तादेऊष रुज़ेविच के निधन पर याद याद आया कि उनकी कविताओं का मूल पोलिश से अनुवाद अशोक वाजपेयी जी ने पोलिश विदुषी रेनाता चेकाल्स्का के साथ मिलकर किया था. ‘जीवन के बीचोंबीच’ नामक वह पुस्तक रुज़ेविच की कविताओं की मूल पोलिश से अनूदित हिंदी में एकमात्र पुस्तक है. पुस्तक अनुपलब्ध थी तो मैंने भाई संजीव से सहयोग के लिए कहा और उनकी मदद से उसी संग्रह से ये चार कवितायेँ जिनका अनुवाद अशोक वाजपेयी ने किया है. यादगार अनुवाद. याद रखिये इसके अलावा रुजेविच के जितने भी अनुवाद हिंदी में उपलब्ध है वे अंगरेजी के माध्यम से किये गए हैं. मूल पोलिश भाषा से सिर्फ यही अनुवाद हिदी में उपलब्ध है- प्रभात रंजन
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1.
वापसी
अचानक खिड़की खुल जाएगी
और माँ पुकारेगी
अंदर आने का वक्त हो गया.
दीवार फटेगी
मैं कीचड़ सने जूतों में
स्वर्ग-प्रवेश करूँगा
मैं मेज़ पर आऊंगा
और सवालों के ऊलजुलूल जवाब दूंगा.
मैं ठीकठाक हूँ मुझे अकेला
छोड़ दो. सर हाथ पर धरे बैठा हूँ-
बौठा हूँ. मैं उन्हें कैसे बता सकता हूँ
उस लम्बे उलझे रास्ते के बारे में?
यहाँ स्वर्ग में माँएं
हरे स्कार्फ बुनती हैं
मक्खियाँ भिनभिनाती हैं
पिता उंघते हैं स्टोव के बगल में
छह दिनों की मेहनत के बाद.
न, निश्चय ही मैं नहीं कह सकता उनसे
कि लोग एक
दूसरे का गला काटने पर उतारू हैं.
2.
झोंटा
जब सारी स्त्रियों की
जो गाड़ी से लाइ गई थी
तो चार मजदूरों ने भूर्ज की टहनियों से बने झाडू से
बुहारा और
बाल इकठ्ठा किये
साफ कांच के नीचे
रखे हैं उनके सख्त बाल जिनका दम घुटा
गैस चैम्बरों में
जिन बालों में फंसी हुई हैं पिनें
और हड्डियों से बनी कंघियाँ
और रौशनी उनके पार नहीं जाती
हवा उन्हें अलगा नहीं पाती
हाथ उन्हें नहीं छूते
न बारिश, न होंठ
बड़े बड़े संदूकों में
घुमड़ते हैं सूखे बाल
दम-घुटों के
और एक बदरंग झोंटा
फीते से बंधी एक झुंटिया
जिसे स्कूल में खींचते थे
शरारती लड़के
3.
दरवाज़ा
लाल शराब का एक प्याला
एक मेज़ पर टिका हुआ
एक अँधेरे कमरे में
खुले दरवाज़े से
मैं देखता हूँ बचपन का एक दृश्यालेख
एक रसोईघर और एक नीली केतली
पवित्र ह्रदय
माँ की पारदर्शी छाया
बांग देता मुर्गा
एक सुडौल शांति में
पहला पाप
एक नन्हा सफ़ेद बीज
एक हरे फल में कोमल
कड़वा सा
पहला शैतान गुलाबी है
और अपने गोलार्ध में घुमाता है
छींटदार रेशमी पोशाक में
रोशन दृश्यालेख में
एक तीसरा दरवाज़ा
खुलता है
और उसके पार धुंधलके में
पीछे की तरफ
जरा सा बाएं को
या फिर बीचोंबीच
मैं देखता हूँ
कुछ नहीं.
4.
घास
मैं उग आती हूँ
दीवारों के कोनों पर
जहाँ वे जुडती हैं
वहां जहाँ वे मिलती हैं
वहां जहाँ वे धनुषाकार होती हैं
वहां मैं रोप देती हूँ
एक अँधा बीज
हवा में बिखराया हुआ
धीरज से फ़ैल जाती हूँ
ख़ामोशी की दरारों में
मैं प्रतीक्षा करती हूँ
दीवारों के धराशायी होने
और धरती पर लौटने की
तब मैं ढांप लूंगी
नाम और चेहरे.
धीरज से फ़ैल जाती हूँ
ख़ामोशी की दरारों में
मैं प्रतीक्षा करती हूँ
दीवारों के धराशायी होने
और धरती पर लौटने की
तब मैं ढांप लूंगी
नाम और चेहरे.
वाह , उम्दा … बेहतरीन….
Dhanyavad prabhat ji is prastuti ke liye.
दरवाज़ा कविता पर टिप्पणी करेंगे?
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एक बात हुई अंग्रेज़ी अनुवाद का अनुवाद।
दूसरी बात हुई पोलैंड की औरत का "पोलिश में" अनुवाद करने की बजाय "पोलिश से" अनुवाद करना।
सहज और सरल
इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ।