तिका की चर्चा के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि दहेज प्रथा उस समय कितनी विकराल समस्या बन चुकी थी। विस्तार से पढ़ने के लिए लेख पर …

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उन्नीसवीं शताब्दी का आख़िरी दशक, स्त्री शिक्षा और देसी विदेशी का सवाल

युवा शोधकर्ता सुरेश कुमार ने 19 वीं शताब्दी के आख़िरी दशकों तथा बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों के स्त्री साहित्य पर गहरा शोध किया है। हम उनके लेख पढ़ते सराहते रहे हैं। आज उनका लेख 19 वीं शताब्दी के आख़िरी दशकों में स्त्री शिक्षा को लेकर चल रही बहसों को …

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   घासलेटी आंदोलन :  ‘अबलाओं का इन्साफ’ और अश्लीलता

‘अबलाओं का इंसाफ़’ शीर्षक से एक किताब चाँद कार्यालय से 1927 में प्रकाशित हुआ था। क्या वह किसी पुरुष का लिखा था? बनारसीदास चतुर्वेदी ने ‘घासलेटी साहित्य’ नामक आंदोलन चलाया था। वह क्या था? नैतिकता-अनैतिकता के इस बड़े विवाद पर एक दिलचस्प लेख लिखा है युवा शोधकर्ता सुरेश कुमार ने। …

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भारतेंदु युग की लेखिका मल्लिका और उनका उपन्यास ‘सौंदर्यमयी’

 भारतेंदु युग की लेखिका मल्लिका को लेखिका कम भारतेंदु की प्रेमिका के रूप में अधिक दिखाया गया है। लेकिन युवा शोधार्थी सुरेश कुमार ने अपने इस लेख में मल्लिका के एक लगभग अपरिचित उपन्यास ‘सौंदर्यमयी’ के आधार पर यह दिखाया है कि बाल विवाह, विधवा विवाह जैसे ज्वलंत सवालों को …

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किताबों के विज्ञापन और हमारे मूर्धन्य लेखक

युवा शोधकर्ता सुरेश कुमार के कई लेख हम पढ़ चुके हैं। इस बार उन्होंने इस लेख में अनेक उदाहरणों के साथ यह बताया है कि आधुनिक हिंदी साहित्य के आधार स्तम्भ माने जाने वाले लेखक भी अपनी किताबों के प्रचार-प्रसार के ऊपर कितना ध्यान देते थे, चाहे भारतेंदु हरिश्चंद्र रहे …

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विवाह को ‘जीवन बीमा’ कहने वाली लेखिका प्रियंवदा देवी

  सुरेश कुमार हिंदी के नवजागरणकालीन साहित्य से जुड़े अछूते विषयों, भूले हुए लेखक-लेखिकाओं पर लिखते रहे हैं। आज स्त्री विमर्श की एक ऐसी लेखिका पर उन्होंने लिखा है जो महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। लेकिन उनकी चर्चा कम ही सुनाई दी। इस लेख में प्रियंवदा देवी नामक उस लेखिका …

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 जी. एस. पथिक : नवजागरण का स्त्री पक्ष

सुरेश कुमार युवा हैं, शोध छात्र हैं। इनको पढ़ते हुए, इनसे बातें करते हुए रोज़ कुछ नया सीखता हूँ। 19 वीं-20 वीं शताब्दी के साहित्य पर इनकी पकड़ से दंग रह जाता हूँ। फ़िलहाल यह लेख पढ़िए। स्त्री विमर्श पर एक नए नज़रिए के लिए लिखा गया है- मॉडरेटर ======= …

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केदारनाथ पाठक: हिन्दी नवजागरण दुर्ग के फाटक

यह लेख उस शख़्सियत पर है जिसकी हिंदी सेवा को भुला दिया गया। लिखा है सुरेश कुमार ने- ==================== सन् 2008 की बात है कि एम.ए. में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का द्वारा लिखित ‘हिन्दी साहित्य का  इतिहास’ पढ़ते  हुए केदारनाथ पाठक का नाम सुना था. मेरे मन उसी समय इनके संबंध में जानने की इच्छा हुई लेकिन कहीं जानकारी नहीं मिली. इधर, शोधकार्य करते समय नवजागरण कालीन हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की पुरानी फाइल देखते समय केदारनाथ पाठक का चित्र मिला. इसके बाद इनके संबंध में  जहां थोड़ी बहुत समाग्री मिली नोट करता गाया. यह लेख उसी समाग्री के आधार पर लिखा गया है. नवजागरण काल के इतिहास में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, राधाचरण गोस्वामी पंडित बदरीनारायण चैधरी ‘प्रेमघन’ और बाबू श्यामसुन्दर दास आदि विद्वानों ने हिन्दी साहित्य और भाषा को स्थापित करने में अमूल्य योगदान दिया है. नवजागरणकाल में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए दो तरह के दल सक्रिय थे. इनमें एक दल  लेखकों का था जिसने  नागरी भाषा में साहित्य का सृजन कर हिन्दी भाषा के प्रति जनता की ललक पैदा की. दूसरा दल हिन्दी सेवियों का था जिन्होंने हिन्दी  को जनमानस के बीच ले जाने का काम किया.                                                       (एक)    केदारनाथ पाठक नवजागरण काल के महान हिन्दी सेवी थे. इन्होंने नागरी भाषा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया था. केदारनाथ पाठक का जन्म सन् 1870 में मिर्जापुर में हुआ था. इनकी शिक्षा मिशनरी स्कूल में हुई थी. इनके पिता का नाम पीतांबर पाठक था. इनके पितामह गिरधारीलाल पाठक मेरठ से  प्रयाग में आकर बस गए थे. इसके बाद  जीविकोपार्जन के लिए काशी भी गए. काशी में कुछ दिन रहने  के बाद इनके पूर्वज मिर्जापुर में स्थाई रुप बस गए थे. केदारनाथ पाठक जब तीन साल के थे, तब इनके पिता का निधन हो गया था.  केदारनाथ पाठक का विवाह काशी के प्रतिष्ठित व्यक्ति छेदीलाल तिवारी की कन्या सरस्वती से हुआ था. गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारी के कारण पाठक जी मिर्जापुर की  जार्डिन फैक्टरी में काम करने लगे थे.  इस फैक्टरी का वातावरण इनके मन के अनुकूल न होने के कारण नौकरी छोड़ दी. इसके बाद हिन्दी के प्रतिष्ठत साहित्यकार पंडित बदरीनारायण के यहां ‘आनन्द कादंबिनी’प्रेस में काम करने लगे. जहां इनका परिचय हिन्दी के अनेक विद्वानों और  लेखकों से  हुआ. इन लेखकों की सोहबत में इनके मन में हिन्दी सेवा का बीज अंकुरित हुआ .   यह बड़ी दिलचस्प बात है कि केदारनाथ पाठक के यहां हिन्दी की प्रसिद्ध लेखिका बंग महिला के पिता रामप्रसन्न घोष किरायेदार बनकर रहते थे. सन् 1893 में केदारनाथ पाठक  इटावा चले गए. वहां इनकी मुलाकात प्रसिद्ध लेखक गदाधर सिंह से हुई. गदाधरसिंह की सहायता से इटावा में इन्हे गंगालहर के आफिस में नौकरी मिल गई. इस दौरान देवकीनंदन खत्री का उपन्यास ‘चन्द्रकान्ता’प्रकाशित होकर धूम मचा रहा था. सन् 1894 में केदारनाथ पाठक देवकीनंदन खत्री के उपन्यास ‘चन्द्रकान्ता’ की दिवानगी में इटावा छोड़कर काशी की तरफ चल दिए.                                                              (दो)    सन् 1893 में नागरी-प्रचारिणी सभा की स्थापना बनारस में होती है. नागरी-प्रचारिणी सभा ने सन् 1896 में हिन्दी  भाषा को अदालतों में लागू करने का प्रस्ताव ब्रिटिश हुकूमत को भेजने पर विचार किया जाता है. नागरी-प्रचारिणी सभा के सभापतियों ने यह तय किया कि पंडित मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार को ‘कोर्ट-केरेक्टर नागरी मेमोरियल  भेजा जाए. इस मेमोरियल पर जनता हिन्दी समर्थकों के हस्ताक्षर चाहिए थे. इस कार्य के लिए नागरी प्रचारिणी सभा को एक उपयुक्त व्यक्ति की तलाश थी. बाबू राधाकृष्ण दास ने केदारनाथ पाठक को इस काम के लिए उपयुक्त समझा. इस कठिन कार्य को पाठक जी ने अपने हाथ लेकर ‘कोर्ट-केरेक्टर नागरी मेमोरियल’पर दस्तखत करवाने के लिए निकल पड़े. आप कल्पना कर सकते हैं कि ब्रिटिश सरकार के चलते इस मेमोरियल पर दस्तखत करवाना केदारनाथ पाठक के लिय कितना कठिन कार्य रहा होगा. केदरारनाथ पाठक ‘हंस’ प 1931 में प्रकाशित अपने आत्मकथ्य मे लिखते हैं : ‘‘सन् 1896 में  काशी नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से, एक  प्रार्थना-पत्र पश्चिमो त्तर प्रदेश (वर्तमान में संयुक्तप्रांत)की सरकार के पास, इस आशय से भेजने के  लिए कि – हम लोग सरकार से देवनागरी जारी करने की प्रार्थना करते है. एक डेपुटेशन, प्रजा का हस्ताक्षर करने के लिए, वर्ष तक इस प्रान्त  भर में पर्यटन करता रहा.” इस मेमोरियल पर हस्ताक्षर करवाने  जब पाठक जी कानपुर पहुंचे तो इनकी मुलाकात हिन्दी के प्रसिद्ध सेवक और मर्चेन्ट प्रेस के मालिक बाबू सीताराम से हुई. सन 1885 में बाबू सीताराम ने  ‘भारतोदय’नामक एक  दैनिक पत्र निकाला था. इधर, राधाकृष्ण दास भारतेन्दु की स्मृति में एक पत्र निकालना चाह रहे थे. वे काफी प्रयास के बाद पत्र नहीं निकाल सके. तब ‘भारतोदय’के संपादक बाबू सीताराम ने राधाकृष्ण दास को एक पत्र. लिखा था. पाठक जी इस पत्र का उल्लेख ‘हंस में प्रकाशित अपने आत्मकथ्य में करते हैं. वह पत्र इस प्रकार है,-                                                       21 अप्रैल 1885 प्रिय मित्र, कुछ देखा –सुना? भारतोदय का जन्म जन्माष्टमी ही को है. यह नित्यमेव प्रकाश करेगा,केवल रविवार को नहीं . लो बस, लेखनी को सुधारों, कागज को उठाओ. लेखों की मरामारी से नागरी की इस क्यारी में तुम भी न्यारी ही कर लो. यह चार यारों राधाकृष्ण,चरण,प्रताप और राम की–चारयारी है. इसे बांटो अपने मान के गट्टे खोलो. लिखो, कहा तक लिखोगे. प्रिय यदि आज्ञा हो, तो इस निसहाय हिन्दू को ही प्रथम भारतोदय में ही प्रकाशित कर डाले. आपका अभिन्न सीताराम इस पत्र में चरण-राधाचरण गोस्वामी ,प्रताप- पडित प्रतापनरायण मिश्र और राम- सीताराम है. यह पत्र इस बात की गवाही देता है कि उस दौर में हिन्दी के लिए लेखक कितने समर्पित थे.   केदारनाथ पाठक ब्रिटिश सरकार के जुल्मों की परवाह किए बगैर कानपुर, लखनऊ, बलिया, गाजीपुर, गोरखपुर, इटावा, अलींगढ़, मेरठ, हरदोई, देहरादून, फैजाबाद आदि  इलाकों से मेमोरियल हस्ताक्षर प्राप्त कर नागरी प्रचारिणी के सभापतियों को सौंप दिया. बाबू श्यामसुन्दर दास अपनी आत्मकथा  ‘आत्मकहानी (1941 ) में केदारनाथ पाठक के योगदान के सम्बन्ध में लिखा है : ‘‘इस स्थान पर मैं पंडित केदारनाथ पाठक की सेवा का संक्षेप में उल्लेख करना चाहता हूं ये हिन्दी के बड़े पुराने भक्तों और सेवकों में थे. इन्होंने सभा के पुस्तकालय का कार्य अनेक वर्षो तक बड़ी लगन से किया है. ये सच्चे हृदय से सभा की शुभकामना करते थे. नागरी के आंदोलन के समय इन्होंने अनेक नगरों में घूमकर मेमोरियल पर सर्वसाधारण जनता के हस्ताक्षर प्राप्त किए थे और इस कार्य में उन्हें पुलिस की हिरासत में रहना पड़ा था. पाठक जी का परिचय बहुत से लेखकों से था. यदि वे अपने संस्मरण लिख जाते तो बड़े मनोरंजक होते.“   केदारनाथ पाठक ने नागरी प्रचारिणी सभा की बड़ी सेवा की थी. वे इसके प्रचार-प्रसार के लिए देश के भिन्न-भिन्न प्रांतों में जाकर नागरी प्रचारिणी सभा के कार्य के बारे में लोगों को बताते और हिन्दी पढ़ने के लिए लगातार लोगों को उत्साहित करते थे. केदारनाथ पाठक सभा का प्रचार करने के लिए जब बिहार पहुंचे वहां अयोध्यासिंह उपाध्याय के गुरु सुमेर सिंह इनकी हिन्दी सेवा से काफी प्रभावित हुए . शिवनंदन सहाय और गोपीकृष्ण को नागरी प्रचारिणी सभा का महत्व बताकर, केदारनाथ पाठक बांकीपुर  के प्रसिद्ध विद्वान काशीप्रसाद जायसवाल को हिन्दी साहित्य की …

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‘चाहे हमें कारतूस से मार दिया जाए लेकिन हम समाज की बुराई को लगातार उठाते रहेंगे’

सुरेश कुमार लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधार्थी हैं. उन्होंने नवजागरणकालीन पत्रकारिता पर लिखते हुए इस लेख में यह बताया है कि किस तरह पत्रकारिता के कारण उस ज़माने में हिंदी के बड़े बड़े लेखकों-संपादकों को धमकियाँ मिलती रहती थीं लेकिन वे डरते नहीं थे बल्कि अड़े रहते थे. समाज की बुराइयों …

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सुधीर चन्द्र की पुस्तक रख्माबाईः स्त्री अधिकार और कानून पर एक टिप्पणी

सुधीर चन्द्र की इतिहासपरक पुस्तक पर एक टिप्पणी युवा लेखक सुरेश कुमार की- मॉडरेटर ===========================================  प्रथम अध्याय में सुधीर चन्द्र ने  रख्माबाई के मुकदमे पर विचार  किया है। वे बहुत गहराई में जाकर इस मुकदमे जानकारी देते हैं । इस मुददमे पर आने से पहले  रख्माबाई के संबंध में जाना जाए। रख्माबाई जयन्तीबाई और …

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