यह रपट जमशेदपुर में चलाने वाली साहित्यिक गोष्ठी की है. साहित्य-सत्ता के केंद्र से दूर की गोष्ठियां अधिक रचनात्मक होती हैं. रपट पढ़िए. अंदाजा हो जायेगा- मॉडरेटर
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छ: वर्षों से निरंतर चल रही सीताराम डेरा की हमारी गोष्ठी का नामकरण हुआ। डॉ आशुतोष झा के सौजन्य से अब से इसका नाम होगा ‘सृजन संवाद’। तो कल सृजन संवाद गोष्ठी हिन्दीतर भाषाओं पर केंद्रित थी। ऋतु शुक्ला ने किरन देसाई के उपन्यास ‘हल्लाबलू इन ग्वावा ऑर्चर्ड’ की बहुत इनीमेटेड प्रस्तुति की। सबने एक स्वर से कहानी और प्रस्तुति दोनों की प्रशंसा की। उसके बाद बारी आई मंजर कलीम साहेब की। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम की ‘मेरा सफ़र’ तथा कमर रईस की ‘मशविरा’ सुनाई साथ ही अहमद फ़राज़ के कई शेर सुनाए। वातावरण थोड़ा गंभीर तथा गमगीन हो उठा। डॉ. संध्या क्यों पीछे रहतीं, उन्होंने अपनी एक गजल सुनाई और खूब वाहवाही लूटी। तो इस तरह हास्य, कटाक्ष, उदासी और खुशी से भरी विभिन्न अनुभूतियों से समृद्ध शाम का हमने आनंद उठाया। सुहाना मौसम भी हमारे साथ था। उसी की कुछ छवियाँ आपसे साझा हो रही हैं।
गोष्ठी का ‘सृजन संवाद’ नाम बहुत शुभ रहा। नामकरण के अगले ही दिन यानि २४ एप्रिल २०१७ को इसमें शिरकत करने कई नए-पुराने लोग पहुँचे। साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली के विशेष कार्य अधिकारी देवेंद्र कुमार देवेश से कविताएं सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने सपने सीरीज की अपनी चार कविताओं का पाठ किया यय्जा अकादमी की योजनाओं से परिचित कराया। एक और अच्छी बात हुई गोष्ठी में जाने-माने कथाकार जयनंदन भी काफ़ी दिनों बाद पधारे। डॉ अशोक अविचल, अखिलेश्वर पाण्डेय, डॉ. चेतना वर्मा, आभा विश्वकर्मा, अभिषेक कुमार मिश्रा ने अपनी-अपनी कविताएं सुनायी। गोष्ठी को गरिमा प्रदान करती हुई डॉ शांति सुमन ने अपना सुप्रसिद्ध – याद बहुत आते हैं घर के परिचय और प्रणाम… गीत सुनाया। समयाभाव के कारण कहानी पाठ भविष्य के लिए रखने की बात हुई। डॉ. विजय शर्मा ने गोष्ठी का संचालन किया। उनकी नई पुस्तक देवदार के तुंग शिखर के लिए सबने उन्हें बधाई दी।