इंडिया हैबिटैट सेंटर द्वारा आयोजित होने वाले कार्यक्रम कवि के साथ के 9वें आयोजन में आप सबको आमंत्रित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है. इस बार का आयोजन 2 शामों का है. विवरण इस प्रकार है:
21 अगस्त 2013, पहली शाम, 7.00- 9.00 बजे : परिचर्चा
गुलमोहर सभागार, इंडिया हैबिटैट सेंटर, लोधी रोड
विषय: बदलती हुई दुनिया में हिंदी कविता के 25 बरस विषय-प्रस्तावना : 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया का और 1992 में बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद भारत का परिदृश्य पहले की तुलना में बहुत तेजी से और बहुत दूर तक बदला है. बदलाव की इस तेज गति को व्यापक रूप से महसूस किया गया है, भले ही इन घटनाओं की व्याख्या और आकलन के विषय में तीव्र मतभेद मौजूद हों. इस बदलाव को कुछ लोग ‘भूमंडलीकरण‘ या ‘उदारीकरण‘ जैसी संज्ञाओं के जरिये समझते-समझाते हैं तो कुछ लोग ‘एकध्रुवी दुनिया‘ और ‘निजीकरण‘ की चर्चा करते हैं. इस बदलती हुई दुनिया में मनुष्य का रिश्ता न दुनिया से, न प्रकृति से, न मनुष्य से और न ईश्वर से ही पहले जैसा रह गया है. अनेक चिरस्थायी मान लिए गए मूल्यों, समझदारियों और संस्थाओं का विघटन हुआ है तो कई नयी कल्पनाओं, रचनात्मक प्रक्रियाओं और नवाचारों का उन्मेष भी हुआ है. ऐसे उथल-पुथल का दौर संस्कृति, कला और साहित्य के लिए नयी चुनौतियों, संकटों, मोड़ों और प्रस्थानों का समय होता है. पिछले पचीस वर्षों की हिंदी कविता भी इस बदली हुई दुनिया का सामना करते हुए खुद बदलाव की गहरी पेंगों से जूझती दिखाई देती है. यह बदलाव न केवल कविता की विषयवस्तु, भाषा और शिल्प से संबंधित है, बल्कि उसके सामाजिक आधार, पाठकवर्ग, भूगोल और इतिहास तक को प्रभावित करता है. इस आयोजन में हिंदी कविता में आ रही इन तब्दीलियों के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत के लिए इस दौर में सक्रिय हिंदी कविता की महत्वपूर्ण धाराओं के प्रतिनिधि कवियों को आमंत्रित किया गया है. परिसंवादी:
केदारनाथ सिंह
देवीप्रसाद मिश्र
पंकज चतुर्वेदी
मृत्युंजय
राजेश जोशी
सविता सिंह
संचालक: आशुतोष कुमार
विषय: बदलती हुई दुनिया में हिंदी कविता के 25 बरस विषय-प्रस्तावना : 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया का और 1992 में बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद भारत का परिदृश्य पहले की तुलना में बहुत तेजी से और बहुत दूर तक बदला है. बदलाव की इस तेज गति को व्यापक रूप से महसूस किया गया है, भले ही इन घटनाओं की व्याख्या और आकलन के विषय में तीव्र मतभेद मौजूद हों. इस बदलाव को कुछ लोग ‘भूमंडलीकरण‘ या ‘उदारीकरण‘ जैसी संज्ञाओं के जरिये समझते-समझाते हैं तो कुछ लोग ‘एकध्रुवी दुनिया‘ और ‘निजीकरण‘ की चर्चा करते हैं. इस बदलती हुई दुनिया में मनुष्य का रिश्ता न दुनिया से, न प्रकृति से, न मनुष्य से और न ईश्वर से ही पहले जैसा रह गया है. अनेक चिरस्थायी मान लिए गए मूल्यों, समझदारियों और संस्थाओं का विघटन हुआ है तो कई नयी कल्पनाओं, रचनात्मक प्रक्रियाओं और नवाचारों का उन्मेष भी हुआ है. ऐसे उथल-पुथल का दौर संस्कृति, कला और साहित्य के लिए नयी चुनौतियों, संकटों, मोड़ों और प्रस्थानों का समय होता है. पिछले पचीस वर्षों की हिंदी कविता भी इस बदली हुई दुनिया का सामना करते हुए खुद बदलाव की गहरी पेंगों से जूझती दिखाई देती है. यह बदलाव न केवल कविता की विषयवस्तु, भाषा और शिल्प से संबंधित है, बल्कि उसके सामाजिक आधार, पाठकवर्ग, भूगोल और इतिहास तक को प्रभावित करता है. इस आयोजन में हिंदी कविता में आ रही इन तब्दीलियों के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत के लिए इस दौर में सक्रिय हिंदी कविता की महत्वपूर्ण धाराओं के प्रतिनिधि कवियों को आमंत्रित किया गया है. परिसंवादी:
केदारनाथ सिंह
देवीप्रसाद मिश्र
पंकज चतुर्वेदी
मृत्युंजय
राजेश जोशी
सविता सिंह
संचालक: आशुतोष कुमार
(परिसंवादी-श्रोता-संवाद)
22 अगस्त 2013, दूसरी शाम, 7.00- 9.00 बजे : काव्य पाठ
22 अगस्त 2013, दूसरी शाम, 7.00- 9.00 बजे : काव्य पाठ
अमलतास सभागार, इंडिया हैबिटैट सेंटर, लोधी रोड
कवि:
अनामिका
अनीता भारती
केदारनाथ सिंह
देवीप्रसाद मिश्र
पंकज चतुर्वेदी
राजेश जोशी
कवि:
अनामिका
अनीता भारती
केदारनाथ सिंह
देवीप्रसाद मिश्र
पंकज चतुर्वेदी
राजेश जोशी
(कवि-श्रोता-संवाद)
कृपया आप सब जरुर आयें.
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निवेदक: सत्यानन्द निरुपम | आशुतोष कुमार | प्रभात रंजन
आयोजक: इंडिया हैबिटैट सेंटर
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निवेदक: सत्यानन्द निरुपम | आशुतोष कुमार | प्रभात रंजन
आयोजक: इंडिया हैबिटैट सेंटर
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