अशोक महेश्वरी का यह लेख भारतीय भाषाओं में शिक्षा और आत्मनिर्भरता को लक्ष्य करके लिखा गया है। इस लेख में उन्होंने कई महत्वपूर्ण बिंदु उठाए हैं, जैसे यह कि बाजार की दृष्टि से भारतीय भाषाओं का आकलन किया ही नहीं गया। भारतीय भाषाओं के बीच आपसी आदान-प्रदान के माध्यम से …
Read More »हिंदी को नवजीवन कैसे मिले!
हिंदी दिवस आने वाला है। हिंदी की दशा दिशा को लेकर गम्भीर चर्चाएँ हो रही हैं। क्या खोया? क्या पाया? आज यह लेख पढ़िए जिसे लिखा है युवा लेखक और राजकमल प्रकाशन समूह के संपादकीय निदेशक सत्यानंद निरुपम ने। भाषा के अतीत-भविष्य, सम्पन्नता-विपन्नता को लेकर उन्होंने कुछ गम्भीर बिंदु उठाए हैं …
Read More »क्या हिंदी, हिंदी ढंग की हो गई है?
दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ने से लेकर पढ़ाने तक के अनुभवों को लेकर एक लेख कल दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ। तीस साल पहले कंप्लीट अंग्रेज़ीदां माहौल में दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस में हिंदी के विद्यार्थियों के लिए परीक्षा पास होने से बड़ी चुनौती अंग्रेजियत की परीक्षा पास होने की होती …
Read More »वनडे गेम बनकर रह गया है ‘हिंदी दिवस’
आज हिंदी दिवस पर सदानंद पॉल का आलेख. सदानंद जी कटिहार के पास एक कस्बे में हिंदी पढ़ाते हैं और आरटीआई एक्टिविस्ट हैं. बहुत मौलिक बातें लिखते हैं- मॉडरेटर _________________________________________________________ 1949 के 14 सितम्बर को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाया, इसलिए इस तिथि को ‘हिंदी …
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