आजकल ऐसा फील गुड माहौल है कि कोई कुछ भी लिख दे कोई उसकी परवाह नहीं करता. पत्रकारिता के नाम पर जमकर पीआर किया जा रहा है किसी को कोई परवाह नहीं. ऐसे में पत्रकारिता में पीएचडी, गंभीर अध्येता और मीडियाकर्मी अरविन्द दास की यह टिपण्णी पढ़िए. देखिये कि वे …
Read More »‘किल्ला’ देखना जैसे किसी रूठे जिगरी दोस्त से अंतराल के बाद मिलना!
26 जून को देश-विदेश के फिल्म समारोहों में धूम मचा चुकी अविनाश अरुण की मराठी फिल्म ‘किल्ला’ रीलिज हो रही है. फिल्म के ऊपर बहुत सम्मोहक लेख लिखा है मिहिर पंड्या ने. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ========== हर रचनाकार को आत्मकथा लिखना नसीब नहीं होता। लेकिन इनमें बहुत ऐसे भी …
Read More »‘कोर्ट’ : भारतीय सिनेमा का उजला चेहरा
सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म ‘कोर्ट’ हो और प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक मिहिर पंड्या की लेखनी हो तो कुछ कहने को नहीं रह जाता है, बस पढने को रह जाता है- मॉडरेटर ==================================================== जब मुझसे साल दो हज़ार चौदह में देखी गई सर्वश्रेष्ठ हिन्दुस्तानी फ़िल्मों के नाम पूछे गए …
Read More »सोशल मीडिया की ताकत और सिनेमा
युवा लेखक मिहिर पंड्या फिल्मों पर बहुत तैयारी के साथ लिखते हैं. हमेशा कोशिश करते हैं कि कुछ नया कहा जाए. इसलिए उनका लिखा अलग से दिखाई देता है, अलग सा दिखाई देता है. मिसाल के लिए सोशल मीडिया और सिनेमा के रिश्तों को लेकर लिखे गए उनके इस आलेख …
Read More »एक नयी शुरूआत का तुमुल नाद है
युवा लेखक मिहिर पंड्या की पुस्तक “शहर और सिनेमा:वाया दिल्ली” की काफी चर्चा रही. उसी पुस्तक पर प्रसिद्ध लेखक स्वयंप्रकाश ने यह टिप्पणी लिखी है- जानकी पुल. ================================================= “शहर और सिनेमा:वाया दिल्ली” युवा फिल्म समीक्षक मिहिर पंड्या की पहली किताब है. इसके पीछे विचार यह है की हिंदी सिनेमा में दिखाए …
Read More »‘आज का व्यावसायिक हिंदी सिनेमा एक उत्पाद है’
हाल के दिनों में सिनेमा पर गंभीरता से लिखने वाले जिस युवा ने सबसे अधिक ध्यान खींचा है वह मिहिर पंड्या है. मिहिर पंड्या ने यह लेख ‘कथन’ पत्रिका द्वारा भूमंडलीकरण और सिनेमा विषय पर आयोजित परिचर्चा के लिए लिखा है. समकालीन सिनेमा को समझने के लिए मुझे एक ज़रूरी …
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