मोहन राणा हिंदी के आप्रवासी कवि हैं, लेकिन उनकी कविताओं में भारत आकुलता की कोई व्यग्रता नहीं है. उनमें कोई अतीत्मोह भी नहीं है. बल्कि वे अपनी कविताओं के माध्यम से एक ऐसा सार्वभौम रचते हैं, जिसमें रिक्तता है, समकालीन मनुष्य का खालीपन है, वह बेचैनी है जो आज के …
Read More »उनका अकेलापन मेरा एकांत है
आज मोहन राणा की कविताएँ. विस्थापन की पीड़ा है उनकी कविताओं में और वह अकेलापन जो शायद इंसान की नियति है- कहाँ गुम हो या शायद मैं ही खोया हूँ शहर के किस कोने में कहाँ दो पैरों बराबर जमीन पर वो भी अपनी नहीं है दो पैरों बराबर जमीन …
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