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खदेरू की चिंगचांग और जुब्बा ख़ाला के चीनी बर्तन

चीनी सामानों के बहिष्कार की देशभक्ति का दौर है, दीवाली आ गई है मन मेन ऊहापोह है बिजली के चीनी झालर लगाएँ या न लगाएँ, न लगाएँ तो क्या लगाएँ? इसी ऊहापोह के दौर में बहुत दिनों बाद सदफ़ नाज़ अपने नए व्यंग्य के साथ लौटी हैं। पढ़िये- मॉडरेटर 
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सुबह-सुबह खदेरू जब रज्जन की दुकान से चाय और गप्प की तलब पूरी कर के लौटे तो उनका सांवला चेहरा लाल था। जुब्बा ख़ाला अपने तख़्त में बैठीं अख़बार में आंखे गड़ाए खबरों का हाल चाल लेने में मशगूल थीं। खदेरू ने एक नज़र उन पर डाली और फिर पास में पड़े अपने मख़सूस स्टूल पर उचक कर ख़ामोशी से बैठ गए। रूटीन से हट कर जब उन्होंने कोई को बात नहीं छेड़ी तो जुब्बा खाला को तश्वीस हुई, उन्होंने अख़बार से नज़रें हटा कर उनकी तरफ़ देखा तो उनकी हालत देख कर चौंक पड़ीं। खदेरू लाल अनार हुए मुंह ही मुंह में कुछ बुदबुदाते हुए वह रह रह कर अपनी मुट्ठियां भींच रहे थे।

ऐसे ग़ुस्से से लाल-पीले काहे नज़र आ रहे हो…………………..किसी से लड़ भिड़ आए हो क्या?” जुब्बा ख़ाला ने घबरा कर उनसे पूछा।
खदेरू तो मानो उनके इसी सवाल का इंतज़ार कर रहे थे………………… न में सिर हिलाते हुए उन्होंने फ़ौरन उनके तरफ़ एक पेशकश कर दी।
बूबूआप के पास रात के खाने वाले चीनी बर्तन (बोन चाइना) हैं न जिसे दुल्हे भाई ने ख़ासतौर पर आपके लिए अपने दोस्त से ग़ैर मुलुक से मंगवा कर दिया था…………………आप हमें ऊ सारे बर्तन दे दीजिए……………!”

खदेरू की पेशकश से ख़ाला हैरान हुई थीं की आख़िर ऐसी कौन सी ज़रूरत आन पड़ी जो ये सुबह-सुबह उनके मरहूम शौहर के तोहफ़े में दिए गए क़ीमती डिनर सेट मांग रहे हैं।
सुबह-सुबह तुम्हें हमारे उन बोन चाइना के बर्तनों की क्या ज़रूर आन पड़ी है……..?” उन्होंने ताज्जुब से पूछा।

बस………………….आप समझ लीजिए की हम दोनों की इज्जत और मुलुक से मोहब्बत साबित करने घड़ी आ गई है।

सुबह सुबह रज्जन की दुकान पर चाय पीने गए थे की भांग खाने………इज्जत………………मुल्क से मोहब्बत …………..मेरे बर्तन इन सब में क्या रिश्ता है…………..? तुम कैसी आवली-बावली बातें कर रहे हो हमें तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है……………? ” खदेरू की बेतुकी तान से जुब्बा ख़ाला ने चिढ़ कर कहा।

बूबू! हम कोई बावली बात नहीं कर रहे हैं………………..आपके ऊ चीनी बर्तन में और मुलुक से मोहब्बत और वफ़ादारी में बहुत गहरा रिस्ता है। आप को तो देस दुनिया में क्या हो रहा है कुछ खबर ही नहीं रहती है………………बेकार में दिनभर अख़बार और टेलीविजन में आंख दिए बैठी रहती हैं।

खदेरू ने ख़ाला के करेंट अफेयर्स की कम इल्मी को लेकर लताड़ लगाई थी। उनकी बात पर जुब्बा ख़ाला को गहरी चोट लगी। क्योंकि उन्हें हमेशा से अपनी दुश दुनिया की ताज़ा जानकारी पर अपनी पैनी निगाह रखने का बहुत फ़ख़्र रहा है।

हां…………..हां नहंजार……………हम तो कुछ नहीं जानते बस ………तुमको ही सारी दुनिया की ख़बरें रहती हैं……………….तुम तो बहुत पतरकार हो………….अमेरिका के सदर से लेकर पाकिस्तान के जरनैलों की तुमको ही तो ख़बर रहती है। सब तुमरे कानों में ही अपने मन की बात कहते हैं। और अब तुम मेहरबानी कर के यह ख़ुलासा कर ही दो की मुल्क से मोहब्बत और मेरे बोन चाइना के बर्तनों में कैसा नाता है।”  उन्होंने चिढ़ते हुए कहा।

बूबूआपके ऊ सारे बर्तन चीनी हैं……………….और आजकल चीनी लोग हम लोग के साथ क्या कर रहे हैं………हमारे दुस्मनों को दोस्त बनाए बैठे हैं………….तो उनको सबक सिखाना हमारा फरज ठहरा की नहीं। आज रज्जन की दुकान पर सब ने मिल कर डेसीजन लिया है की हम में से कोई चीनी समान का इस्तेमाल नहीं करेगा और न ही बेचेगा खरीदेगा। चीनी सब अपना माल हिंया बेच बेच कर पैसा इकट्ठे करते हैं और दुस्मनों को भेजते हैं और ऊ लोग हम लोग हमारे मुलुक में आफ़त जोतते हैं। सब ने कहा है की जैसे अंग्रेजो के जमाने में अंग्रेजी समान जलाते थे, वैसे ही हम भी चीनी समान जलाएंगे। साम में सब लोग रज्जन की दुकान के सामने अपने -अपने चीनी समान लेकर आएंगे और आग में झोंक देंगे। हमने तो कह दिया की हमरी बूबू के पास बहुत सारे चीनी बर्तन पड़े हैं………………..हम ऊही ले आंएगे………………..। हमरी बूबू देस मुलुक की बहुत फिकर करती हैं…………….मना नहीं करेंगी। लेकिन आप तो हमारा साथ देने की बजाए जिरह बहस लेकर बैठ गई हैं। हमारी इज्जत की तो आपको फिक्र ही नहीं है।”  खेदरू ने जुब्बा ख़ाला की जिरह का बहुत बुरा माना था।

बहुत आलिम फाजिल हो गए हो आज कल तुम तो……………………और तुमरी सारी चौकड़ी बावली हो गई है क्या………………तुम से किस ने कह दिया के मेरे बोन चाईना के बर्तन चीन के हैं………..? तुमरे दुल्हा भाई दुबई से मंगवाए थे उस डिनर सेट को, और वह ख़ालिस हिंदुस्तान के बने हुए हैं कोई चीन के नहीं। इसी लिए उन पर से अपनी नज़रें हटा लो…………………..!” जुब्बा ख़ाला ने एक ही सांस में अपने मरहूम शौहर के तोहफ़े की हिमायत और हिफ़ाज़त की थी। और एक बार फिर खदेरू की ख़बर लेने में जुट गई थीं।

और तुम लोग यहां बैठे-बैठे अपना सर चीन चीन कर के धुन रहे हो और वहां हमारे मुल्क की सरकार दावतें देदे कर और झूले झूले झुला झुला कर ग़ैर मुल्कियों को बुला रही है की आओ हमारे यहां ख़र्चे करो, मेक इन इंडिया में हमारा हाथ बंटाओ……….अपने सामान बेचो…….. सबका साथ सबका विकास करो…………………………..और मियां जान लो की उन ग़ैरमुल्कियों में चीन भी शामिल है। और यूं भी मुल्क में  जो चीनी सामानों की ख़रीद बिक्री हो रही है सब सरकार की मर्ज़ी से हो रही है कोई चाईना वाले बोरे में भर भर कर चीन की दीवार से हमरे तरफ़ थोड़े गिरा रहे हैं। ये कोई काला ब्यापार तो है नहीं जो छुप छुपा कर हो रहा है। सब सरकार की राज़ी ख़ुशी से हो रहा है। अगर चीन इत्ता बड़ा दुश्मन ठहरा तो सबसे पहले मुल्क की सरकार उन्हें रोकेगी की मिंया तुम हमारे दुश्मनों के  हिमायती बनोगे तो तुम्हारे सामान तुम्हें मुबारक ……….हमें नहीं लेना, अपनी रेढ़ी कहीं और लगाओ। लेकिन यहां तो मार से सुना है की चाइना से तिजारत के नियम कायदे लचीले किए गए हैं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा व्यापार हो ख़रीद बिक्री हो। अगर मुख़ालफ़त करनी है तो जाके सरकार के सामने करो की अवाम क्या चाहती है। ख़ामाख्वाह में यहां वहां उधम मचा रहे हो………………… और मेरी बात ख़ातिर जमा रखो ई वाली सरकार कोई ऐसी वैसी सरकार नहीं है इससे ज़्यादा न तो अबतक किसी ने मुल्क से मोहब्बत किया है और न ही आगे कर सकेगा। माशाअल्लाह से इनकी मुल्क भगती के सामने तो सन अठारह सौ सत्तावन के भारी मुल्क भक्तों की देसभक्ति भी बाल्टियों पानी भरती है।

खेदरू जुब्बा ख़ाला की बात सुन कर थोड़े सकपकाए थे लेकिन एक बार फिर समझाने वाले अंदाज़ में कहने लगे।

बूबूआप तो तख़त में बैठ कर खबरे बांचती रहती हैं………………लेकिन हम तो बाहर निकलते हैं……………..हमें तो बाहर लोग यही कह रहे थे की सरकार की भी यही मर्जी है। ऊ भी नहीं चाहती की चीनी लोग हमारे यहां आना जाना करें………………अपना सौदा सुलफ़ बेचें। खुद बटेसर बोल रहे थें की सरकारी पार्टी से जुड़ए भारी मुलुक भगत लोग ही ज़्यादा कह रहे हैं परव त्योहार में झालर बत्ती न खरीदें। उहे लोग तो ज्यादा मोबाइल कंपूटर पर संदेसा भेज रहे हैं की कैसे इनका सामान नही खरीद कर हम चीनी लोग को भारी घाटा लगवा कर धोबी पटक दे सकते हैं। उ जो बड़े वाले मुलुक भगत बाबा हैं ऊ भी तो ट्वीट फ्वीट किए थें की चीनी लोग का सामान न खरीदें……………..आप ही सोचें ऊ तो बहुत सरकार पसंद आदमी ठहरे तो ऐसे में ऊ सरकारी पसंद के खिलाफ़त वाली बात कैसे कर सकते हैं?” खदेरू ने जुब्बा ख़ाला को डिटेल फ़राहम करवाई।

हां तुमरे रज्जन, जुम्मन और बटेसर ही तो सब कुछ जानते हैं………………अरे कमबख़्तों चीन की  मुआशियत(इकोनॉमी) हम से पांच गुना बड़ी है और कहने वाले तो कह रहे हैं की मार से ये आजकल ये चीनी मीनी लोग अमरिका को भी फेल करने में लगे हुए हैं। तुम झालर बत्ती नहीं बेचने देकर उनका क्या बिगाड़ लोगे……..यहां मार से हम चीन से दवाएं खरीद रहे हैं………….शिपिंग का सामान आ रहा है……………..बड़ी मशीनें आ रही हैं…….इंजन आ रहे हैं और जन्ने क्या क्या अल्लम गल्लम का भारी वाला बिजनेस हो रहा है और तुम लोग बेचारे झालर बत्ती वालों के पीछे पड़े हो। और सिरफ़ उनके बेचने पर काहे रोक लगे तुम जो उनको बेच रहे हो उस पर काहे नहीं? आख़िर चीन वाले भी तो जन्ने कितने मीलियन बिलयन की चीज़े हमसे खरीद रहे हैं………….उनको भी रोक लगवा दो। यहां के जो तरहतरह के व्यापारी वहां जाकर पैसे लगाए बैठे हैं सामान बना बेच रहे हैं उन्हें भी बोलो अपनी आफिस और फैकटरियों में ताले लगा कर घर वापसी करें………………परदरसन करो…………………मियां तुम काहे इन सब में पड़े हो ई सब पॉलटीशियन और ख़ाली बैठे लोग की मटरगश्ती है और कुछ नहीं…………..सब चीनी समान के नाम पर छुटभईए नेता लोग अपनी राजनीती कर रहे हैं।

“लेकिन बूबू!……………….ई सब में फ़ायदा भी बहुत है अब दुस्मनों के दोस्त के सामान हम नहीं बेंचेंगे खरीदेंगे तो ग़रीब लोग का ही फ़ायदा होगा…………….वो लोग अपना माल बनाएंगे बेचेंगे……………..उन बिचारों का रोजगार फलेगा फूलेगा उनका काम बढ़ेगा।” खदेरू जुब्बा ख़ाला हर हाल में कायल करने की कोशश में लगे पड़े थे।

बात तो तुम सच कह रहे हो……………. ग़रीब लोग को रोज़गार मिलेगा उनका काम बढ़ेगा…………….लेकिन ये तो सोचो जिनकी तुम मुख़ालफ़त कर रहे हो वह छोटे छोटे दुकानदार हैं ……………अगर करना ही है तो बड़े लोगों के सामने जाकर मुख़ालफ़त करो……………….सरकार से मांग करो की वह बिज़नेस की परमीशन ही न दे…………………….और वैसे भी चीनी समान के रूप में अगर गरीब अवाम को सस्ती चीजें मिल रहीं हैं तो इसमें बुराई क्या है। ग़रीब बेच रहे हैं ग़रीब खरीद रहे हैं। मुख़ालफ़त करना ही है तो पहले उनकी तरह सस्ते सामान बना कर बाज़ार दुकान भर दो………………..उनकी चीज़ें ख़ुद ब ख़ुद बाहर निकल जाएंगी…………………लोगों को रोकने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। वैसे भी जिन ब्यापारियों ने अपनी जमा पूंजी लगा कर वहां से माल ख़रीदे हैं उन बिचारों की क्या ग़लती है…………………..लोग उनकी चीज़ें नहीं ख़रीदेंगे तो उनका नुकसान होगा…………….उनका नुकसान यानी मुल्क के पैसों का नुकसान………….ये कहां की इंसाफ़ की बात है……………….?”

लेकिन बूबू मुल्क से मोहब्बत और वफ़ादारी भी तो कोई चीज है………………दुस्मनों की जो मदद करे हमें अपना नुकसान कर के भी उसे रोकना चाहिए………………” खदेरू ने तैश में कहा।

हां ज़रूर वफ़ादारी मोहब्बत दिखाओ लेकिन मियां इस तरह हर बात में तैश में आकर मुल्क के दूसरे मुल्क से व्यापार के रिस्तों के नियम कायदे के फैसले नहीं किए जाते हैं  ………………..ये तुमरे अब्बा और चचा मियां की ज़मीन का बांट बंटवार नही है की तुम तैश में आकर औंगी बौंगी हरकतें करते फिरोगे……………. ।” जुब्बा ख़ाला ने खदेरू के तैश को देखकर उन्हें लताड़ा था।

और यूं भी मियां अब तो पूरी दुनिया का यही तरीका हो गया है के सारे मुल्क अपना दरवाज़ा ख़रीद बेच के लिए खोले बैठे हैं की। इस ख़रीद बेच के भी अपने नियम कायदे हैं। ऐसे में चीन या किसी भी मुल्क को रोकना मुमकिन नहीं है। और फिर तुम लोग किस मुगालते में हो की तुम्हारे रोक देने चीन हिल जाएगा……………। और यूं भी इधर तुम लोग चीन को सबक सिखाने के लिए मुक्के ताने बैठे हाय हाय कर रहे थो औ उधर सात अक्टूबर को को इंडिया चाईना इन्वेस्टमेंट कनक्लेव हो गया। तुमको कानो कान ख़बर नहीं हुई……….ख़बर मिली होगी तो भी बात समझ में नहीं आई। जुब्बा ख़ाला की इन सारी जानकारियों से खदेरू ज़रा बराबर भी मुत्तासिर नहीं हुए थें। उन्हें बस अपनी इज़्ज़त की फिकर लगी हुई थी कहीं जुब्बा ख़ाला ने बर्तन देने से इंकार कर दिया तो आज शाम रज्जन की दुकान पर सबके सामने नाक कट जाएगी। उन्हें ख़ाला की सारी बातें बहाना लग रही थी। इसी लिए उन्होंने एक बार फिर उन्हें कायल करने की कोशिश की।

बूबू आप तो जने बात कहां से कहां ले जाती हैं……………….. हम तो आपसे बहुत मायूस हुए………….इधर आप देस के खातिर अपने मामूली से बर्तन देने के लिए तैयार नहीं है और उधर रज्जन को देखिए उसे देस की आन की कितनी फिकर है उसने तो कसम खा ली है की दुस्मनों की मदद करने वाले मुलुक का नाम भी अपनी जुबान पर नहीं लेगा। ऊ अब से चीनी को चीनी नहीं सक्कर कहेगा। और मंगला ने भी कह दिया है वो अपने बेटे को फ़ून कर देगा की ऊ जो देस में सिनेमा हाल के बगल मे चाऊमीन का ठेला लगाता है ऊ धंधा बंद कर दे। जब चीन से रिस्ता नहीं रखना तो फिर उनके खाने क्या बेचना……….वह कह देगा की चाहे तो वह नेपाली, भूटानी, मद्रासी खाने बेच ले लेकीन चीनी तो हरगिज नहीं बेचेगा। चाहे ठेला बंदक करना पड़े।

बूबू आपको हमरी इज्जत की फिकर नहीं है……………हम छोटे मिंया से कहेंगे…………..की अपना लॉपटॉप हमको दें दें………………..हमने सुना था ऊ एक दिन फून पर कह रहे थे की उन्होंने जो नया लॉपटॉप लिया है ऊ चीन का बनाया हुआ है……………………..छोटे बाबू बहुत देसभगत आदमी हैं …………….ऊ हमारी इज्जत सबके सामने नहीं जाने देंगे………………..”  

ठीक है ले लेना, मगह पहले तुमने…………….खदेरन से बात करने के लिए…………….जो मूफ़त वाला फ़ून खरीदा था उसमे लगा सिम जला दो…………… हमने सुना है मुल्क की अवाम के फ़ायदे के लिए जो मुफ़त वाला फोन इंटरनेट दे रहे हैं वो लोग भी चीन ताईवान से सिम बनवा बनवा कर मंगा रहे हैं………….!” जुब्बा ख़ाला की पेशकश पर खदेरू पशोपेश में पड़ गए थे…………….थोड़ी देर रूक कर कुछ हिचकिचाते हुए संभल कर कहने लगे……

बूबू हमको तो याद ही नहीं रहा आपको बताने के लिए………….हम शाम में रज्जन की की दुकान पर नहीं जा सकेंगे………….. दो दिन से खदेरन हमको गांव बुला रही हैं……………. दोनो भैंस की तबियत नासाज है……………..डॉक्टर को दिखाना है। हमें साम में गांव निकलना पड़ेगा।

ख़ैर से खदेरू शाम में गांव सिधारें और जुब्बा ख़ाला मरहूम को याद करते हुए मुस्कुराते हुए अपने बोन चाइना के बर्तनों को झाड़ पोंछ कर दुबारा सहेज कर आलमारी में सजा दीं। शाम में उन्होंने मेड इन चाइना के लैपटॉप से अपनी बंबई वाली बेटी से स्काईप पर बात की। मुफ़्त वाले सिम से लखनऊ वाली ननद से घर ख़ानदान की घंटे भर गप्प हांकी।

वैसे सुना है कोई मेट्रो प्रोजेक्ट चाइना को मिला है और बड़ी वाली ख़ास लोहे की मूर्ती का ठेका भी चाइना को मिला है। और अकल शरीफ़ में एक बात और आ रही है ………………जान की अमान पाऊं तो बोलूं?ख़ैर जान तो ऊपर वाले के हाथ में है तो कहे देती हूं की……………….

चीन तो हमेशा ही अपने दुश्मनों का दोस्त रहा है………………..आज से नहीं बहुत सालों से और दुश्मन भी कोई आज से से दुश्मन नहीं बना सन सैंतालिस वह हमसे दुश्मनी निभाता आ रहा है तो फिर दो महीने पहले तक उनके साथ सारे रिश्ते बढ़िया कैसे थेकैसे देशभगत लोग उनकी बनाई चीजें इस्तेमाल कर रहे थेवैसे ऐसा पूछने में मेरा कोई पर्सनल इंट्रेस्ट नहीं है………………………मने यूं ही कह रहे हैं…………….. बस!!

अल्लाह अल्लाह ख़ैर सल्लाह
ऊपर वाला सबकी ख़ैर करे……………………….
सदफ़ नाज़
Sadaf Naaz
Freelance journalist, Translator, Creative writer

 
      

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5 comments

  1. छद्म देश भक्तों पर चोट, तमाचा सा…
    मुबारक हो, शुक्रिया…

  2. Thanks for your concepts. One thing I’ve got noticed is the fact banks plus financial institutions really know the spending patterns of consumers while also understand that most of the people max out their own credit cards around the breaks. They sensibly take advantage of this fact and start flooding ones inbox as well as snail-mail box having hundreds of 0 APR credit cards offers soon after the holiday season ends. Knowing that if you’re like 98 of all American general public, you’ll jump at the one opportunity to consolidate credit debt and transfer balances for 0 apr interest rates credit cards.

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