अक्सर कई किताबों की इतनी चर्चा हो जाती है कि उसका कोई कारण समझ में नहीं आता जबकि कई अच्छी किताबों पर ध्यान कम जा पाता है. ऐसी ही एक किताब पिछले दिनों पढ़ने को मिली- अर्धकथानक. 1641 में बनारसीदास द्वारा तत्कालीन ब्रजभाषा में लिखी इस आत्मकथा का हिंदी अनुवाद. …
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