कहानी सुनने वाले जो भी हैं वो ख़ुद कहानी हैं
कहानी कहने वाला इक कहानी की कहानी है
– जौन एलिया
कहानी कहना-सुनना किसे पसंद नहीं होता. कहानियाँ लिखने के बहुत पहले से हम कहानियाँ कहते आये हैं. कहानी शब्द का अर्थ है कहना. कहानी का लिखित रूप अधूरा है जब तक कोई उसे रोचक ढंग से कहे न. हम कहानियाँ क्यों सुनाते हैं? असंख्य वजह हो सकती हैं. बचपन में डांट से खुद को बचाने के लिए हम कहानी कहना शुरू करते हैं. याद करिए, कैसी मासूम कहानियाँ होती थीं जिन्हें सुनाकर हम समझते थे कि हमने किला फतह कर लिया है मगर हमसे बड़े उन कहानियों में छिपे हुए झूठ पहचानने में क्षण भी नहीं लगाते थे. हाँ, फायदा इतना भर हो जाता था कि वे कहानियाँ उस फटकार से बचा लेती थीं जो गलती करने पर हमें पड़ने वाली होती थी. छोटे बच्चों की अबोध कहानियों पर उनका हृदय रीझ जाता था. यहीं से कहानी सुनाने के बीज पड़ते हैं जो बहुत से लोगों में आगे जाकर विकसित हो जाते हैं. ‘हांकने वाले’ कई लोगों से हमारा पाला रोज़मर्रा के जीवन में पड़ता रहता है. पीठ पीछे कोई उनके लिए कुछ भी कहे पर उनके लोकप्रिय होने में कोई शक नहीं हैं. ऐसे लोग किसी भी महफ़िल की जान होते हैं और नयी कहानियों के लोभ में लोग उनसे मक्खियों की भांति उनसे चिपक जाते हैं.
पहले की गाँव-चौपालों में बतकही की परंपरा ही मनोरंजन का एकमात्र साधन हुआ करती थी. किसी एक वृद्ध के पास इतनी कहानियाँ होती थीं कि वो सुनाते नहीं थकता था. उसकी पोटली से निकलकर असंख्य कहानियाँ आँखों के आगे आकार लेने लगती थीं. ये कहानियाँ उन लोगों की होती थीं जो वक़्त के साथ बीत गए थे, ये कहानियाँ उन लोगों की भी होती थीं जो कभी इस संसार में आये ही नहीं मगर कल्पना की डोर से बंधे वे लोग वक़्त की चौहद्दियां पार कर कहने वाले की जुबां से निकल कर जीवंत हो उठते. कितने ही लोगों ने किस्से-कहानियों के नायक-नायिकाओं को अपना हृदय अर्पित कर दिया होगा और कितने ही लोग कहानियों में बसने वाले लोगों की खोज में, प्रतीक्षा में जीवन भर जिए होंगे.
कहानी कहना भी एक कला है. जो अच्छी कहानी लिखता हो आवश्यक नहीं वो अच्छी कहानी कह भी सके. अच्छा कथावाचक बातों को रस से भिगो कर सुनने वालों के समक्ष इस प्रकार परोसता है कि सुनने वाला कौतुहल से हिल भी न सके और आगे क्या होगा की लड़ी से बंधा बैठा रहे. कामसूत्र की चौंसठ कलाओं में से एक ‘कहानी कहने’ को कला भी है. जिसको यह कला आती होगी उसको कभी अपने भरण-पोषण की चिंता नहीं करनी होगी और प्रसिद्धि उसके द्वार पर होगी. ब्राह्मण सदियों से कहानियाँ सुनाकर अपने परिवार का पेट पालते आये हैं. राजाओं के दरबार में भी कहानी सुनाने के लिए एक व्यक्ति अवश्य हुआ करता था. आधुनिक काल की फ़िल्में भी उसी कला का परिष्कृत रूप है.
पहली कहानी कहाँ से आई होगी. शायद प्राकृतिक आपदा का वर्णन, वीरता से परिपूर्ण किस्से, मन में छिपे डर या आकांक्षाएं शब्दों के रूप में प्रकट हुई होंगी. लिखना सीखने से पहले कुछ भी सीखने के लिए जब स्मृति पर निर्भर रहना होता था तब उन बातों को कहानी में गूंथ कर याद रखना अपेक्षाकृत सरल था. मनुष्य की यात्राओं के साथ ये कहानी दूर-दराज़ के देशों तक जा पहुंचतीं और वापसी में नयी कहानियाँ वे लोग अपने साथ लाते जो स्थानीय परम्पराओं में रंग बिलकुल ही नया रूप धारण कर लेतीं. ये कहानियाँ सिर्फ गद्य-रूप में नहीं होती थीं बल्कि काव्य, चित्रकारी, गीत, नृत्य किसी भी शैली में हो सकती थीं.
हिन्दुओं के महाकाव्य ‘महाभारत’ के आरम्भ में व्यास कहते हैं, “अगर आप ध्यानपूर्वक सुनेंगे तो अंत में कुछ और होंगे.” कहानियों का हमारे जीवन पर गहरा असर होता है. कहानियों का उपयोग सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि हमारी अगली पीढ़ी को शिक्षित करने के लिए, हमारी संस्कृति को आगे हस्तांतरित करने के लिए भी करते हैं. छोटे बच्चों को कहानियाँ सुनाकर उनमें नैतिक मूल्यों का संचार करते हैं. कहानियाँ लोगों को एक धरोहर के समान संगठित करती हैं. हमारे लोकगीत भी इसी कहानी कहने की परंपरा को कायम रखे हुए हैं. इन कहानियों के अर्थ सुनने वाला अपने अनुसार आत्मसात करता है. सबके जीवन का सत्य अलग होता है और एक ही सत्य सबके लिए अलग अर्थ रख सकता है. कहानी सुनकर लोगों की जीवन –दिशा बदल जाती है. एक कहानी याद आती है जिसमें गरुड़ पुराण सुनते हुए एक प्रेत की मुक्ति हो जाती है. मृत लोगों को जो तर दे जीवित लोगों को कहानियाँ कितना बदल देती होंगी.
विष्णु शर्मा ने राजकुमारों को शिक्षित करने के लिए पंचतंत्र रचा. उपदेशों को सरस बनाने के लिए भी कहानियों का प्रयोग किया जाता रहा है.. ओशो द्वारा मुल्ला नस्सीरुद्दीन के किस्से मशहूर रहे हैं. अरेबियन नाइट्स की कहानियों को कौन भुला सकता है. एक सनकी राजा से अपनी जान बचाने को लड़की हर रात उसे एक अधूरी कहानी सुनाती थी ताकि उसे एक और रात की ज़िन्दगी मिल जाए. जीसस के ऊपर पहली लिखित सामग्री उनकी मृत्यु के चालीस वर्ष बाद की तारीख में है. यही हाल दुनिया भर के महाकाव्यों और उपाख्यानों का है. निश्चित रूप से ये कहानियाँ ज़ुबानी थीं जिनको बाद में लिपिबद्ध कर लिया गया.
कई जगह कहानी कहने वाले स्वयं कहानियों सी गुत्थी बने हुए हैं. कई सभ्यताएँ कथावाचकों को आध्यात्मिक/ आत्मिक ज्ञान से परिपूर्ण मानती हैं. वे मानते थे कि कबीलाई चिकित्सकों की भांति उनके पास शक्तियां होती हैं. मेरी नज़र में कहानी कहने वाले खानाबदोश होते हैं जो जगह-जगह से कहानी एकत्रित करते जाते हैं और अपनी विरासत लोगों को सौंपते चलते हैं. बहरहाल, शब्दकोश में कहानी कहने वाले को झूठ गढ़ने वाला भी कहा है लेकिन उन कहानियों में कितना झूठ होता है और कितना सच यह तो कहानी सुनाने वाला भी नहीं जानता होगा.
– दिव्या विजय
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