Home / Featured / मेहदी हसन को याद करते हुए

मेहदी हसन को याद करते हुए

आज ‘शहंशाह-ए-ग़ज़ल’ कहे जाने वाले मेहदी हसन की पुण्यतिथि है.  उनको याद करते हुए विमलेन्दु ने यह कविता लिखी है-

अन्तरनाद
========
कोमल गांधार से
शुरू होता था उनका अन्तरनाद
जो धैवत् और निषाद के दरम्यान कहीं
एकाकार हो जाता था
हमारी आत्मा के सबसे उत्तप्त राग से.
बड़े संकोच के साथ
मेहदी हसन उतरते थे
अपनी ही आवाज़ के अंतरंग में
कि जैसे पहली बार छू रहे हों
प्रेमिका की मखमली हथेलियाँ.
झुकी हुई पलकें
मानो अदृश्य कर देना चाहती हों
उस सृष्टि को
जो रची जानी है अभी अभी.
स्वर पेटी से निकलते सुरों से विषम
कुछ थरथराहट होती
तिर्यक होते होंठों की दाहिनी कोर में
संभवतः
ये उनके वो स्वर होते होंगे
जिन्हें वो हरगिज नहीं सुनाना चाहते दुनिया को.
झुकी पलकों और थरथराते होठों के
इसी अदृश्य में
मेहदी हसन बुनते हैं
ऐसी आवाज़ का दृश्य
जो हमारे दृश्यों की आवाज़ बन जाती है.
कितने लोगों के खा़मोश दुखों
बेक़रार प्यार में बोलते थे मेहदी हसन
कैसी दिलशिकन रातें
हम काट लेते थे
इस आवाज़ के पहलू में मुह छुपाये हुए.
रेगिस्तान पार करते हुए
जब पानी खत्म हो जाता
तो इस आवाज़ का दरिया दिख जाता
जंगल में भटक जायें रास्ता
तो किसी झुरमुट से
रौशन हो उठती यह आवाज़़
कि ठीक उसी वक्त
हाथ को मिल जाता था कोई हाथ
जब आखिरी डुबकी होने लगती.
दुख भी बोलते हैं
दुख हमेशा
बुलंद आवाज़ में बोलना चाहते हैं
बेबसी चीखना चाहती है पंचम में
जैसे विरही की हूक !
जो लोग निर्वासित हैं
जीवन की लय से
जिनका कोई घर नहीं दर नहीं
उनके लिए रिक्त स्थान थी
मेहदी हसन की आवाज़ ।
 
      

About divya vijay

Check Also

‘अंतस की खुरचन’ पर वंदना गुप्ता की टिप्पणी

चर्चित युवा कवि यतीश कुमार के कविता संग्रह ‘अंतस की खुरचन’ की समीक्षा पढ़िए। यह …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *