इन दिनों चेतन भगत ‘नच बलिये’ के जज बनकर चर्चा में हैं. ट्विटर पर उनको लेकर चुटकुलों का दौर जारी है, पूर्व अभिनेत्री ट्विंकल खन्ना सार्वजनिक रूप से ट्विटर पर उनका मजाक उड़ा चुकी हैं. अपना मजाक उड़ाने वालों का मजाक उड़ाते हुए उन्होंने खुद ट्वीट किया है कि जो लोग बरसों से बिना एक भी बेस्टसेलर लिखे मुझे जज करते रहे हैं अब वे इस बात को जज करने में लगे हैं कि मैं एक फन रियलिटी शो को किस तरह जज करता हूँ!
बहरहाल, मेरा ध्यान उनकी दूसरी ट्वीट पर गया जिसमें उन्होंने लिखा है कि मैं यह पक्का करना चाहता हूँ कि लेखन झुग्गी-झोपडी तक पहुंचे, हर गाँव तक पहुंचे. नच बलिये मुझे यह मौका फराहम करवाता है. एक और ट्वीट देखिये- मैं लेखक ही बने रहना चाहता हूँ. लेकिन किताबों के बीच मजेदार अनुभव जुटाना चाहता हूँ, जिनको बाद में किताब की शक्ल दे सकूँ! तो क्या चेतन भगत इसलिए नच बलिये के जज बने हैं ताकि वे बाद में रियलिटी शो के ऊपर एक उपन्यास लिख सकें? क्या उनके अगले उपन्यास की थीम यही होगी?
बहरहाल, अगर लेखन का उद्देश्य लोकप्रियता है तो निस्संदेह चेतन भगत उसके मानक हैं. उनकी किताबों की बिक्री अपने आप में मिसाल है. मुझे याद है इण्डिया टुडे ने उनके ऊपर 2014 में कवर स्टोरी की थी जिसमें उन्होंने कहा था मेरा मुकाबला कैंडी क्रश या व्हाट्सऐप जैसे एप्स से है. मैं लोगों को यूट्यूब, फिल्मों, एप्स की आदतों से छुटकारा दिलवाकर अपना आदी बनाता हूँ. 1 अक्टूबर 2014 को जब उनका उपन्यास ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ रिलीज हुआ था तो उसकी 20 लाख प्रतियाँ एक साथ बुकस्टोर्स में भेजी गई थी. है कोई माई का लाल?
ट्विटर पर उनके 47 लाख फ़ॉलोवर हैं. शायद ही इतने फ़ॉलोवर किसी दूसरे भारतीय लेखक एक हों. भारतीय अंग्रेजी लेखन के सबसे बड़े आइकन माने जाने वाले सलमान रुश्दी के तो ट्विटर पर 10 लाख फ़ॉलोवर भी नहीं हैं. अगर ट्विटर सेलिब्रिटीहुड का पैमाना है तो उस पर चेतन भगत लोकप्रियता में फ़िल्मी सितारों से होड़ लेते दिखाई देते हैं. प्रधानमंत्री को छोड़ दें तो भारत का कोई राजनेता भी लोकप्रियता में उनके आसपास नहीं दिखाई देता है.
अभी हाल में ही हिन्दुस्तान टाइम्स ने ब्रंच में समकालीन अंग्रेजी लेखन पर कवर स्टोरी की थी जिसमें यह लिखा था कि अंग्रेजी का लेखन 2004 के बाद इस कदर बढ़ा है कि आज शायद ही कोई ऐसा हो जो लेखक बनने की आकांक्षा न पालता हो. 2004 में चेतन भगत की पहली किताब आई थी. चेतन भगत लगातार लोक्प्रियता के शिखर पर जा रहे हैं और लोग आलोचक-लेखक उनको लेखक मानें या नहीं वे इस समय अंग्रेजी साहित्य की सबसे बड़ी पहचान हैं. अब कोई चाहे तो अंग्रेजी साहित्य की इस गिरावट पर एक मिनट का मौन रख सकता है, कोई आक थू कर सकता है लेकिन इससे यह सच्चाई नहीं बदल जाएगी.
सच में लेखन कोई चेतन भगत से सीखे या नहीं मगर लोकप्रियता कैसे पाई जाती है यह उनसे सीखना चाहिए. इण्डिया टुडे ने अपनी स्टोरी में सही उनको वन मैन इंडस्ट्री कहा था. उनके बाद तरह तरह के फ़ॉर्मूले आजमाए गए लेकिन चेतन भगत अपने आप में फार्मूला हैं. उपन्यास को फिल्मों की तरह ब्लॉकबस्टर बनाने वाले पहले फार्मूला लेखक.
हम हिंदी के लेखक कविता प्रतियोगिता, कहानी प्रतियोगिता के जज बनने से आगे अभी तक नहीं बढ़ पाए. उधर चेतन भगत हैं जो अंग्रेजी लेखन के नच बलिये बनकर छाए हुए हैं!
वे लिखें या न लिखें उनका होना ही भारतीय अंग्रेजी लेखन की सबसे बड़ी पहचान है और उनके जैसा होना युवा लेखकों के लिए सबसे बड़ा मकाम!
-प्रभात रंजन
मैं गुलशन नंदा की प्रशंसक रही हूँ। उनके उपन्यास पढ़ते समय किसी चलचित्र के साथ साथ चलने का अनुभव होता था। कोई भी प्रसिद्धि चिरस्थाई नहीं होती। लेकिन उस समय पढ़े उनके उपन्यास हमेशा याद रहेगा।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30 – 04 – 2015 को चर्चा मंच चर्चा – 1961 { मौसम ने करवट बदली } में पर दिया जाएगा
धन्यवाद
गुलशन नंदा हो या चेतन भगत, सफलता अपने आप में मानक है|
इज्ज़त अपने आप में दूसरा और स्वतंत्र मानक हो सकता है|
किसी जमाने में गुलशन नंदा भी बहुत लोकप्रिय थे…..आज कोई नामलेवा नहीं है….सवाल यह है कि चेतन साहित्य की कसौटी पर कितने खरे उतरते हैं.क्लासिक पाठक सदा से अलग रहे हैं.