पेशे से डॉक्टर प्रवीण कुमार झा मूलतः व्यंग्यकार हैं. आज उनका यह व्यंग्य लेख यमलोक में ‘बलात्कारी विभाग’ को खुलने को लेकर है. एक चुभता हुआ व्यंग्य- मॉडरेटर
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यमलोक में आज रौनक है। ब्रह्मा जी अभी-अभी ‘बलात्कारी-विभाग‘ का रिबन काट कर गए हैं। यमदूत छक कर छोले-भटूरे खा रहे हैं।
सुबह से भीड़ भी लगी है। बलात्कारियों की लंबी कतार है। कोई किशोर, कोई अधेड़। कोई सूट-बूट में, कोई मटमैली लुंगी में। कोई हिप्पी, कोई साधु। कोई नेता, कोई अभिनेता। अजीब मिक्स है।
यमराज ने अपनी ‘ब्लड-प्रेशर‘ की गोली खाई, और मेज जमा कर बैठ गए।
“धनवंतरी जी कहते हैं तनाव में न रहूँ, तो गोली नहीं खानी पड़ेगी। आज से वो क्या कहते हैं ‘स्ट्रेस-फ्री‘ जिंदगी जीऊँगा। बुलाओ कौन है पहला!” यमराज ने आदेश दिया।
“सर! आई वाज् द सी. ई…” पहला कैंडीडेट बोला।
“भाई! हिंदी, तेलुगु, तमिल सब बोल-समझ लेता हूँ। ये अंग्रेजी में थोड़ा कमजोर हूँ।” यमराज मुस्कुराकर बोले।
“सर! मुझे गलती से यहाँ भेजा है। मैनें बस कुछ सेक्सुअल..सॉरी..यौन शोषन किया है। बलात्कार नहीं।”
“मतलब?”
“बस यूँ ही कुछ छेड़-खानी, मजाक। यू नो!”
“यमदूतों! इसे सुमड़ी में ले जाकर खूब गुदगुदी लगाओ। छेड़खानी वाले हटाओ, कोई बलात्कारी बुलाओ।”
“सर! ये गैंग-रेप का सरगना है। मन तो करता है चमड़ी उधेड़ दूँ।” यमदूत अगले को लाते दहाड़ा।
“सरकार। माफ कर दो, गलती हो गई। शराब के नशे में था।”
“ओह! ये तो शराब की गलती है। कोई ‘प्योर बलात्कारी‘ नहीं है क्या? इसे शराब की टैंक में डुबाओ, और अगला बुलाओ!”
“सर! ये ‘मैराइटल रेप‘ वाला है।”
“अब ये क्या बला है भाई?”
“शादी-शुदा जब पत्नी से जबरदस्ती करे।” यमदूत ने एक्सप्लेन किया।
“ये कैसा बलात्कार है? मतलब लॉजिक क्या है? क्यूँ करा?”
“वही तो सर! मुझे खामख्वाह फँसा रहे हैं।”
“इसे वटवृक्ष पर उल्टा लटका दो, और कोई पकिया बलात्कारी भेजो भाई!” यमराज बिल्कुल ‘इरीटेटेड‘ हो गए थे।
कई आये-गए। सब के बहाने थे। मजबूरियाँ थी। यमराज को जिस बलात्कारी की तलाश थी, ढूँढे न मिला। सब नकली। स्यूडो-बलात्कारी।
यमराज ने सबको कॉन्फ्रेंस हॉल बुलाया, और माइक लगाकर शुरू हो गए।
“आप सब सो-कॉल्ड बलात्कारियों का यमलोक में स्वागत है। वेल्कम ऑल!”
तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूँज गया।
“मुझे आप से मिलकर बड़ी खुशी हुई। आर्यावर्त में आज भी नैतिक मूल्य बाकी हैं। ये तो बस स्त्री-आकर्षण है, या मय के प्याले जो आपको लड़खड़ा देते हैं। ओय सी.ई.ओ., तू तो अमरीका-यूरोप भी घूमा होगा। तंग कपड़ों में गोरी लड़कियाँ दौड़ती देखी होगी? वहाँ छेड़खानी की हिम्मत न बनी या वहाँ के कानून से डर गया? या इस बात से कि वो तगड़ी गोरी उठाकर धोबिया-पाट दे देगी? राष्ट्रपति तक को कटघरे में ला देते हैं, तू किस खेत की मूली है? ऑफिस-शोषण इज नो जोक! छेड़खानी माइ फुट!और आई कैन स्पीक इंग्लिस बट् आई डॉन्ट!”
यमराज ने एक गिलास पानी गले में उतारा और फिर शुरू हुए।
“तुमलोग मानव ही रहे या कुछ ‘म्यूटेशन‘ हो गया? अजीब सा नशा है। बच्चे के खिलौने से देवियों की मूर्तियों तक में शरीर देखते हो। फूहड़ हँसी हँसते हो, भेंगी नजर रखते हो। बस में, ट्रेन में, गलियों में, और कुछ तो घरों में। मैराइटल रेप! क्या भड़ांस है ये? सच बताऊँ? नपुंसकता की पराकाष्ठा है, और कुछ नहीं। पत्नी से प्रेम न कर सके, तो डुप्लीकेट पौरूष?”
होंठ फड़क रहे थे यमराज के। उनके सेक्रेटरी ने धनवंतरी को कॉल लगाया, पर यमराज कहाँ रूकने वाले।
“पता है, वहाँ आधे जेल काटकर आये हो। कानून है वहाँ। सजा मिल चुकी है। पर चेहरे की मुस्की गायब नहीं हुई। आज भी कोई शिकार ढूँढ रही है तुम्हारी आँखें। कोई गिला नहीं तुम्हें। कितनी सजा दूँ? कितनी बार मृत्यु? क्या कानून बनाऊँ? तुम्ही बताओ, मेरे बाप।”
यमराज गिर पड़े। महीने भर से आई.सी.यू. में हैं। त्रिलोक में शोक है। सब इन रेपिस्ट की वजह से।
यमराज इज क्रिटिकल।
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इससे बढ़िया व्यंग्य नहीं हो सकता इस विषय पर.
बहुत अच्छा व्यंग्य। झा जी को बधाई। जानकीपुल मे विविध विधाओं का प्रकाशन अच्छा लगा।
प्रवीण झा जी बहुत बधाई. बहुत सटीक व्यंग्य के लिए खूब खूब साधुवाद.
खूब व्यंग्य है भाई। जानकी पुल में व्यंग्य देख भी अच्छा लगा।
बेहतरीन, एक सशक्त व्यंग्य समकालीन सन्दर्भ में…
वाह।क्या बात।
best mafia music