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Tag Archives: hareprakash upadhyay

हरे प्रकाश उपाध्याय की लम्बी कविता ‘खंडहर’

बड़ा जटिल समय है. समाज उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. एक बड़ा परिवर्तन घटित हो रहा है. हरेप्रकाश उपाध्याय की कविता ‘खंडहर’ उसी को समझने की एक जटिल कोशिश की तरह है- मॉडरेटर ========================================= खंडहर भयानक परिदृश्य है डरा रहा है कहीं कोई विलाप…. कोई चिल्ला रहा है …

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हरेप्रकाश उपाध्याय की टटकी कविताएं

हिंदी कविता के कई स्वर हैं. समकालीन कविता की कई आवाजें हैं. एक आवाज हरेप्रकाश उपाध्याय की भी है. उनकी कविताओं में वंचित समाज का नजरिया दिखाई देता है, भारत के उस समाज का विकास का इंजन जहाँ कभी पहुँच ही नहीं पाता है, जहाँ तक जाते जाते कई नदियाँ …

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मैं भारत में नहीं रहता हूं मैं अपने घर में रहता हूं

महीनों से चल रहे चुनावी चक्र से बोर हो गए हों,  राजनीतिक महाभारत से ध्यान हटाना चाहते हों तो कुछ अच्छी कविताएं पढ़ लीजिए. हरेप्रकाश उपाध्याय की हैं- जानकी पुल. ============================================== 1. जिन चीजों का मतलब नहीं होगा ……………… मैं भारत में नहीं रहता हूं मैं अपने घर में रहता …

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बदलते दौर की रूढ़ियों की पहचान

हिंदी प्रकाशन जगत की समस्त घटनाएं दिल्ली में ही नहीं होती हैं. कुछ अच्छी पुस्तकें केंद्र से दूर परिधि से भी छपती हैं. ऐसी ही एक पुस्तक ‘देह धरे को दंड’ की समीक्षा युवा लेखक हरेप्रकाश उपाध्याय ने की है. पुस्तक की लेखिका हैं प्रीति चौधरी. प्रकाशक हैं साहित्य भण्डार, …

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कोई हो जा सकता है अंधा, लंगड़ा, बहरा, बेघर या पागल…

युवा कवि-लेखक हरेप्रकाश उपाध्याय को अपने उपन्यास ‘बखेड़ापुर’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ का लखटकिया नवलेखन पुरस्कार मिला है। उपन्यास में बिहार के सामाजिक ताने बाने के बिखरने की बड़ी जीवंत कहानी कही गई। हरेप्रकाश को जानकी पुल की तरफ से बधाई देते हुए उनके उपन्यास का एक रोचक अंश पढ़ते …

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