सईद अयूब बहुत कल्पनाशील तरीके से पिछले कई सालों से साहित्यिक आयोजन करते रहे हैं. करीब एक महीने पहले जब उन्होंने बताया कि सीपी के एक रेस्तरां में पुरुषोत्तम अग्रवाल की कहानियों पर चर्चा करनी है तो लगा कि बात कुछ अधिक ही कल्पनाशील तो नहीं हो गई? लेकिन कल …
Read More »विचारोत्तेजक बात यही है कि हम अब भी विचार नहीं करते
हाल के दिनों में आभासी दुनिया और प्रिंट मीडिया में जो सबसे गंभीर साहित्यिक बहस चली है वह कवि कमलेश के ‘समास’ में प्रकाशित साक्षात्कार तथा उसमें आये एक तथाकथित विवादास्पद बयान को लेकर चली. यह कुछ ऐसी बहसों में से है जिसने हिंदी साहित्य के दो ध्रुवान्तों को स्पष्ट …
Read More »जो कम्यूनिस्ट नहीं है, उसे कम्यूनिस्ट विरोधी होने का हक है
‘कथादेश’ के जून 2013 के अंक में प्रसिद्ध लेखिका-आलोचिका अर्चना वर्मा का लेख प्रकाशित हुआ है ‘असहमति और विवाद की संस्कृति’ शीर्षक से. पिछले दिनों फेसबुक पर कवि कमलेश के सी.आई.ए. के सम्बन्ध में दिए गए एक बयान के सन्दर्भ में एक महाबहस चली, इस लेख में अर्चना वर्मा ने सुविचारित ढंग …
Read More »दोस्ती के रंग – यादवी के ढंग
प्रसिद्ध लेखिका अर्चना वर्मा का यह लेख राजेंद्र यादव की पुस्तक ‘स्वस्थ आदमी के बीमार विचार’ के सन्दर्भ में लिखा गया है- जानकी पुल. ======================== सुना है, राजेन्द्र जी से ही, कि महाभारत को मराठी में ‘यादवी’ कहते हैं और कुछ नंगई कुछ गुण्डई के अर्थ में ‘यादवी‘ मचा के रखना …
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