मैंने अपने लेखन की शुरुआत पुस्तक समीक्षा से की थी. विद्यार्थी जीवन में लिखने से पत्र-पत्रिकाओं से कुछ मानदेय मिल जाता था. ‘जनसत्ता’, ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ के संपादक, साहित्य संपादक बहुत उदारता से किताबें दिया करते थे. एक तो पढने के लिए किताबें मिल जाती थीं, दूसरे, कम शब्दों में …
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