आज आलोक श्रीवास्तव की कविताएँ. ‘वेरा उन सपनों की कथा कहो’ नामक अपने पहले ही संग्रह से खास पहचान बनाने वाले इस कवि का नया संग्रह हाल में ही आया है ‘दिखना तुम सांझ तारे को’. प्रस्तुत हैं उसी संग्रह की कुछ चुनी हुई कविताएँ- जानकी पुल.
1
तुम्हारे वसंत का प्रेमी
मैं तुम्हारे वसंत का प्रेमी
तुम्हारी ऋतु का गायक हूँ
तुम कहीं भी जाओ
तुम्हारे होने की खुशबू
मुझ तक आती रहेगी
हवाएं तुम्हारे गीत बांधकर
दिशाओं के हर कोने से मुझ तक लायेंगी
मैं तुम्हारे खिलाये फूलों में
तुम्हारी उंगलियों का स्पर्श चूमूंगा
तुम्हारी पलक छुऊंगा
तुम्हारे स्वप्न से भरी कोंपलों में
झरनों के निनाद में
तुम्हारी हँसी गूंजेगी
पलाश-वन को निहारेंगी मेरी आँखें
जो रंगी हैं तुम्हारी काया की रंगत में
मैं तुम्हें खोजने
देशावर भटकूंगा
तुम मुझे भूलना मत
लौटना हर बार
मैं तुम्हारी राह तकूंगा…
मैं तुम्हारे वसंत का प्रेमी
तुम्हारी ऋतु का गायक हूँ.
2
कनेर का एक पेड़ और एक रास्ता…
एक शाम याद आती है
धूसर रंगों में डूबी
तुम्हारा चेहरा नहीं
एक रास्ता याद आता है
जिसे चलते हुए
मैंने तुम्हारा शहर छोड़ा था
तुम किन अंधेरों में जीती रहीं
मैं कभी नहीं जान पाया
तुम्हारी अंतरात्मा का संगीत
कितना जिंदा रहा, कितना मर गया
इसकी मुझे कोई खबर नहीं
तुम्हारे जिन कनेर फूलों की ओट से
रात के चांद की ओर
अपनी बाहें फैलाई थीं
एक दृश्य की तरह मन में
वह अब भी अटका हुआ है
मैं तुम्हारे बरसों पुराने उस रूप को
देखता हूँ- अपने एकांत में
और मेरी आँखें आंसुओं से भर उठती हैं
तुम्हारे सीने पर सर रखकर रोने का मन होता है
यह उजाड़ –सा बीता मेरा जीवन
तुम्हें आवाज़ देता है
तुम हो इसी दुनिया में पस्त और हारी हुई
मुझसे बहुत दूर!
मेरी थकी स्मृतियों में
अब तुम्हारा चेहरा भी मुकम्मल नहीं हो पाता
दिखता है सिर्फ
कनेर का एक पेड़
और एक रास्ता…
3
चैत्र की यह शाम
यह जाते हुए चैत्र की शाम है
झरे पत्तों की उदास
रागदारी बजती है
मन के उदास कोनों में
जाते चैत्र का यह दृश्य
ठहरा रहेगा ताउम्र
ऐसे ही याद दिलाता
किसी सूने रास्ते
और पर्वतश्रेणी के पीछे
खोती शाम का!
4
यह कौन राह
यह कौन राह मुझे तुम तक लाई
सूर्यास्त का यह मेघ घिरा आसमान विलीन हो रहा है
एक नौका के पाल दिखते हैं सहस्राब्दियों के पार
और तुम्हारा उठा हाथ…
मैंने कहाँ तलाशा था तुम्हें
किस युग के किस वान-प्रांतर में?
कहाँ खोई थीं, तुम ऋतुओं का लिबास ओढ़े
हिमान्धियों के पार…
स्वप्न और सत्य की परिधि पर टूट जाता है जीवन
राहें बन जाती हैं गुंजलक
एक विशाल गह्वर अन्धकार का घेर लेता पूरी पृथ्वी!
मैं तुम्हें नहीं
तुम्हारे भीतर किसी को तलाशता
शताब्दियों भटका हूँ…!
5
एक गीत, जो फूल बन ख
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16 comments
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Bahut sunder-komal bhawnaon ki komal abhivayakti.Man ko chhoo liya.
दुःख ही लाया प्रेम
पर यह भी तो था जीवन का एक रंग
और हर रंग का अपना ही तिलिस्म होता है
रंगों के भीतर होते हैं कई रंग.
सुदूर देखती
अधेड़ दिनों की ठहरी कतार
पूरब के एक उदास देश में
दुःख का एक गीत रोता है
पथ पर
तुम पूछते हो
क्या होता है प्रेम!
bahut sunder rachanayen hai ,badhai
सहज,देर तक याद रहने वाली कवितायेँ
कनेर का पेड़ और रास्ता, यह मार्मिक और सुंदर कविता इन कविताओं के बीच ऐसी केंद्रीयता है, जिसके चारों तरफ ये कविताएं हैं। भिन्न स्वर की ये कविताएं पढ़कर अच्छा लगा।
प्रेम
दुःख ही लाया प्रेम
पर यह भी तो था जीवन का एक रंग
और हर रंग का अपना ही तिलिस्म होता है
रंगों के भीतर होते हैं कई रंग…
शुक्रिया प्रभात जी, इन्हें यहाँ देने के लिए. बेहतरीन कवितायेँ
दुःख ही लाया प्रेम
पर यह भी तो था जीवन का एक रंग
और हर रंग का अपना ही तिलिस्म होता है
रंगों के भीतर होते हैं कई रंग…
बेहतरीन कवितायेँ ….अलोक जी !अच्छा लगा पढकर !शुक्रिया प्रभात रंजन जी ,पढवाने के लिए !
Satya Mitra Dubey( Satya Dubey)
Bhasha, Kathya, Kavya Aur Rumaniyat Ka Adbhut Sanyojan. Badhaee..
बहुत सुन्दर रचना ,,, आभार
प्रेम
दुःख ही लाया प्रेम
पर यह भी तो था जीवन का एक रंग
और हर रंग का अपना ही तिलिस्म होता है
रंगों के भीतर होते हैं कई रंग…
bahut sundar… rangon ke beetar rangon ki baat .
दुःख ही लाया प्रेम
पर यह भी तो था जीवन का एक रंग
और हर रंग का अपना ही तिलिस्म होता है
रंगों के भीतर होते हैं कई रंग…
!!!!!!!!!!!
क्या कहूँ !!!