विनोद मेहता का जाना पत्रकारिता के एक मजबूत स्तम्भ का ढह जाना है. उस स्तम्भ का जिसके लिए पत्रकारिता एक मूल्य था, सामाजिक जिम्मेदारी थी. उनकी आत्मकथात्मक पुस्तक ‘लखनऊ बॉय’ के बहाने उनकी पत्रकारिता का बेहतर मूल्यांकन किया है जाने-माने लेखक प्रेमपाल शर्मा ने- मॉडरेटर ============================================================ 1941 में मौजूदा पाकिस्तान …
Read More »क्या है जर्मन-संस्कृत विवाद?
केन्द्रीय सेवाओं में हिंदी के उचित महत्व के मुद्दे पर प्रेमपाल शर्मा के तर्कों के हम सब कायल रहे हैं. केन्द्रीय विद्यालयों में जब जर्मन भाषा के स्थान पर संस्कृत पढ़ाने का मसला आया तो यह जरूरी लगा कि त्रिभाषा फ़ॉर्मूला और विदेशी भाषाओं के सन्दर्भ को समझा जाए. देखिये, …
Read More »क्या सचमुच अच्छे अनुवादक नहीं हैं?
सी-सैट को समाप्त करने के लिए युवाओं के आन्दोलन के पीछे एक बड़ा तर्क अनुवाद के सम्बन्ध में दिया जा रहा है. जिस तरह की भाषा में प्रश्न पत्र का अनुवाद हो रहा है उसे खुद अनुवादक कैसे समझ लेता है यह दिलचस्प है. बहरहाल, इसी प्रसंग को ध्यान में …
Read More »प्रशासनिक सेवाओं में भारतीय भाषाओं के साथ सौतेला व्यवहार क्यों?
यूपीएससी की परीक्षाओं में भारतीय भाषाओं के साथ भेदभाव को लेकर चल रहे आन्दोलन पर सरकारी आश्वासन एक बाद फिलहाल विराम लग गया. लेकिन अखिल भारतीय सेवाओं में भारतीय भाषाओं के साथ भेदभाव का इतिहास पुराना है. वरिष्ठ लेखक, शिक्षाविद प्रेमपाल शर्मा के इस लेख को पढ़कर उस भेदभाव का इतिहास समझ …
Read More »आम चुनाव में शिक्षा सुधार मुद्दा क्यों नहीं?
वरिष्ठ शिक्षाविद प्रेमपाल शर्मा ने शिक्षा को लेकर राजनीतिक पार्टियों, ख़ासकर ‘आप’ से अपील की है. उनका यह सवाल महत्वपूर्ण है कि चुनावों में शिक्षा कोई मुद्दा क्यों नहीं बन पाता है? इससे शिक्षा कोलेकर प्रेमपाल जी के सरोकारों का भी पता चलता है- जानकी पुल ================================= ‘आप’ से …
Read More »राजेन्द्र जी दिल्ली के दादा थे
वरिष्ठ लेखक-शिक्षाविद प्रेमपाल शर्मा ने राजेंद्र यादव पर डायरी के शिल्प में बेहद आत्मीय ढंग से लिखा है, लेकिन ‘प्रार्थना के शिल्प में नहीं’, बल्कि सम्यक मूल्यांकन के एक प्रयास की तरह. आप भी पढ़िए- जानकी पुल. =============== डायरी : 2/11/13 राजेन्द्र यादव : बहुत याद आएंगे ! आज …
Read More »दौलत सिंह कोठारी को क्यों याद किया जाना चाहिए?
भाषा के मसले पर वर्ष 2013 की शुरूआत बड़ी विस्फोटक रही। कोठारी कमेटी की सिफारिशों के अनुसार वर्ष 1979 से चली आ रही सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय भाषाओं को इस वर्ष के शुरू में लगभग बाहर का रास्ता दिखा दिया था । तसल्ली की बात यह है कि इस …
Read More »जाति मुक्ति इसी रास्ते से संभव है
प्रेमपाल शर्मा संवेदनशील लेखक हैं औ अपने विचार निर्भीकता से रखने के लिए जाने जाते हैं. आज जाति व्यवस्था पर उनका यह लेख पढ़िए- जानकी पुल. ================================ आखिर गलती कहॉं हुई ? मेरा मन पिछले कुछ बरसों से बार-बार स्वयं को टटोल रहा है । सरकारी दफ्तर …
Read More »पालतू आदमी कुछ भी हो सकता है लेखक नहीं!
28 अक्तूबर के जनसत्ता में अशोक वाजपेयी जी ने सार्वजनिक रूप से साहित्य निधि बनाने की घोषणा की है। वे नाम भी गिनाये हैं जो उनके साथ हैं। लेकिन सत्ता, प्रतिष्ठान, पीठ, पुरस्कार से इतर या शामिल बहुसंख्यक लेखकों का ऐसे कुबेर कोष के प्रति क्या नजरिया है इस बहस …
Read More »भारत रत्न का अगला कोई हकदार है तो वर्गीज कुरियन
श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन को लेकर श्रद्धांजलियों का दौर थम चुका है. उनके योगदान का मूल्यांकन करते हुए उनके महत्व को रेखांकित कर रहे हैं प्रेमपाल शर्मा– जानकी पुल. ================================================= अमूल के अमूल्य जनक वर्गीज कुरियन नहीं रहे । रेलवे कॉलिज बड़ौदा के दिनों में उनका कई बार …
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