मुशायरों के सबसे जीवंत शायरों में एक राहत इंदौरी का जाना एक बड़ा शून्य पैदा कर गया है। उनको याद करते हुए यह लेख लिखा है कवि-संपादक-कला समीक्षक राकेश श्रीमाल ने। राहत साहब को अंतिम प्रणाम के साथ पढ़िए- ========================= कितने सारे दृश्य स्मृति में एकाएक चहल-कदमी करने लगते हैं। …
Read More »नर्मदा, नाव के पाल और चित्रकार
लगभग बीस वर्ष पहले इंदौर के निकट नर्मदा किनारे बसे ग्राम पथराड में एक कला शिविर हुआ था। यह इस मायने में नवाचार लिए था कि इसके सूत्रधार युवा शिल्पी-चित्रकार सीरज सक्सेना चाहते थे कि नर्मदा में चलने वाली नावों के पाल पर चित्र बनाए जाएं। वरिष्ठ चित्रकार अखिलेश ने …
Read More »कविता शुक्रवार 6: शिरीष ढोबले की कविताएँ
इस बार ‘कविता शुक्रवार’ में अपनी अलग पहचान के कवि शिरीष ढोबले की नई कविताएं और प्रख्यात चित्रकार अखिलेश के रेखांकन। शिरीष ढोबले का जन्म इंदौर में 1960 में हुआ था। वे पेशे से ह्रदय शल्य चिकित्सक हैं। पूर्वग्रह पत्रिका की अनुषंग पुस्तिका में उनका कविता संग्रह ‘रेत है मेरा …
Read More »अखिलेश के उपन्यासों के केंद्र में बेदखल होता मनुष्य है
कल मैंने एक आत्ममुग्ध लेखिका का यह वक्तव्य पढ़ा कि अखिलेश का उपन्यास ‘निर्वासन’ हिट नहीं हुआ. मुझे हैरानी हुई कि क्या साहित्यिक कृतियाँ, गंभीर साहित्यिक कृतियाँ हिट या फ्लॉप होती हैं? क्या साहित्यिक कृतियों का मूल्यांकन इस तरह से किया जाना चाहिए? यह गंभीर बात है कि किस …
Read More »जे. स्वामीनाथन की कविताओं पर समकालीन चित्रकार अखिलेश का लेख
कल हमने महान चित्रकार जे. स्वामीनाथन की कवितायेँ पढ़ी थी. यह वादा किया था कि उनकी कविताओं पर समकालीन चित्रकला के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर अखिलेश का लेख हम आपके पढने के लिए प्रस्तुत करेंगे. यह बड़ा दुर्लभ संयोग है कि एक बड़े ‘रंगबाज’ की कविताओं पर एक समकालीन ‘रंगबाज'(चित्रकार के …
Read More »अखिलेश के पुरस्कृत उपन्यास ‘निर्वासन’ का अंश
नब्बे के दशक के आखिरी वर्षों में लेखन शुरू करने वाले लेखकों के लिए अखिलेश बतौर लेखक-संपादक एक प्रतिमान की तरह रहे हैं। खुद मेरी आरंभिक रचनाओं पर अखिलेश का प्रभाव रहा है। उनकी पत्रिका ‘तद्भव’ में मेरी कई कहानियाँ उस दौर में प्रकाशित हुई। हालांकि अब अखिलेश से संवाद …
Read More »क्या ये हिंदी की बेमिसाल प्रेम कहानियां हैं?
प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक हार्पर कॉलिंस ने जब हिंदी में पुस्तकों का प्रकाशन आरम्भ किया तो एक अनुवादक ढूंढा नीलाभ के रूप में और एक संपादक ढूंढा कथाकार कम संपादक अधिक अखिलेश के रूप में. सुनते हैं कि स्वभाव से ‘तद्भव’ संपादक को हार्पर कॉलिंस के सतत संपादक बनवाने में हिंदी …
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