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Tag Archives: om thanvi

तात, बंधु, सखा, चिर सहचर

प्रभाष जोशी आज होते तो ७५ साल के होते. ओम थानवी का यह लेख ‘जनसत्ता’ और प्रभाष जोशी के संबंधों को लेकर ही नहीं पत्रकारिता की उस परंपरा की भी याद दिलाती है, जो बाजार के चमक-दमक के इस दौर में भी अपनी जिद पर कायम है. ‘जनसत्ता’ में आज …

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सत्यजित राय का ‘सिक्किम’

 आज ‘जनसत्ता’ में संपादक ओम थानवी ने ‘अनंतर’ में ‘एक खोई-पाई फिल्म’ शीर्षक से सत्यजित राय की एक दुर्लभ डॉक्यूमेंट्री ‘सिक्किम’ पर लिखा है. ‘सिक्किम’ के खोने-पाने की यह कहानी आपसे साझा कर रहा हूं- जानकी पुल. —————————————–  कोई रश्क करे न करे, मुझे इस बात का फख्र होता है …

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अपनी निंदा छापने के लिए साहस चाहिए

आज जनसत्ता में अपने ‘कभी-कभार’ छपने वाले स्तंभ ‘अनंतर’ में संपादक ओम थानवी ने उस बहस पर अपनी तरफ से पटाक्षेप कर दिया जो मंगलेश डबराल के इण्डिया पॉलिसी फाउन्डेशन के कार्यक्रम में जाने से शुरु हुआ था. हाल के वर्षों में किसी पत्र-पत्रिका में चली यह सबसे जनतांत्रिक बहस …

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आवाजाही के हक में

आज ‘जनसत्ता’ के संपादक ओम थानवी ने ‘अनंतर’ में  इंटरनेट माध्यम पर चली कुछ बहसों के माध्यम से इस माध्यम पर एक विचारपरक लेख लिखा है. आपसे साझा कर रहा हूं- जानकी पुल. ———————————————————————————— इंटरनेट बतरस का एक लोकप्रिय माध्यम बन गया है। घर-परिवार से लेकर दुनिया-जहान के मसलों पर …

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मैं अज्ञेय जी से अभिभूत नहीं हूं

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘अपने-अपने अज्ञेय’ में १०० लेखकों के अज्ञेय से जुड़े संस्मरण हैं, जो अज्ञेय के व्यक्तित्व, उनके जीवन, उनके सरोकारों को समझने में मदद करते हैं. पुस्तक में अज्ञेय को लेकर आलोचनापरक लेख भी पर्याप्त हैं. दो खण्डों में प्रकाशित इस पुस्तक की बहुत …

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अज्ञेय अपने दौर के सबसे बड़े कवि थे- नामवर सिंह

ओम थानवी (बाएं) द्वारा संपादित ‘अपने अपने अज्ञेय’ के परिवर्धित संस्करण (दो भाग) का लोकार्पण करते हुए डॉ नामवर सिंह. साथ में हैं कुंवर नारायण और अशोक वाजपेयी  हमारी भाषा के मूर्धन्य आलोचक नामवर सिंह ने कहा है कि अज्ञेय अपने दौर के सबसे बड़े कवि थे, कि ‘शेखर: एक …

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स्मृतियों में ठहरे अज्ञेय

कोलकाता में ‘अपने अपने अज्ञेय’ का लोकार्पण  अज्ञेय की जन्मशताब्दी के साल उनकी रचनात्मकता के मूल्यांकन-पुनर्मूल्यांकन का दौर चलता रहा. कई किताबें आई, कई इस पुस्तक मेले में आ रही हैं. लेकिन वरिष्ठ संपादक, सजग भाषाविद ओम थानवी सम्पादित पुस्तक ‘अपने-अपने अज्ञेय’ अलग तरह की है. पुस्तक से पता चलता …

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सभ्यता की सुबह में इतिहास की सैर

वरिष्ठ संपादक-लेखक ओम थानवी ने ‘मुअनजोदड़ो’ लिखी भले यात्रा-वृतांत की शैली में है लेकिन पुस्तक में एक इतिहासकार-सी सजगता भी है, पुरात्वेत्ता-सी बारीकी भी और एक कलाकार की कल्पनाशीलता भी. लेखक-कवि-पत्रकार प्रियदर्शन का यह लेख इसी पुस्तक को समझने-समझाने का एक सुन्दर प्रयास है- जानकी पुल. ओम थानवी की ख्याति …

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संस्कृति का तीर्थ है ‘मुअनजोदड़ो’

इतिहासकार नयनजोत लाहिड़ी ने अपनी पुस्तक ‘विस्मृत नगरों की खोज’ में लिखा है कि १९२४ की शरद ऋतु में पुरातत्ववेत्ता जॉन मार्शल ने एक ऐसी घोषणा की, जिसने दक्षिण एशिया की पुरातनता की उस समय की सारी अवधारणाओं को चमत्कारिक ढंग से परिवर्तित कर दिया: यह घोषणा थी ‘सिंधु घाटी …

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ज़िम्मेदारी की पत्रकारिता में बाज़ार बाद में आता है

‘जनसत्ता’ के संपादक ओम थानवी हमारे दौर के सबसे सजग और बौद्धिक संपादक है. उनके लिए पत्रकारिता ऐसा प्रोफेशन है जिसमें मिशन का भाव पीछे नहीं छूटता. पत्रकारिता को वे केवल व्यवसाय नहीं बल्कि सामाजिक ज़िम्मेदारी के तौर पर देखते हैं. आइये उनसे अनूप कुमार तिवारी की यह विचारोत्तेजक बातचीत …

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