Home / ब्लॉग / ज्ञान प्रकाश विवेक की ग़ज़लें

ज्ञान प्रकाश विवेक की ग़ज़लें

ज्ञान प्रकाश विवेक हिन्दी के उन चंद शायरों में शुमार किए जाते हैं जिनमें उर्दू शायरी की रवानी भी है और हिन्दी कविता की सामाजिकता पक्षधरता भी। एक जमाने में जब कमलेश्वर लिंक ग्रुप की पत्रिका गंगा का संपादन कर रहे थे तो उन्होंने पत्रिका के संपादकीय में ज्ञान प्रकाश विवेक की ग़ज़लें उसी तरह प्रकाशित की थीं जिस तरह से सारिका पत्रिका के दौर में उन्होंने संपादकीय में दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें छापी थीं। उस दौर में गंगा पढ़नेवालों की स्मृतियों में ज्ञान प्रकाश जी के ऐसे शेर बचे होंगे-

खुद से लड़ने के लिए जिस दिन खड़ा हो जाउंगा

देखना उस दिन मैं खुद से भी बड़ा हो जाउंगा

या

वो जो धरती पे भटकता रहा जुगनू बनकर

कहीं आकाश में होता तो सितारा होता।

आइए उनकी दो ताज़ा ग़ज़लों से रूबरू होते हैं-

1

वो किसी बात का चर्चा नहीं होने देता

अपने जख्मों का वो जलसा नहीं होने देता

ऐसे कालीन को मैं किसलिए घर में रखूं

वो जो आवाज को पैदा नहीं होने देता

ये बड़ा शहर गले सबको लगा लेता है

पर किसी शख्स को अपना नहीं होने देता

उसकी फितरत में यही बात बुरी है यारों

बहते पानी को वो दरिया नहीं होने देता

ये जो अनबन का है रिश्ता मेरे भाई साहब

घर के माहौल को अच्छा नहीं होने देता।

(2)

मैं अपने हौसले को यकीनन बचाउंगा

घर से निकल पड़ा हूं तो फिर दूर जाउंगा

तूफान, आज तुझसे मेरा है मुकाबला

तू तो बुझाएगा दीए पर मैं जलाउंगा

इस अजनबी नगर में करुंगा मैं और क्या

रूठूंगा अपने आपसे, खुद को मनाउंगा

ये चुटकुला उधार अगर दे सके, तो आज

घर में हैं भूखी बेटियां उनको हंसाउंगा

गुल्लक में एक दर्द का सिक्का है दोस्तों

बाजार जा रहा हूं कि उसको चलाउंगा।

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

4 comments

  1. कुछ शेर को ऐसे रंग में रंगा है कि पढ़े ही नहीं जा रहे। ध्यान दें।

  2. बहुत ही उम्दा ग़ज़लें. बहुत अच्छी लगीं.

  3. शानदार पोस्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *