‘आजादी मेरा ब्रांड’– कायदे से मुझे इस किताब पर जनवरी में ही लिखना चाहिए था. जनवरी में विश्व पुस्तक मेले में जब इस किताब का विमोचन हुआ था तब मैं उस कार्यक्रम में गया था. संपादक सत्यानंद निरुपम जी ने आदरपूर्वक बुलाया था. कार्यक्रम में इस किताब पर रवीश कुमार …
Read More »‘पापा, डायवोर्स क्या होता है?’
यह मेरी नई लिखी जा रही किताब का एक अंश है. पढ़कर राय दीजियेगा- प्रभात रंजन ============================================================ डायवोर्स ‘पापा, डायवोर्स क्या होता है?’ किसने बताया? मम्मा ने?’ ‘हाँ, लेकिन क्या होता है?’ ‘जब दो लोग साथ नहीं रहते हैं!’ ‘डायवोर्स क्या इंसानों में ही होता है?’ ‘हूँ…’ ‘जैसे रात आने …
Read More »प्रेम बिना हिंदी सूना
कल प्रभात खबर में मेरी एक छोटी-सी टिप्पणी आई थी. पढ़कर बताइयेगा- प्रभात रंजन ======================================================= आज ही एक अखबार के लिए साल भर की किताबों का लेखा-जोखा लिख रहे मित्र ने फोन पर पूछा कि इस साल कोई बढ़िया प्रेम-उपन्यास आया है? ‘हाँ, ओरहान पामुक का उपन्यास ‘ए स्ट्रेंजनेस इन …
Read More »अनुवादक का कोई चेहरा नहीं
हिंदी में अनुवाद और अनुवादक की स्थिति पर यह एक छोटा-सा लेख आज ‘प्रभात खबर’ में आया है- प्रभात रंजन ========= अनुवाद तो बिकता है अनुवादक का कोई चेहरा नहीं होता- एक पुराने अनुवादक के इस दर्द को समझना आसान नहीं है. यह सच्चाई है कि हिंदी में चाहे साहित्य …
Read More »स्त्री-लेखन में नयापन नहीं है?
आज ‘प्रभात खबर’ में मेरा एक छोटा-सा लेख आया है. उसका थोड़ा सा बदला हुआ रूप- प्रभात रंजन ================================================================= अभी हाल में एक वरिष्ठ आलोचक महोदय से बात हो रही थी तो कहने लगे कि स्त्री लेखन में कोई नयापन नहीं दिखाई दे रहा है. इस समय हिंदी में युवा …
Read More »‘पाप के दस्तावेज’ बनाम ‘पुण्य का साहित्य’
‘कादम्बिनी’ पत्रिका के दिसंबर अंक में गंभीर साहित्य बनाम लोकप्रिय साहित्य पर मेरा लेख प्रकाशित हुआ है. आपके लिए- प्रभात रंजन ============================= हिंदी में सौभाग्य या दुर्भाग्य से गंभीरता को ही मूल्य मान लिया गया है. जबकि आरम्भ में यह मुद्रा थी. हिंदी गद्य के विकास में दोनों की …
Read More »या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता!
विजयादशमी के बहाने एक लेख लिखा है- प्रभात रंजन ===================================== ब्रिटिश लेखिका एलिस एल्बिनिया ने कुछ साल पहले महाभारत की कथा को आधुनिक सन्दर्भ देते हुए एक उपन्यास लिखा था ‘द लीलाज बुक’, इसमें समकालीन जीवन सन्दर्भों में संस्कृति-परम्परा की छवियों को देखने की एक मजेदार कोशिश की गई है. …
Read More »वो हमसफ़र था मगर उससे हमनवाई न थी
इधर मैंने कुछ कहानियां ऐसी लिखी हैं जो किसी गीत-ग़ज़ल से जुडती हैं, उन कहानियों में बैकग्राउंड म्यूजिक की तरह से ग़ज़ल चलती रहती है. उस श्रृंखला की एक कहानी आपकी राय के लिए- प्रभात रंजन ================== वो हमसफ़र था मगर उससे हमनवाई न थी कि धूप छाँव का आलम …
Read More »डिजिटल दुनिया में बड़ी होती हिंदी की बिंदी
आज ‘प्रभात खबर’ में डिजिटल दुनिया में हिंदी के मजबूती से बढ़ते कदम पर मेरा यह लेख प्रकाशित हुआ है. आप लोग भी पढ़कर बताइयेगा- प्रभात रंजन ========================================= हाल में ही प्रधानमंत्री ने विश्व हिंदी सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए जब यह बात कही कि डिजिटल विश्व में तीन भाषाएँ …
Read More »मेरी नई कहानी ‘यार को मैंने जाबजा देखा…’
आज अपनी ही नई कहानी प्रस्तुत कर रहा हूँ जो एक कथा श्रृंखला का हिस्सा है- प्रभात रंजन =============================================================== यार को मैंने जाबजा देखा प्रभात रंजनउसकी बायीं आँख के ठीक नीचे कटे का निशान था. बड़ा-सा. चेहरे में सबसे पहले वही दिखाई देता था. ‘तीन टाँके लगे थे’, उसने बताया था. देखने में दो …
Read More »