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Tag Archives: vineet kumar

‘हिन्दी को नहीं, फ़र्क़ हमें पड़ता है’

कल दिनांक 12 सितम्बर को इंडिया हैबिटेट सेंटर में ‘सभा’ का आयोजन हुआ जिसमें ‘हिंदी को फ़र्क़ पड़ता है’ विषय पर चर्चा का आयोजन किया गया। ‘सभा’ राजकमल प्रकाशन समूह और इंडिया हैबिटेट सेंटर की साझा पहल के तहत विचार-बैठकी की मासिक शृंखला है। इसके तहत हर महीने साहित्य, संस्कृति, …

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मन्नू भंडारी का रचना पाठ सुनने का एक दुर्लभ मौका मत चूकिए

‘मुक्तांगन’ का यह तीसरा आयोजन है. दिल्ली के केन्द्रों में आयोजित होने वाले एक से आयोजनों की ऊब को दूर करने के उद्देश्य से बिजवासन के उषा फार्म्स में शुरू किया गया यह आयोजन अपनी स्थायी जगह बनाता जा रहा है. हर महीने इसका इन्तजार रहता है… कि इस बार …

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विनीत कुमार की ट्विटर कहानियां

‘लप्रेक’ के आरंभिक लेखकों में रहे विनीत कुमार ने कहानी 140 में उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया और उसके एक विजेताओं में भी रहे. आज उनकी कुछ ट्विटर कहानियां- जानकी पुल. ===================================================== 1. नहीं, आज रत्तीभर भी अपने भीतर जीके1 लेकर नहीं जाएगी और उसका ढेर सारा यमुना पार लेकर लौटेगी. आज उससे …

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वे मेरे भाई-दोस्त नहीं,सिर्फ रामभक्त थे

छह दिसंबर की तारीख एक ऐसे दुस्स्वप्न की तरह है जो हमारी स्मृतियों में टंगा रह गया है. विनीत कुमार याद कर रहे हैं छह दिसंबर १९९२ की उस सुबह को जिसने हिन्दुस्तान की तारीख बदल दी, कुछ-कुछ हम सबकी भी- जानकी पुल. =============================== 6 दिसंबर की सुबह. बिहारशरीफ, मेरे …

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आप किस मीडिया में नैतिकता की छानबीन कर रहे हैं हरिवंशजी ?

कल वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश का लेख आया था मीडिया की नैतिकता पर. युवा लेखक विनीत कुमार का यह लेख उसी लेख के कुछ सन्दर्भों को लेकर एक व्यापक बहस की मांग करता है- जानकी पुल. ==== ==== हरिवंशजी, आपके लेख “मीडिया को अपनी लक्ष्मण रेखा का एहसास नहीं” पर असहमति …

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वे व्यवस्थित और कलात्मक ढंग से हिन्दी का नाश करते हैं

युवा विमर्शकार, ब्लॉगर विनीत कुमार का यह लेख इस सवाल के जवाब से शुरु हुआ कि आखिर हिंदी के भविष्य को लेकर किए जाने वाले आयोजनों में युवा लेखकों को क्यों नहीं बुलाया जाता है, लेकिन उन्होंने बड़े विस्तार से हिंदी के वर्तमान परिदृश्य और युवा लेखन के अपने अंतर्विरोधों …

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क्या सवाल सचमुच किसी लेखक के इलाज कराने और उन्हें बचाने भर का है?

अशोक वाजपेयी ने अपने स्तंभ ‘कभी-कभार’ में कल लेखकों की मदद के लिए एक कल्याण कोष बनाये जाने की अपील की है. अपील तो उन्होंने वरिष्ठ लेखकों से की थी लेकिन प्रथम प्रतिक्रियास्वरूप युवा लेखक विनीत कुमार ने अपनी पहली प्रकाशित पुस्तक ‘मंडी में मीडिया’ की रायल्टी इस मद में …

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कुछ भी ठोस नहीं रहता, सब पिघलता जा रहा है

युवा मीडिया समीक्षक विनीत कुमार की पुस्तक ‘मंडी में मीडिया’ की यह समीक्षा मैंने लिखी है. आज ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित हुई है- प्रभात रंजन ================================ जब युवा मीडिया विमर्शकार विनीत कुमार यह लिखते हैं कि ‘मेरे लिए मीडिया का मतलब इलेक्ट्रानिक मीडिया ही रहा है’, तो वास्तव में वे इस …

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उत्तर-आधुनिक परिदृश्य में प्रो-एक्टिव विवेक

गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु सुधीश पचौरी की याद आई तो युवा विमर्शकार विनीत कुमार के इस लेख की भी जो उन्होंने पचौरी साहब की आलोचना पर लिखी है. संभवतः उनकी आलोचना पर इतनी गंभीरता से लिखा गया यह पहला ही लेख है. यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी पत्रिका …

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विज्ञापन के लिए टीवी स्क्रीन रियल इस्टेट है!

हाल में ही विनीत कुमार की पुस्तक आई है ‘मंडी में मीडिया’. टेलीविजन मीडिया को लेकर इतनी शोधपूर्ण पुस्तक हिंदी में अरसे बाद आई है. विकास के सपने को लेकर शुरु हुआ टेलीविजन मीडिया किस तरह बाजार की चकाचौंध में खोता जा रहा है, समाचार चैनेल्स किस तरह मनोरंजन के …

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