‘लोकमत समाचार’ की साहित्य वार्षिकी ‘दीप भव’ का इन्तजार बना रहता है. इसलिए नहीं कि उसमें मेरी रचना छपी थी. वह तो हर बार नहीं छपती है न. लेकिन पीछे 4-5 सालों से यह वार्षिकी हर बार निकल रही है. इन्तजार इसलिए रहता है कि यह भीड़ से हटकर होता …
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