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मीरांबाई की छवि और मीरां का जीवन

बड़ी चर्चा सुनी थी माधव हाड़ा की किताब ‘पंचरंग चोला पहर सखी री’ की. किसी ने लिखा कि मीरांबाई के जीवन पर इतनी अच्छी किताब अभी तक आई नहीं थी. किसी ने इसकी पठनीयता की तारीफ की. बहरहाल, मैंने भी किताब उठाई तो एक बैठक में ही पढ़ गया. यह बात तो माधव हाड़ा की इस किताब में है. 

बीए के दिनों में जब मीरांबाई की कविताएं कोर्स में पढ़ी तब से उनकी कविताओं की प्रेम की पीर उनके जीवन की तरफ आकर्षित करता था- जावा दे जावा दे जोगी किसका मीत रे!…’ 
इस किताब को पढ़ते हुए भी वही आकर्षण बना रहा. 

यही पढता आया था कि मीरां एक असाधारण विद्रोहिणी भक्त कवयित्री थी, उसने सामंती समाज में विद्रोह का बिगुल बजाया, कृष्ण की भक्ति उसके उस विद्रोह का आलंबन था. मुझे याद है उस जमाने में कई विद्वानों की किताबें पढ़ी थी, जिनमें शायद पद्मावती शबनम नामक एक विदुषी लेखिका ने तो यहाँ तक लिखा था कि अपने सांसारिक प्रेम को उन्होंने भक्ति के आवरण में ढंका. ज़माना ही ऐसा था, समाज ही ऐसा था… आखिर प्रेम की ऐसी पीर बिना निजी प्रेम के भी संभव है क्या? 

यह भी पढ़ा था कि मीरांबाई हाथ में वीणा लेकर जगह जगह घूमती थी और कृष्ण भक्ति के पद गाती फिरती थी. गुलजार की फिल्म मीरां का पोस्टर याद आ गया. उसकी इस भक्ति के कारण उस सामंती समाज में मीरां को जहर का प्याला दे दिया गया. एक असाधारण कवयित्री की यह छवि थी जो उसे मिथकीय बनाने के क्रम में रूढ़ बना दी गई. अब देखिये न मैं माधव हाड़ा की किताब पर लिख रहा हूँ और मुझे याद आ रहा है फिल्म प्रेम रोग के गीत की वह पंक्ति- मीरा ने पिया विष का प्याला विष को भी अमृत कर डाला…

इस किताब में लेखक ने विस्तार से लिखा है कि किस तरह कर्नल टाड की पुस्तक में मीरां की एक छवि गढ़ दी गई और वही छवि उसके बाद मीरां के जीवन के के ऊपर चिपका दी गई. वैसे भी भक्ति काल के कवियों के जीवन के बारे में कुछ भी प्रामाणिक रूप से उपलब्ध नहीं है. लेकिन सबसे ज्यादा किवदंतियां मीरां बाई और कबीर को लेकर रही हैं. कबीर से जुड़ी किम्वंदंतियों को दूर करने का काम पुरुषोत्तम अग्रवाल ने अपनी पुस्तक ‘अकथ कहानी प्रेम की’ में किया, तो माधव हाड़ा ने अपनी इस पुस्तक पंचरंग चोला पहर सखी री में मीरांबाई से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने की भरसक कोशिश की है. 

इस किताब की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि मीरां के जीवन को लेकर लोक में, शास्त्र में जितनी कथाएं मौजूद रही हैं लेखक ने उनके बीच से उनकी एक प्रामाणिक जीवनी बनाने की कोशिश की है. इसमें कोई शक नहीं यह इस किताब की सबसे बड़ी सार्थकता है. लेखक ने तर्कपूर्ण ढंग से इस धारणा का भी खंडन किया है कि विवाह से पूर्व मीरां बाई इश्वर भक्ति में लीं रहने वाली युवती थी. लेखक ने यह सवाल उठाया है कि राणा सांग जैसा राजा, जो उत्तर भारत के सबसे बड़े साम्राज्य का राजा था, वह अपने उत्तराधिकारी की पत्नी के रूप में ऐसी युवती का चुनाव क्यों करता? लेखक ने यह लिखा है कि मीरां बाई का वैवाहिक जीवन सुखी था. मीरां की कविता में जिस राणा से तनावपूर्ण संबंधों का जिक्र आता है वह उनके पति भोजराज नहीं बल्कि उनके देवर विक्रमादित्य हैं. भोजराज का निधन अपने पिता के जीवित रहते ही हो गया था.

मीरां के विष का प्याला पिए जाने की बात भी कपोल कल्पना ही रही है. लेखक ने लिखा है मीरां का निधन कैसे हुआ यह अज्ञात है. वह चुपचाप कहीं चली गई. अदृश्य हो गई- इस तरह की मान्यताएं रही हैं.

लेकिन इस पुस्तक में लेखक ने जो सबसे बड़ी स्थापना की है वह यह है कि ‘मीरां की कविता में जो सघन अवसाद और दुःख है उसका कारण पितृसत्तात्मक अन्याय और उत्पीड़न नहीं था. याह ख़ास प्रकार की घटना संकुल ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण था जिनमें मीरां को एक के बाद एक अपने लगभग सभी परिजनों की मृत्यु देखनी पड़ी और निराश्रित होकर निरंतर एक से दूसरी जगह भटकना पड़ा.’ अपने इस तर्क से लेखक मीरां को लेकर की गई सभी क्रांतिकारी स्थापनाओं को खंडित कर देते हैं. लेकिन एक सवाल उनके लेखन से भी उठता है कि सब कुछ परिस्थितिजन्य था तो कोई दूसरी मीरांबाई क्यों नहीं हुई? क्या वह परिस्थितियां उस समाज में अन्य स्त्रियों को नहीं मिल पाई?

यह पुस्तक कुल मिलाकर, खंडन की अधिक बनकर रह गई है. जिसमें कम से कम उनकी प्रामाणिक जीवनी प्रस्तुत करने में लेखक सफल रहे हैं. जीवनी के खंड के अलावा पुस्तक में छठा अध्याय बहुत रोचक है जो मीरां के छवि निर्माण को लेकर है. बहरहाल, पुस्तक की सबसे बड़ी उपलब्धि मैं यह मानता हूँ कि इसने मध्यकाल की सबसे अनूठी कवयित्री मीरांबाई के विमर्श को लेकर लगभग रूढ़ हो चुकी मान्यताओं की बाजी पलटने का काम किया है और एक नए विमर्श की शुरुआत की है. मीरां को एक बार फिर बहस के केंद्र में लाने के किये माधव हाड़ा की किताब पंचरंग चोला पहर सखी री को हमेशा याद किया जायेगा. पठनीयता और रोचकता पुस्तक के दो अतिरिक्त गुण हैं. 

पुस्तक वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है 

 
      

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10 comments

  1. sundar sameeksha….

  2. बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!शुभकामनायें.

  3. प्रभात जी, आभार! जनकीपुल ने किताब को यह मान दिया..

  4. Explore the Horizon

    Thanks for the tips shared on your blog. Yet another thing I would like to mention is that weight reduction is not exactly about going on a dietary fad and trying to shed as much weight as you can in a few days. The most effective way to shed pounds is by taking it gradually and right after some basic suggestions which can assist you to make the most out of your attempt to lose weight. You may understand and be following some tips, however reinforcing knowledge never hurts.

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