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दिलीप चित्रे की कविता तुषार धवल के अनुवाद में

मराठी कवि दिलीप चित्रे की अनेक कवितायें साभ्यतिक स्तर पर विमर्श करती प्रतीत होती हैं।उनकी आधुनिकता में परंपरा बोलती है। उनकी यह कविता उसका अच्छा उदाहरण है। उनकी जटिल बिंबों वाली कविताओं का अनुवाद आसान नहीं। लेकिन युवा कवि तुषार धवल ने बड़ी सहजता से उनकी कविताओं का अनुवाद किया है। आप भी देखिये- जानकी पुल। 
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प्रस्तुत कविता उनके पुत्र आशय की मृत्यु के बाद लिखी गई थी. आशय की मृत्यु
भोपाल गैस त्रासदी की वजह से हुए फेंफड़ों को नुकसान की वजह से 2003 में 42
वर्ष की उम्र में दम घुट जाने से हुई. आशय, जो दिलीप जी की एक मात्र
संतान थी,एक बहुत अच्छे चित्रकार भी थे- तुषार धवल 
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खो चुके पुत्र के लिये अधूरा शोकगीत
(An Unfinished Requim for a Lost Son)

पूर्व आवृत्ति

यह सहस्राब्दि मेरे लिये पहले ही बीत चुकी थी.
मैं ने स्वप्न देखा मृत्यु हमें पृथ्वी पर प्रेम के सभी जन्मों से मुक्त कर रही थी
मैं ने स्वप्न देखा तुम्हारी शुरुआत का
मैंने तुम्हें साँस के लिये संघर्ष करते देखा
मैंने स्वप्न देखा हर कुछ का जो जीवन को उसका अर्थ देती है
मृत्योन्मुख क्रियाएँमृत्यु को नकारते कर्म
मैं ने स्वप्न देखा तुम्हारी माँ और तुम मुझसे अलग हो रहे थे
जैसे बुझने से पहले तेज़ी से चमक उठा तारा ऊँची तल्ख आवाज़ में गा रहा हो
दूर किसी आकाशगंगा में
मुझसे हमेशा के लिये खो गये पुत्र
मेरे शव परीक्षण में तुम्हारा भी अंश मिलता है
जिसके लिये मैं तारों से जड़ी चादर नहीं ढूँढ पाता हूँ
मैं एक रोशनी हूँ खुद से ही दूर कर दी गई
मृत्यु के जीवित बल से जो हम पर अपनी साँस छोड़ रहा है
हम यानि हर वो चीज़ जिसे नाम दिया जा सकता है
रसायनखनिजजीव,
रेडियमऔर व्हेललोहा और बरगद
पेड़स्वार्गिक मछली और पार्थिव पशु,
हडि्डयों के एकदम करीब एक गर्जना,
बादल का फटना और कड़कती बिजली का लौटना
अमरता के अण्डे में

पहली आवृत्ति

मुझे संकेतों पर गौर करना था
ज्वालामुखी का फटनाधरती का कम्पनमछलियों की बैचेनी,
और पशुओं की घबराहट. किसी अनिष्ट का संकेत,
जन्म लेते शिशु की पहली थरथराहट जिसने बनाया मुझे
पिता अपनी बनाई दुनियाँ का मुख्य अभियुक्त
एन्ट्रोपी के सि़द्धान्तों के खिलाफ़ उगाये गये पेड़
आभास मात्र थे उस जंगल का जिसे हमने बनाया और जिसमें हम
मेरे हाथों की स्याही से रंगे थे तुम और तुम्हारी माँमुझे दी गई
लेखनी और भोजपत्रमैं टॉथ थाटॉडेस्फ्यूगमृत्यु की आवृत्ति की धुन
मैं इन्तज़ार करता
 
      

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4 comments

  1. Kavita sawal bhi h…javab bhi…

  2. दुख को कविताओ मे कैसे तब्दील किया जा सकता है .इन कविताओ को पढ कर जाना जा सकता है .ये मार्मिक कविताये है जो आघात से जन्म लेती है .तुषार ने उस मर्म को पकडने की कोशिश की है.इन कविताओ का पाठ करते हुये आप निराला की कविता सरोज स्म्रिति याद करिये तो आप को लगेगा कि दुख का भाव कितना सघन होता है..

  3. मर्मान्तक भाव , बहुत पहले कथाकार गोविंदा मिशराजी की एक कहानी पढ़ी थी शायद बीस वर्ष पहले ,वरुनांजाली।इसी भाव की कहानी थी । संतान का खोना जीतेजी मृत्यु है।त्रासद अनुभव की रचनात्मक अभिव्यक्ति।शुक्रिया जानकीपुल। .

  4. This comment has been removed by the author.

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