आशुतोष कुमार का यह लेख आंखें खोल देने वाला है- जानकी पुल.
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सौ बार दुहराने से झूठ सच हो जाता है , गोएबल्स का यह सिद्धांत साम्प्रदायिक दक्षिणपंथी सोच की जीवनधारा है. सामने दिख रहे सच को झुठलाने के लिए पहले अपने अतीत को झुठलाना जरूरी है , वे जानते हैं.
झूठे प्रचार, आंदोलन और पाठ्यपुस्तकों के जरिये इतिहास को झुठलाते हुए वे कभी किसी ऐतिहासिक मस्जिद को एक काल्पनिक मंदिर के खंडहर में बदल देते हैं , कभी कल्पना के समंदर में बने हुए अंध-आस्था के पुल पर मिथकीय बंदरों की तरह उछलकूद मचाने लगते हैं और कभी ताजमहल को तेजो-महालय का अपभ्रंश साबित करने में जुट जाते हैं . वे हडप्पा की आकृतियों / इबारतों तक में फेर- फार कर के उन्हें वैदिक मंत्रों में बदलने में जुटे हुए हैं .
मैं यह देख कर अवसन्न हूँ कि वे हमारे महान आधुनिक कवियों तक का भगवाकरण करने का अभियान चला रखा है . वे झूठी कवितायें लिख लिख कर उन्हें महान कवियों के नाम पर स्थापित करने में लगे हुए हैं . नया मीडिया उनके लिए वरदान साबित हो रहा है .
इस का एक उदाहरण कविता कोश है , जो हिन्दी जन के लिए अमृतकोष की तरह प्रिय रहा है . लेकिन इसमें विष घोला जा रहा है . झूठी विषैली कवितायें मिलाई जा रही हैं . कविता कोश के ढीले संपादन से इस काम में उन्हें भरपूर मदद मिल रही है .
अगर हम इस दिशा में जागरूक न हुए तो अगली पीढ़ियों के हमारी कविता की सच्ची विरासत की जगह झूठी विषैली कवितायें ही मिलेंगी .क्या हम इतिहास को अपना मुंह दिखा सकेंगे ?
कविता कोश पर रामधारी सिंह दिनकर के खाते में दर्ज इस नकली कविता को ध्यान से पढ़िए , जिस पर आज सुबह अपने छात्रों के लिए कोई राष्ट्रवादी कविता खोजते अचानक वन्दना की नज़र पडी , और उसने चौंक कर मुझ से पूछा कि महाकवि की मुलाक़ात अफजल गुरु से कब और कैसे हुयी . आप भी पढ़िए , और पता लगाइए कि कविता कोश पर कितने कवियों को इस विष -संक्रमण का शिकार बनाया गया है .
अगर हमने जल्दी नहीं की तो हम अपनी कहानियों से ही नहीं कविताओं से भी हाथ धो बैठेंगे.
उठो पार्थ गांडीव संभालो / रामधारी सिंह “दिनकर”
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एक बार फिर हुए धमाके, फिर से हुआ सवाली मैं
फिर तूफ़ान उठेगा शायद एक चाय की प्याली में
एक बार फिर भाषण होंगें, कुछ नारे लग जायेंगे
एक बार फिर श्वेत कबूतर गगन उड़ाये जायेंगे
एक बार फिर दोहराया जायेगा, गौतम गान्धी को
शब्द उछाले जायेंगे, ” हम रोकेंगे इस आन्धी को “
कब तक ओट शिखण्डी वाली कारण बने पराजय का
कब तक बूझ नहीं पायेंगे हम शकुनि का आशय क्या ?
कितनी बार गिनेंगे गिनती, शिशुपाली अपराधों की
कितनी बार५ एड़ियाँ अपनी लक्ष्य बनेंगी व्याधों की
कितनी बार परीक्षा आखिर लाक्षागॄह में देनी है
कब तक थोथे शान्ति-पर्व की हमें दुहाई देनी है
कब तक नगर जलेगा ? शासक वंशी में सुर फूँकेंगे
कब तक शुतुर्मुर्ग से हम छाये खतरों से जूझेंगे
कब तक ज़ाफ़र, जयचन्न्दों को हम माला पहनायेंगे
कब तक अफ़ज़ल को माफ़ी दे, हम जन गण मन गायेंगे
सोमनाथ के नेत्र कभी खुल पाये अपने आप कहो
उठो पार्थ गाण्डीव सम्भालो, और न कायर बने रहो
जो चुनौतियाँ न स्वीकारे, कायर वह कहलाता है
और नहीं इतिहास नाम के आगे दीप जलाता है.
गरिमापूर्ण ढंग से आपने मामले का अंत किया .आशुतोष की चिंताएं जायज हैं .
मैं आपकी बात से सहमत हूँ सहज नहीं है इतने बड़े कोश का निर्माण …बधाई और शुभ-कामनाएँ …सराहनीय हैं आपके और कविता कोश की टीम के प्रयास … चूक हो जाना स्वभाविक है ..
पकड़ में तो आया मामला। कविता कोष के सम्बन्ध में ललित जी भावुकता भरी बातें न कीजिये। सही है कि ऐसे काम पूरे समाज के लिए उपयोगी हैं। लेकिन सबको सम्मान देने की कोशिश में आप दिनकर के करीब चालू कविता लिखने वाले को रख देंगे तो यह सेवा से कहीं ज्यादा अनर्थ होगा। रुचियों को बनाना बड़ी जिम्मेदारी का काम है।
वन्दना जी को धन्यवाद।
रियूमर स्पृच्युएटिंग सोसाईटी (RSS) का तो काम ही अफवाहें फैलाना है। गरीबों के हमदर्द स्वामी विवेकानंद जो बामपंथ के पथ -प्रदर्शक होने चाहिए थे RSS द्वारा 'विवेकानंद विचार मंच' और विवेकानंद स्कूलों द्वारा वैमनस्यता का पाठ पढ़ाने मे प्रयोग किए जा रहे हैं। सरदार भगत सिंह जो आर्यसमाज की मार्फत कम्युनिस्ट बने थे RSS के खिलौना के रूप मे प्रयोग किए जा रहे हैं। जब तक बामपंथ 'धर्म'=सत्य,अहिंसा (मनसा -वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्यआदि सद्गुणों को अफीम कह कर ठुकराता रहेगा तब तक शोषक/उत्पीड़क ढोंग-पाखंड-आडंबर के मसीहाओं के माध्यम से खुराफात को धर्म बता कर जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते रहेंगे। यदि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी को भी RSS ने अपना मोहरा बनाना चाहा है तो विस्मय कैसा?
सभी को नमस्कार। उक्त कविता को कोश से हटा दिया गया है। लेकिन कुछ मित्रों की प्रतिक्रिया को लेकर मैं चिंतित हूँ। कविता कोश जैसा विशाल कोश यदि आज आपके लिए कम्प्यूटर स्क्रीन पर उपलब्ध है तो इसके पीछे अपने जीवन के हज़ारों घंटे लगाने वाले योगदानकर्ताओं की मेहनत को सराहने की बजाए आप ऐसी बाते कर रहे हैं जैसे कि….
कविता कोश विकिपीडिया की तरह ही सामाजिक योगदान से बना एक विशाल स्रोत है। बहुत सी त्रुटियाँ विकिपीडिया के तथ्यों में भी हैं। विकिपीडिया की तरह ही कविता कोश में भी पाठकगण त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाते हैं और त्रुटि-सुधार किया जाता है। 56,000 पन्नों के कोश में जिसे बहुत से स्वयंसेवकों ने मिलकर बनाया हो -यदि उसमें त्रुटियाँ ना मिले तो यह बेहद आश्चर्य की बात होगी!
आप जैसे सुधिजनों से अपेक्षा है कि वे कविता कोश व भारतीय साहित्य के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए इस तरह की त्रुटियों के बारे में फ़ेसबुक पर लिखने की बजाए कोश से जुड़े किसी भी सदस्य से सम्पर्क करें और उसे त्रुटि के बारे में बताएँ ताकि त्रुटि को शीघ्र सुधारा जा सके।
कोश के योगदानकर्ताओं की साहित्यिक समझ भिन्न-भिन्न है लेकिन फिर भी वे अपने समय का योगदान देते हैं। कविता कोश के सभी योगदानकर्ता साहित्यिक लोग नहीं हैं। कई ऐसे हैं जिन्हे साहित्य से कोई लेना-देना नहीं -वे केवल अपने समय का योग देते हैं। कॉपी-पेस्ट भी करते हैं –और यदि किसी झूठे और ग़लत स्रोत से कॉपी-पेस्ट हो गया तो वही ग़लती कविता कोश में भी आ जाती है। कविता कोश में कोई नहीं है जो दिन-रात बैठकर केवल कविताएँ पढ़े और प्रामाणिकता की जांच करे। कविता कोश प्रामाणिकता के विकास हेतु आप जैसे साहित्य जानने वाले लोगों पर निर्भर करता है। हर योगदानकर्ता अपनी समझ के मुताबिक सही काम करने की कोशिश करता है -लेकिन मनुष्य से ग़लतियाँ तो होती ही हैं। ज़रूरत यह है कि सामाजिक परियोजनाओं को सहयोग दिया जाए ना कि उसमें योगदान देने वाले कुछ मेहनती योगदानकर्ताओं के श्रम पर उंगली उठाई जाए। मैं यहाँ अपनी बात नहीं कर रहा -मैं कोश के अन्य सभी योगदानकर्ताओं की लगन और मेहनत का प्रतिनिधि बनकर आप लोगों से प्रार्थना कर रहा हूँ कि आलोचना नहीं -सहयोग कीजिए।
त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए मैं आशुतोष जी और आप सभी मित्रों का आभारी हूँ। मैंने इसे सही रूप में ही लिया है -लेकिन मेरी प्रार्थना है कि आइन्दा इस तरह के मुद्दों को सार्वजनिक बहस ना बनाया जाए और "कविता कोश, दिनकर और अफ़ज़ल गुरु" जैसे चटपटे शीर्षक देने से बचा जाए। कोश में त्रुटियाँ है -मैं मानता हूँ -आप ईमेल के ज़रिए त्रुटि के बारे में बताइये -सुधार कर दिया जाएगा। लेकिन इस तरह से सार्वजनिक आरोप लगाना कविता कोश के योगदानकर्ताओं के उत्साह को तोड़ता है। कोश के पास उंगलियों पर गिने जा सकने लायक योगदानकर्ता हैं -साहित्य प्रेमियों को चाहिए के वे उनका उत्साह इस तरह ना तोड़ें।… ग़लतियाँ हो जाती हैं… सुधार में मदद दीजिए लेकिन योगदानकर्ताओं को कटघरे में मत लाइये।
अगली बार जब आप कविता कोश का प्रयोग करें तो यह ज़रूर सोचें की इसे कई लोगों की निस्वार्थ मेहनत ने आपके लिए बनाया है। आप उन्हें कुछ और नही दे सकते तो कम-से-कम उन पर व्यर्थ के आरोप लगाकर उनका उत्साह तो ना तोड़ें।
आलोचना करनी है तो उन तथाकथित कवियों की करें जो इंटरनेट पर खुले-आम दूसरों की रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं। कविता कोश एक संकलक है –जिसकी प्रामाणिकता को सुधारने के लिए मैं आप सभी से सहयोग की प्रार्थना करता हूँ।
मैं कविता कोश में अपने साथी योगदानकर्ताओं के साथ हूँ और यदि इस तरह की सार्वजनिक आलोचना करना ही उद्देश्य है तो मेरी आलोचना कीजिए।
यह निश्चय ही धूर्तता पूर्ण है, आशुतोष जी और वंदना बहन ने ये भंडाफोड़ करके बड़ा काम किया है, मैनें कोष के संयोजक ललित जी को सूचित किया है देखते हैं कि क्या जवाब आता है। सादर
संपादन कि दिक़्क़त नहीं है। कविता कोश में कोई भी कुछ भी सुधार सकता है, आप भी। आपने रजिस्टर किया हो तो देख सकते हैं इस कविता को किस यूज़र ने वहाँ पर डाला है। मुझे उस यूज़र का नाम लेने की ज़रूरत नहीं है।
पन्ने को डिलीट करने के लिए तो
और इस कविता की किसी लाइन को इनवर्टेड कॉमा के साथ सर्च किया तो इधर मिली। किसी राकेश खंडेलवाल की लिखी हुई है।
लीजिए, इस कमैंट को लिखने तक वो पन्ना मिटाया जा चुका है।
पैनी नज़र का कमाल है. बधाई, वंदना को, और आशुतोष को भी, इसे सही परिप्रेक्ष्य देकर हम सबसे साझा करने के लिए. हिटलर और गोएबल्स के मानसपुत्र कैसे-कैसे खेल खेल सकते हैं, इसका साक्ष्य प्रस्तुत करती है यह टीप. ज़ाहिर है, इसका एक मंतव्य अपनी साहित्यिक विरासत के साथ खिलवाड़ करना भी है, और बिना काल-क्रम की परवाह किए हुए आगे आने वाली पीढ़ियों को दिग्भ्रमित करना तो है ही. ये शक्तियां वैसे भी इतिहास का मनमाना पाठ करने के लिए कुख्यात हैं ही.
वीभत्स और भयंकर है यह ….यह हमारी समूची सांस्कृतिक धरोहर के लिए खतरा है !कविता-कोष के संपादक इसे संज्ञान में लें और इस प्रकार के प्रदुषण को रोकें ,यह उनके कोष की विश्वसनीयता के लिए भी खतरनाक है !
बहुत ही विभत्स है यह