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Tag Archives: pratyaksha

‘पारा-पारा’ पर यतीश कुमार की काव्यात्मक टिप्पणी

यतीश कुमार अर्से बाद अपनी काव्यात्मक टिप्पणी के साथ लौटे हैं। इस बार उनको चुना है प्रत्यक्षा के उपन्यास ‘पारा-पारा’ ने। यह उपन्यास राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है- ========================   1. समय की टहनी पर टंगा चाँद निहारता है मुझे और अपनी ही छाया की गिरफ़्त में छटपटाती हूँ मैं …

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प्रत्यक्षा की किताब ‘ग्लोब के बाहर लड़की’ की समीक्षा

प्रत्यक्षा की किताब ‘ग्लोब के बाहर लड़की’ पर यह विस्तृत लेख लिखा है अदिति भारद्वाज ने। यह किताब राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है। अदिति दिल्ली विश्वविद्यालय से विभाजन-साहित्य और उत्तर-औपनिवेशिकता पर शोध कर रही हैं। पत्र-पत्रिकाओं, वेबसाइट्स पर नियमित लेखन करती हैं। आप उनका लिखा यह लेख पढ़िए- ========================================== जिस …

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स्त्री विमर्श सबसे ज़्यादा गलत समझा जाने वाला शब्द है

पिछले कुछ महीनों में ‘बिंदिया’ पत्रिका ने अपनी साहित्यिक प्रस्तुतियों से ध्यान खींचा है. जैसे कि नवम्बर अंक में प्रकाशित परिचर्चा जो कुछ समय पहले वरिष्ठ लेखिका मैत्रेयी पुष्पा द्वारा ‘जनसत्ता’ में लिखे गए उस लेख के सन्दर्भ में है जिसमें उन्होंने समकालीन लेखिकाओं के लेखन को लेकर अपनी असहमतियां-आपत्तियां दर्ज की थी. उनके …

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प्रत्यक्षा की कहानी ‘कूचाए नीमकश’

समकालीन जीवन सन्दर्भों को कहानियों में बखूबी उतरने वाली प्रत्यक्षा का नाम लेखिकाओं में प्रमुखता से लिया जाता है. अभी हाल में ही उनका नया कहानी संग्रह हार्पर कॉलिंस से  आया है ‘पहर दोपहर ठुमरी’. उसी संग्रह से एक कहानी- जानकी पुल. दरख़्त के सुर्ख पत्ते अचानक आये हवा के …

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