हिंदी में लोकप्रिय और गम्भीर साहित्य की बहस बहुत पुरानी रही है। इसी को अपने इस लेख में रेखांकित किया है युवा लेखिका सुदीप्ति ने। उन्होंने अनेक उदाहरणों के साथ अपनी बात रखी है, जो सोच-विचार और बहस की माँग करती है। इस विषय पर आपके विचार भी आमंत्रित हैं। फ़िलहाल …
Read More »‘पाप के दस्तावेज’ बनाम ‘पुण्य का साहित्य’
‘कादम्बिनी’ पत्रिका के दिसंबर अंक में गंभीर साहित्य बनाम लोकप्रिय साहित्य पर मेरा लेख प्रकाशित हुआ है. आपके लिए- प्रभात रंजन ============================= हिंदी में सौभाग्य या दुर्भाग्य से गंभीरता को ही मूल्य मान लिया गया है. जबकि आरम्भ में यह मुद्रा थी. हिंदी गद्य के विकास में दोनों की …
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