बोरुंदा क़स्बा है या गाँव, उसकी पहचान विजयदान देथा से थी. हिंदी-राजस्थानी के लेखक मालचंद तिवाड़ी विजयदान देथा के आखिरी बरसों में उनके साथ लेखक-अनुवादक के रूप में जुड़े हुए थे. ‘बोरुंदा डायरी’ उन्हीं दिनों लिखी गई. भाषा में राजस्थानी समाज का रूपक गढ़ने वाले विजयदान देथा के आखिरी दिनों …
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