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हाशिया पन्ने में सौंदर्य भरता है

पूर्णिमा वर्मन अभिव्यक्ति-अनुभूति की संपादिका हैं. एक समर्थ और संवेदनशील कवयित्री भी हैं. स्त्री जीवन की पीड़ा, उनका दर्द उनकी कविताओं को सार्वभौम बनाता है. प्रस्तुत है तीन कविताएँ- हाशिया पन्ने में सौंदर्य भरता है/ नियंत्रित करता है उसके विस्तार को दिशाओं में/ वही गढ़ता है लिखे हुए का आकार 






मेरा घर
मैंने सूई से खोदी ज़मीन
फुलकारियाँ उगाईं दुपट्टों पर
मैनें दीवारों में रचे ताख दीवट वाले
मैंन दरवाजों को दी राह बंदनवार वाली
मैंने आग पर पकाया स्वाद
अँजुरी में भरा तलाब
मैंने कमरों को दी बुहार
मैंने नवजीवन को दी पुकार
मैंने सहेजा
उम्रदराजों को उनकी अंतिम साँस तक
मैंने सुरों को भी छेड़ा बाँस तक
मेरे पसीने से बहा यश का गान
मेरे घर पर लिखा तुम्हारा नाम

औरत हाशिये पर
खास सब कुछ होता है हाशिये पर
परीक्षा के अंक
गलतियों पर टिप्पणियाँ
प्रशंसा के शब्द
शिक्षक के हस्ताक्षर

हाशिये पर कम लिखा बहुत होता है
हाशियों पर नहीं होते वाद विवाद
हाशिये में नहीं भरी जा सकती बकवाद

हाशिये पर लिखा तुरंत नजर आता है
वह बनाता है पन्ना लिखनेवाले का जीवन
दिखाता है उन्हें आइना
निखारता है उनका व्यक्तित्व
वही रचता है उनका भविष्य

हाशिया पन्ने में सौंदर्य भरता है
नियंत्रित करता है उसके विस्तार को दिशाओं में
वही गढ़ता है लिखे हुए का आकार

सही या गलत के निशान वहीं मिलते हैं
वह याद रखता है महत्त्वपूर्ण वाक्यांश
रेखांकित शब्दों के अर्थ
अनुच्छेदों के सरांश
हाशिये से मिलता है किताब को संवाद
हाशिये के बिना अर्थहीन होती है किताब


आसमान पर बिंदी
बिंदी जो कभी थी एक बूँद विश्वास
होती गई बड़ी समय के साथ
इतनी बड़ी कि
औरत ने उसे उतारा
और टाँग दिया आसमान पर
सूरज की तरह
अब वह सूरज उसकी राहों को
रौशन करता है
संतोष की चाँदी से गढ़ी हँसुली
जो बरसों तक
लटकी रही गले में
कर्मठता के सोने में मढ़ी
अचानक एक दिन इतनी भारी लगी
कि
औरत ने उसे उतारा
और टाँग दिया आसमान पर
चाँद की तरह
ओह मन ऐसा शीतल हुआ
कि जैसे चंद्रकिरन समा गई हो
भीतर तक
किसी को पता नहीं चला
समय के साथ
औरत हो गई कितनी ऊँची
कि अपनी ही बिंदी अपनी ही हँसुली
आसमान पर टाँग
खोज ली उसने अपनी राह
अपना सुख

लोग नहीं जानते
दूसरों के लिये खटने वाले
अपना भी कर सकते है कायापलट
 
      

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27 comments

  1. किसी को पता नहीं चला
    समय के साथ
    औरत हो गई कितनी ऊँची
    कि अपनी ही बिंदी अपनी ही हँसुली
    आसमान पर टाँग
    खोज ली उसने अपनी राह
    अपना सुख

    हाशिये पर लिखा तुरंत नजर आता है
    वह बनाता है पन्ना लिखनेवाले का जीवन
    दिखाता है उन्हें आइना
    निखारता है उनका व्यक्तित्व
    वही रचता है उनका भविष्य

    मैंने आग पर पकाया स्वाद……………मैं तो रीझ गई इस पंक्तियों पर ………..मेरे शब्द कम पड़ रहे है ……अब यह मत कहना कोई { सखी } ….अबला जीवन हाय ……..

  2. शीर्षक में है सर…

  3. ,haashey par kuch adhoore swapna,khoye hue mitra,punhashch ,
    ya bhool sudhar ki tarah ,purnata ke prateeksha mein chuchap rahate hain
    haashye ka ek swantra saundrya hai ,jaise ek sukhti hui nadi ka .haashey par bahut kuch hai .param tatva mein leen hone wala vaakyansh bhi
    bhaavpravan samvedna se yukta rachanoyon ke liye badhaye

  4. स्त्री परिवार की धुरी है फिर भी उसे परिवार में सबसे फालतू और दलित जैसा दर्जा दिया जाता है.पूर्णिमा वर्मन की कविताओं में स्त्री की दयनीय स्थिति का अहसास कराते हुए उसके सशक्त रूप की झलक भी है.हाशिये पर होते हुए स्त्री घर, परिवार तथा समाज के लिए कितनी अह्म और महत्वपूर्ण है, यही इन कविताओं का संदेश है।

  5. Purnima jee achchhe kavitaon ke liye badhayee. Pradeep Mishra

  6. तीनों कविताएँ अति सुन्दर और गहरे भाव लिये हैं। पुर्णिमाजी की पंक्तियाँ हमेशा अलग और मन को भीतर तक छू जाने वाली होती हैं। हिन्दी साहित्य के प्रति अपने हर प्रयास को पूरी निष्ठा और लगन से ये पूरा करती हैं फिर चाहे लेखन हो या अंतर्जाल पर इनके द्वारा सम्पादित पत्रिकाएँ हों। साथ में नये लेखकों को प्रोत्साहन देना इनकी बहुत बडी खूबी भी है।…अपकी पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी…अरविन्द…

  7. bahut umda. kya likhati hain aap.

  8. आपके नवगीत तो अलग तरह के होते ही हैं , ये तीनों कविताएँ भी बहुत गहरा जीवनबोध समेटे हुए हैं। अतलस्पर्शी और मर्मस्पर्शी ्हाशिए को भी आपने गरिमा प्रदान की है ।

  9. मैंने सहेजा
    उम्रदराजों को उनकी अंतिम साँस तक
    kya soch hai ye kavita to kamal hai aapka ek naya hi andaz hai isme .
    सही या गलत के निशान वहीं मिलते हैं
    वह याद रखता है महत्त्वपूर्ण वाक्यांश
    रेखांकित शब्दों के अर्थ
    अनुच्छेदों के सरांश
    हाशिये से मिलता है किताब को संवाद
    हाशिये के बिना अर्थहीन होती है किताब
    is tarah se to hashiye ke bare me kisine nahi socha hoga
    लोग नहीं जानते
    दूसरों के लिये खटने वाले
    अपना भी कर सकते है कायापलट
    uttam lajavab
    saader
    rachana

  10. मैनें दीवारों में रचे ताख दीवट वाले
    मैंन दरवाजों को दी राह बंदनवार वाली
    मैंने आग पर पकाया स्वाद
    अँजुरी में भरा तलाब

    Purnima Di ko padhna sadaa bhaataa hai

  11. स्त्री सशक्तीकरण की अप्रतिम और अनायास अभिव्यक्ति ! औरत हमेशा हाशिये पर रही और हाशिये की ताकत को बता रही हैं – पूर्णिमा वर्मन
    '' समय के साथ औरत हो गयी कितनी ऊंची कि अपनी ही बिंदी ,अपनी ही हंसुली , आसमान पर टांग , खोज ली उसने अपनी राह ! ''
    '' लोग नहीं जानते — दूसरों के लिए खटने वाले , अपना भी कर सकते हैं कायापलट ! ”
    ……. काश कि ऐसा सन्देश हर औरत तक पहुँच पाए !
    इतनी मज़बूत , प्रेरक अभिव्यक्ति के लिए पूर्णिमा जी को और जानकीपुल को बधाई !
    –सुधा अरोड़ा

  12. पूर्णिमा जी की कवितायेँ,
    सत्य बोध !
    खास कर हाशिये का नाम ले जो कही गयी
    यूं लगा जैसे जीवन के पहले पन्ने पर जो हाशिया था
    माँ !
    उसकी अहमियत हर पन्ने पर बताई जा रही हो
    पहले पन्ने का सत्य बाकी पन्नो पर क्यों भुला दिया गया ?
    ये प्रश्न करती !!
    हार्दिक शुभकामनाएं
    अजय शर्मा
    नॉएडा
    भारत

  13. पूर्णिमाजी, बहुत सुन्‍दर कविताएं।

    लोग नहीं जानते
    दूसरों के लिये खटने वाले
    अपना भी कर सकते है कायापलट

    बेहतरीन पंक्तियां। बहुत बहुत बधाई।

  14. भावपरक, अर्थ भरी, दिल को छू लेने वाली सुन्दर कविताएं। बधाई हो पूर्णिमा जी को और जानकीपुल को भी।

  15. कुछ कविताएं इतनी अच्छी होती हैं कि हम उन्हें पढ़कर गहरे भावबोध में उतर जाते हैं और वे कविताएं हमारे जेहन में इस प्रकार अंकित हो जाती हैं कि हमेशा ताजा बनी रहती हैं। पूर्णिमा जी की 'मेरा घर' और 'आसमान पर बिंदी' ऐसी ही खूबसूरत कविताएं हैं। पूर्णिमा जी अपनी रचनाओं में उन बहुत से माटी की गंध से भीगे शब्दों को जो आज हमारी भाषा से, बोलचाल से, साहित्य से विलुप्त से होते जा रहे हैं, पुनर्जीवित करने की ईमानदार कोशिश में संलग्न हैं। 'ताख-दीवट' 'फुलकारी''बंदनवार' 'हंसुली' ऐसे ही शब्द हैं। 'हाशिये पर' कविता भी एक सच्ची और प्यारी कविता है जो 'हाशिये' के माध्यम से बहुत कुछ कह रही हैं… बधाई प्रभात रंजन को भी जिन्होंने इन कविताओं को हम तक पहुंचाया और पूर्णिमा जी को भी !

  16. पूर्णिमा जी की रचनाओं का पहले से ही प्रशंसक हूँ. एक साथ ३ रचनाएँ तो गिफ्ट जैसा मामला है.

  17. मेरा घर
    औरत हाशिये पर और
    आसमान पर बिंदी
    तीनों ही अत्यंत सम्वेदनशील रचनाएँ हैं.पूर्णिमा जी की अभिव्यक्ति दिल को छू गई.पूर्णिमा जी और जानकी पुल जी दोनों को बधाई हो.

  18. bahut achhi rachanayen hai purnima ji ki ,badhai .

  19. अच्छी और संवेदना से भरपूर कविताएँ।

  20. poornima ji ki kavitayen bahut gahare bhaaw bodh ke saath ukeri hui lagatin hain .ve stree ke saahas aur bheetari soundary ko bahut koushal ke saath shabd de rahi hain .badhayii

  21. poornima ji ki kavitayen bahur bhaw bodh ke saath ukeri huii lagati hain .. ve stree ke saahas aur usake bhetari soundry ko gahare arth de rahin hain. badhaayi

  22. "लोग नहीं जानते
    दूसरों के लिये खटने वाले
    अपना भी कर सकते है कायापलट

    Yah lines stree vimarsh ka ARTH hi hain…apni bindi, hansuli ko jo aasman par taang kar hashiye ke Madhya stith rah kar,,, apne astitva ya Swayam se anya ka nirmaan karti hai..haan wohi stree hai…Purnima ji ki sensiblity ka refinement in krtiyon main saaf jhalakta hai…Unhe bahut badhayee!

    …Saath hi shukriya is blog ka, jisne aisi kaviton ko hum tak pahuchaya….

  23. बहुत सुन्दर और प्रभावशाली कविताएँ हैं पूर्णमा वर्मन की विशेष रूप से हाशिये पर औरत कविता में बहुत सधे हुए शिल्प में बात कही गई है। वधाई ।

  24. लोग नहीं जानते
    दूसरों के लिये खटने वाले
    अपना भी कर सकते है कायापलट

    एकदम सटीक और आज के सन्दर्भ में ..
    सुंदर रचनाओं के लियें पूर्णिमा दी ! आपको बधाई…
    आभार प्रभात जी…

  25. अच्छी अनुभूतियां…
    सिर्फ़ एक सवाल….. औरत हाशिये पर कविता में औरत कहां है

  26. Im obliged for the blog article.Really looking forward to read more. Really Great.

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