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Tag Archives: kuldeep kaur

तुम्हें जानना दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत अर्थों को छूना है

आज प्रस्तुत हैं कुलदीप कौर की कविताएँ. प्रेम पर कुछ छोटी-छोटी मगर गहरी बातें. 1. तुम चलने को एक बिन्दू से दूसरे बिन्दू तक गिनते हो। मैं बीच में होती हूं कई बार ग़ैर हाज़िर। तुम्हारा कहना सही है के मैं हो कर भी नहीं होती… बिल्कुल जैसे मैं सब …

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