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रूह संग खिल कर मैत्रेय की, सखि री मैं तो बादल हुई

यात्राएँ सिर्फ़ भौतिक नहीं होती हैं रूह की भी होती हैं। रचना भोला यामिनी को पढ़ते हुए यह अहसास होता है। पढ़िए लेह यात्रा पर उनका संस्मरण- मॉडरेटर ====================== हे मैत्रेय !… सफ़र सफ़र मिरे क़दमों से जगमगाया हुआ तरफ़ तरफ़ है मिरी ख़ाक-ए-जुस्तुजू रौशन                                              -सुल्तान अख़्तर यात्राएँ कभी …

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