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Tag Archives: shaharyar

तुझसे मैं मिलता रहूँगा ख़्वाब में

कल हरदिल अज़ीज़ शायर शहरयार का इंतकाल हो गया. उनकी स्मृति को प्रणाम. प्रस्तुत है उनसे बातचीत पर आधारित यह लेख, जो अभी तक अप्रकाशित था. त्रिपुरारि की यह बातचीत शहरयार के अंदाज़, उनकी शायरी के कुछ अनजान पहलुओं से हमें रूबरू करवाती है – मॉडरेटर ======================================================   वो सुबह बहुत हसीन …

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दुश्मन-दोस्त सभी कहते हैं, बदला नहीं हूँ मैं

आज मशहूर शायर शहरयार को अमिताभ बच्चन के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जा रहा है. आइये उनकी कुछ ग़ज़लों का लुत्फ़ उठाते हैं. वैसे यह बात समझ नहीं आई कि अमिताभ बच्चन के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार क्यों?- जानकी पुल. 1. कहीं ज़रा सा अँधेरा भी कल की रात न थागवाह …

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शहरयार जैसा शायर किसी अवार्ड से बड़ा होता है

हिंदी के प्रसिद्ध लेखक असगर वजाहत का शहरयार से अलीगढ़ विश्वविद्यालय के दिनों से गहरा जुड़ाव रहा है. जब शहरयार को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला तो उन्होंने यह संस्मरण उनके ऊपर लिखा. ‘प्रगतिशील वसुधा’ पत्रिका में प्रकाशित यह संस्मरण इतना रोचक लगा कि सोचा शहरयार के चाहनेवालों से उसे साझा किया …

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