प्रसिद्ध पत्रकार, युवा लेखक आशुतोष भारद्वाज आजकल शिमला एडवांस्ड स्टडीज में शोध कार्य कर रहे हैं. शिमला के बदलते मौसम पर उनका यह सम्मोहक गद्य देखिये- मॉडरेटर
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शिमले में इन दिनों कहीं भूले से भटक आयी बूंदें गिर रही हैं. हाल ही शिमले में कुछ इन्सान नीचे मैदानों से रहने चले आये हैं. उन्हें सर्दियों की ये बूंदें बर्फ की दस्तक लगा करती हैं. वे रात भर अपनी कांच की खिड़की से बाहर पहाड़ को देखते रहते हैं, बारीक़ डर होठों पर लिए कि कहीं उनके अनदेखे ही मौसम की पहली बर्फ गिर न जाये.
परसों शनिवार था. अमावस्या भी. कल इतवार को भी अमावस का ही मौसम था. लेकिन अँधेरे में भी खिड़की के सामने सवा सौ बरस पुराने ट्यूलिप पोपलर के दरख़्त की पीली पत्तियां बेइंतहा हवा में डोल रहीं थी. ओक, देवदार और चीड़ के इस पहाड़ी जंगल में अकेला दरख़्त जिसकी शाखों पर हरे के बजाय पीला रंग उतरा रहता है.
तो वे नए निवासी रात भर ख्वाब देखते रहते हैं पोपलर और देवदार की पत्तियों पर सफ़ेद बर्फ का. लेकिन बर्फ नहीं गिरती. आज सुबह किसी से पूछा जो इस पहाड़ को बचपन से देखता आया है, और वो बिफरती हवा को इशारा कर हंसने लगा.
“बर्फ! इस मौसम में?”
जब बर्फ बरसेगी उससे पहले सब शांत हो जायेगा. हवा, परिंदे, तितलियाँ, देवदार — सब उसके लिए रास्ता छोड़ देंगे. तिलिस्मी सन्नाटा आसमान और पहाड़ पर काबिज हो जायेगा, तब किसी चुप रोते इन्सान के आंसुओं की तरह आकाश से बेआवाज बहती आएगी बर्फ. आप अपनी डेस्क पर लिखते रहोगे, घंटा भर बाद निगाह खिड़की से बाहर जाएगी तो चौंक जाओगे —- लॉन की घास पर, पोपलर के पीलेपन पर सफ़ेद परत न जाने कहाँ से आ बिछी होगी.
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प्रेम की ही तरह, बर्फ से अधिक सम्मोहक बर्फ का ख्वाब होता है.
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एस्किमो की भाषा में बर्फ के लिए सौ से अधिक शब्द हैं. और हिमाचल में?