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‘लौंडे शेर होते हैं’ उपन्यास का एक अंश

आज युवा लेखन में तरह तरह के प्रयोग हो रहे हैं। कथा से लेकर शीर्षक तक तरह तरह के आ रहे हैं। युवा पाठकों को हिंदी से जोड़ पाने में इस तरह के प्रयास सार्थक भी हो रहे हैं। हिंद युग्म से ऐसा ही एक उपन्यास आया है कुशल सिंह का ‘लौंडे शेर होते हैं’। उसका एक अंश पढ़िए- मॉडरेटर

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क्या होगा जब कैरियर की चिंता में घुलते हुए लड़के प्रेम की पगडंडियों पर फिसलने लग जाएँ? क्या होगा जब डर के बावजूद वो भानगढ़ के किले में रात गुजारने जाएँ? क्या होगा जब एक अनप्लांड रोड ट्रिप एक डिजास्टर बन जाए? क्या होगा जब लड़कपन क्रिमिनल्स के हत्थे चढ़ जाए?

‘लौंडे शेर होते हैं’ ऐसे पाँच दोस्तों की कहानी है जो कूल ड्यूड नहीं बल्कि सख्त लौंडे हैं। ये उन लोगों की कहानी है जो क्लास से लेकर जिंदगी की हर बेंच पर पीछे ही बैठ पाते हैं। ये उनके प्रेम की नहीं, उनके स्ट्रगल की नहीं, उनके उन एडवेंचर्स की दास्तान है जिनमें वे न चाहते हुए भी अक्सर उलझ जाते हैं। ये किताब आपको आपके लौंडाई के दिनों की याद दिलाएगी। इसका हर पन्ना आपको गुदगुदाते हुए, चिकोटी काटते हुए एक मजेदार जर्नी पर ले जाएगा।

आप इस किताब को बुक करें, पढ़े, और अपना प्यार दें

जय हो, जवानी ज़िंदाबाद!

 

लौंडे शेर होते हैं: एक अंश

 

सनी के घरवाले तो उसके पीछे ही पड़ गए थे और उधर सनीबेचारा इस मसले पर सोचते हुए जल-भुनकर ख़ाक हुआ जा रहा था। शादी अभी हुई नहीं थी सिर्फ़ बात चली थी और सनी अभीसे परेशान था, जैसे शादी के बोझसे दबा हुआ कोई गृहस्थ आदमी हो।सनीटेंशनमें था और बाक़ी सब मज़े ले रहे थे।

“तो भाई इसमें प्रॉब्लम ही क्या है? आख़िर शादी तो एक न एक दिन करनी ही है न! अभी कर ले, क्या फ़र्क़ पड़ता है। तुम्हारा घर बस जाएगा। कभी-कभी हमको भी घर का खाना नसीब हो जाया करेगा। भाभी के हाथ का।”पांडेय ने सनी की मुश्किल आसान करने की कोशिश करते हुए कहा।

“अरे यार जे बात नहीं है। सोच रहा हूँ कि कटेगी कैसे? तनख़्वाह इतनी ज़्यादा तो है नहीं कि दो लोगों की गुज़र सके। ऊपर से दिल्ली की महँगाई, रोज़ के ख़र्चे। पुलिस की भरती भी न निकली है दो साल से कि ट्राई मारें।ऊपर से घर वालों ने लड़की वालों को सैलरी बढ़ा-चढ़ाकर बता राखी है।”सनी बड़ी देर बाद कुछ बोला।

“लेकिन तू तो कह रहा है कि लड़की भी गुड़गाँव में नौकरी करती है। शादी के बाद तो तेरी सैलरी भी डबल हो जाएगी न!” दीक्षित ने कहा।

“अरे यार ये भी तो एक समस्या है। घरवाले बता रहे थे उसकी सैलरी हमसे ज़्यादा है। अब बताओ कोई ईगो है कि नहीं हमारा?”सनी का मेल ईगो चिल्लाने लगा।

“लेकिन यार ये भी तो हो सकता है कि तुम्हारी तरह उसके घरवालों ने भी बात को बढ़ा-चढ़ाकर बताया हो!”संजू ने अपना तर्क दिया।

इस तर्क से सनी को कुछ राहत पहुँची। दरअसल बात सिर्फ़ इतनी ही नहीं थी।सनी हमेशा से इमैजिन करता रहा था कि वो किसी लड़की से प्रेम की पींगे बढ़ाएगा। उसे लव लेटर लिखेगा। घंटों चैटिंग-शैटिंग होगी और रात-रात भर बातें करने के बाद प्यार परवान चढ़ेगा।फिर फ़िल्मों की तरह घरवालों को मनाने के जतन किए जाएँगे तब कहीं बड़ी मुश्किलें झेलने के बाद शादी होगी।‘ऐंड देन दे विल हैप्पिली लिव्ड आफ़्टर’ वाला साइन स्क्रीन पर लिखा आएगा। मगर आजतक कोई लड़की उसकी लाइफ़में नहीं आई थी और वो खोली के बाक़ी लोगों की तरह सिंगल और कुंठित था। लेकिन आज जब मिन्गल होने का टाइम आया था तो पता नहीं क्योंसनीके दस्त छूटे जा रहे थे!

“यार ये सब तो ठीक है लेकिन तूने अभी ‘डिंपल आई लव यू’ वाली कहानी नहीं बताई। आख़िर ये डिंपल थी कौन बे?” आशू ने पुरानी बात याद दिलाई।

सनी गंभीर हो गया और एक लंबी-सी साँस खींचकर बोला“यार ये एक बहुत पुरानी कहानी है हमारे बचपने की। हम संग में ट्यूशन पढ़ते थे।बड़ाफूट-फूटकर हँसती थी वो। उसकी एक दाँत एक्स्ट्रा थी, बिलकुल मौसमी चटर्जी की तरह। इसी से मुझे उसकी हँसी बड़ी अच्छी लगती थी। वो जब बातें करती तो नज़रें ज़मीन पर गड़ा लिया करती।पढ़ने में बड़ी तेज़ रही यार वो और हम तो शुरू से ही अलजेब्रा में फिसड्डी रहे।” कहानी सुनाते हुए सनी अपने बचपन में खो गया।

“उसे इम्प्रेस करने के लिए घर से मैथ की प्रैक्टिस करके जाता था। अभी भी अच्छे से याद है, जहाँ वो बैठा करती थी वहाँ मैंने परकार से खोद-खोदकर दिल की शेप का अमीबा बना दिया था।”सनी अपनी यादों में घुलकर बोले जा रहा था।

“लेकिन यार दिल और अमीबा इन दोनों का क्या रिलेशन है?” दीक्षित ने सनी को टोक दिया।

ऐसे अचानक से रोमांटिक मूड में कुतर्क करने से सनी थोड़ा डिस्टर्ब हुआ और दीक्षित को घूरते हुए बोला“अबे परम लंठ चूतिये, साइंस पढ़ी होती तो पतो होती न। दिल टूट भी सके है, लेकिन अमीबा टूट केभी अमर रेहवे है इसलिए। तुम सारेआर्ट्स वाले थोड़े ही न जानोगे।खाली गृह विज्ञान ही पढ़ते रह गये तुम।थोड़ा पढ़ लिए होते तो कुछ बन न जाते। लव लेटर ही लिखते रहे ज़िंदगी भर तुमझापड़ी के!”

“जाने दे न बे। तू कंटिन्यू कर सनी।”संजू बोला।

“यार का बताएँ वो तो टेम ही अलग हतो। जब ट्यूशन जाने को इंतज़ार करे करते थे। उसकी गली वाले मोड़ तक उसे छोड़कर आता था। दो किलोमीटर एक्स्ट्रा साइकिल चलानी पड़ती थी डेली, लेकिन बाबा क़मस कभी अफ़सोस नहीं हुआ। घर आने के बाद रोज़बब्बू मान और कुमार सानू की कैसेट फ़ुल वॉल्यूम पर बजाया करता था। न जाने कितनी बार सोन दी झड़ी नी लगी सोन दी झड़ी और पहला ये पहला प्यार तेरा मेरा सोनी सुना था। साला रील अगर फँस जाती थी तो पेंसिल घुमा-घुमाकर चढ़ाता था। हफ़्ते में कम से कम एक बार तो ज़रूर उसके घर पीसीओ से कॉल करता था इसी उम्मीद में कि शायद डिंपल फ़ोन उठा ले। लेकिन उसकी प्रोबैबिलिटी इतनी कम रहती थी कि बाई चांस ही उसने कदी फ़ोन उठाया होगा। लेकिन फ़ोन उठाने का भी क्या, एक बार भी डिंपल से आगे नहीं बढ़ पाया। कभीनहीं कह पाया कि डिंपल आईलवयू।”सनीचुप हो गया।

“फिर…! फिर क्या हुआ भाई।”पांडेय ने पूछा।

“फिर क्या यार। हाई स्कूल के बाद उसने बायोलोजी ले ली और उसके बाद अपनी अलजेब्रा धरी रह गई ख़ाली पासवर्ड बनकर।”

सनी ने उदास होकर मुँह नीचे कर लिया और बाक़ीसब खिलखिला रहे थे।

“भाई तेरी कहानी सुनकर मुझे भी अपने पुराने दिन याद आ गए। सुनोगे?” दीक्षित ने कहा।

“हाँ बेन्चो सुनाओ सुनाओ। तुम्हारी मोहब्बतों के क़िस्से सुनने ही तो सब वेले बैठे हैं!” आशू बोला।

“अरे सुनाओ न दीक्षित भाई।”पांडेय ने ज़ोर देकर कहा।

दीक्षित पूरे शायराना मूड में आकर बोला “चचा ग़ालिब ने अर्ज़ किया कि ‘इश्क़ ने हमें निकम्मा कर दिया ग़ालिब, वर्ना आदमी हम भी काम के थे।इश्क़ के इस दौर से हम भी गुज़रे थेयार! मगर इश्क़ कभी मुकम्मल नहीं हुआ।ये ऊपरवाले का खेल ही है, जिसने आशिक़ाना मिज़ाज तो दे दिए मगर कमबख़्त एक महबूब देना गवारा नहीं हुआ। हाँ हो सकता है अगर महबूब दे दिया होता तो ये मिज़ाज, ये हुनर न दिया होता। सीने में दर्द न होता तो काग़ज़ पर कैसे उतारता सूनेपन के ज़ख़्मों को!”

“बे पूतेखानी के कुछ बताएगा भी या ख़ाली शायरी के पाद ही मारता रहेगा। भेंचो घंटा नी पल्ले पड़ रहा कुछ!”दीक्षित की बात को काटकर आशू बीच में कूद पड़ा।

“अबे मेरी कहानी के बीच में कोई घुसकर डिस्टर्ब नहीं करेगा। पूरी रिद्म ख़राब कर दी झाँटू ने।” दीक्षित ग़ुर्राकर कर बोला।

फिर से दीक्षित ने कंटिन्यू किया“हाँ तो ये उस दौर की बात हैजब कोई भी लव स्टोरी लव लेटर्स के बिना परवान नहीं चढ़ती थी। प्रेमी और प्रेमिका के अलावा एक और कड़ी होती थी जो बहुत ज़रूरी होती थी और वो थी लव लेटर्स। आजकल ये फ़ेसबुक,व्हाट्सऐप ने सब बिगाड़ दिया है। पहले चिट्ठी आने की बेचैनी रहती थी। दिल में हज़ारों ख़याल और बेचैनियाँ पलती थीं जिसे आशिक़ काग़ज़ पर उतारा करता था। लेकिन आज साला दो-दो मिनट परफ़ोन टुनटुनाता रहता है।”

“भाई लोग, मुझे नबचपन से ही फ़िल्मों का बड़ा शौक़ था। गाने तो जैसे एक बार सुनने से ही रट जाया करते थे।शायरी का भी शौक़ था। बच्चे मेले में जाते थे तो तीर-कमान, हनुमान का मुखौटा, तलवार, गदा लाते थे और मैं पकोड़े और गोलगप्पे के पैसे बचाकर सड़क किनारे लगी हुई दुकानों से शायरी और हिट ग़ज़लों की किताबें ख़रीद कर लाता था। उन्हें पढ़-पढ़कर मर्ज़े-इश्क़ वबाल हो गया।”

सिगरेट का पफ़ खींचकर दीक्षित ने फिर बोलना शुरू किया“पढ़ने में भी ठीक ही था मैं।हिंदी और अंग्रेज़ी की हैंडराइटिंग भी अच्छी थी। इसी वजह से एक दोस्त का लव लेटर क्या लिखा, सारे एरिया में बदनाम हो गया। लौंडे दूर-दूर से अपनी बंदियों के लिए लव लेटर लिखवाने आते थेऔर मैं हर एक बंदी को अपनी माशूक़ा की तरह लेटर लिखता था। मालूम है तुमको, कितना ख़तरनाक और दुखदाई काम होता था वो! रोज़ मेरी एक नई महबूबा होती थी और रोज़ मैं अकेला-तन्हा। रोज़ एक नई प्रेम कहानी में ख़ुद को डुबोता और स्याही से नहीं अपने ख़ून से वो लेटर लिखा करता।ऐसा नहीं है कि मैं ख़ुद को बचाने की कोशिश नहीं करता था। मगर जानते ही हो मीर साहब पहले ही कह गए हैं कि क्या कहें क्या है इश्क़…अबे ये जान का वबाल होता है। तुम साला बचने के लिए ज़ोर लगाते रहो और उधर इश्क़ तुम्हें फँसाने के लिए दुगना ज़ोर लगाएगा। मैंनेसबकी प्रेम कहानियों मेंहज़ारों रंग भरेलेकिन मेरी अपनी कोई कहानी न बन पाई।” दीक्षित ने एक ज़ोर की साँस छोड़कर कहा।

कहानीसुनाते-सुनाते दीक्षित ने माहौल थोड़ा-सा उदास कर दिया था। फिरथोड़ा पॉज़ लेकर सोचते हुए दीक्षित ने बोलना शुरू किया“फिर आख़िरकार एक दिन मुझे मेरी उमराव जान भी मिली। दिल में जो भी इश्क़ था, सब उस पर लुटाने को तैयार था। मैंने उसे सैकड़ों ख़त लिखे। हाँ, वो बात और है कि वो ख़त अब तक मेरी डायरियों और दराज़ों में ही क़ैद होकर रह गए।”

“आगे क्या हुआ?”पांडेय ने बड़ी उत्सुकता से पूछा।

“हुआ क्या यार! एक दिन उमराव जान किसी ज़ोरावर के साथ बाइक पर गलबहियाँ डाले स्पॉट हुई। हमारे दिल को गाय के गोबर की तरह टायर से कट मारकर चल दी। फिर साला उस दिन के बाद किसी के लिए उस टाइप की फ़ीलिंग नहीं आई।” दीक्षित हँसते हुए बोला।

सब हँस रहे थे लेकिन पांडेयथोड़ा दुखी टाइप हो गया और बेचारा मुँह लटका कर बोला“यार हम लोगों की क़िस्मत एक जैसी ही है। हमको भी प्यार हुआ था एक बार, एकदम मोहब्बतें वाला।”

“ओह्हो…क्या बात है..क्या बात है।” बाक़ियों ने शोर मचा दिया।

“फिर आगे क्या हुआ?”

पांडेय ने बोलना जारी रखा“हाँ यार!तब हमने UPSC की तैयारी करनी शुरू ही की थी। तब हम इलाहाबाद में थे। उसी दौरान रचना से हमारी मुलाक़ात हुई थी। वो लोकल ही थी और हमारे ही साथ तैयारी कर रही थी। अक्सर हम हिस्ट्री और पॉलिटिक्स के बारे में उसको बताते रहते थे। कांस्टीट्युशन तो उसके पल्ले ही नहीं पड़ता था। हम ही उसके नोट्स बनवाते और घंटों उसको लेक्चर देते रहते थे। बड़ी देर तक वो बिना पलकें झपकाए हमारी तरफ़ देखती रहती थी।किताब पढ़ते-पढ़ते पन्ने पलटने के लिए जब वो हौले से ज़ुबान में ऊँगली लगाती थी तो उफ़्फ़!!! पूरा का पूरा टाइम ही वहीं रुक जाता था।”

अब रोमांटिक होकर यादों में खोने की बारी पांडेय की थी। वो पूरी रौ में आ गया,“हमारा शर्ट की बाहें चढ़ाकर पहनना उसे अच्छा लगता था। अक्सर हमको टोक दिया करती थी कि बाँहें ऊपर करिए।उसको बिना कोई बात किए शांति से संगम किनारे बैठे रहना बहुत पसंद था। हर शनिवार हम उसको संगम लेकर जाते थे।चश्मे में से झाँकती उसकी आँखें बड़ी प्यारी लगती थी हमको।उसके दाहिने हाथ पर एक बड़ा-सा बर्थ-मार्क था और ठोड़ी के नीचे एक छोटा-सा तिल जो उसके गोरे रंग पर बड़ा फबता था। हम शाम को एक साथ उसके हॉस्टल के पास वाली गुमटी पर चाय पीने जाते थे। वहीं हम घंटों बैठे रहते थे।”

अचानकपांडेय चुप हो गया।

“क्या हुआ पांडेय भैया आगे भी तो बोलो।” दीक्षित ने उसे टोकते हुए कहा।

उदासी से मुँह उठाकर पांडेय बोला,“हम लोग एक ही साथ सारे फ़ॉर्म भरते थे और एक ही साथ तैयारी करते थे।हमसे पहले उसका UPPSC में हो गया। उस दिन हमारा दिलबहुत दुखा।”

“क्यों? क्योंकि उसका तुमसे पहले सिलेक्शन हो गया इसलिए?” आशू ने टोककर पूछा।

“नहीं।”पांडेय ने ग़ुस्से से कहा। फिर धीरेसे बोला,“उसका साथ छूट रहा था, हमें इसका बहुत ग़म था। लास्ट टाइम जब मिले तो उसको भी ऐसा ही लगा था कि हम उसकी सक्सेस से ख़ुश नहीं हैं। लेकिन वो नहीं जानती कि उसका रिज़ल्ट आने के बाद उस चाय की टपरी पर मिठाई बाँटने वाले हम ही थे। बिना कुछ ज़्यादा बात किए वो चली गई।हम वहींठहर गए। फिर न प्यार के मौसम रहे और न उसकी मुस्कुराहटों के। उसके बाद फिर हमें इलाहाबाद रास ही नहीं आया और हम दिल्ली चले आए। तब से यहाँ चूतर घिस रहे हैं। यहाँ साला 22-22 साल की नई छोकरियाँ पहली बार में आईएएस निकाल दे रही हैं और हमसे तोसाला पहली किक में कभी स्कूटर भी स्टार्ट नहीं हुआ।”

पांडेय की बात सुनकर माहौल थोड़ा मेलनकोलिक हो गया था उसे हल्का करने के लिहाज से आशू ने चुटकी लेते हुए कहा,“अरे दादा रे! ससुर एक लड़की तो तुमसे कभी पटी नहीं और ये अल्ताफ़ राजा के गाने सुन-सुनकर बात ऐसी कर रहे हो कि जैसे 10-15 छोड़कर जा चुकी हों!”

“हाँ बेटा जैसे तुम बड़े लेडी किलर हो।”संजू ने आशू को झिड़कने के अंदाज़ से कहा।

“सही कहा!लल्ला कॉलेज में सब हमको लेडी किलर ही तो कहते थे।सनीकी तरह अगर मैं पासवर्ड रखता तो मुझे एक डायरी मेन्टेन करनी पड़ती भाई।”

“बड़े पापी रहे हो मतलब तुम!”संजू ने पलटकर कहा,“इसलिए बेटा आज तुम्हारे पाप का घड़ा भर गया है।”

“मेरा तो मानना है कि भाई लोग जब पाप का घड़ा भर जाए तो उसे हटाकर बाल्टी लगा देनी चाहिए।”उस वक़्त आशू ने एकदम अमरीश पूरी वाली स्माइल दी।

“हम्म…देख लो ज़राएक साला हम हैं जो अभी तक घोड़ी चढ़ नहीं पाए है और ये साला घोड़ी से उतर ही नहीं रहा है।”दीक्षित को तनु वेड्स मनु का जिमी शेरगिल याद आ गया।

“अरेकहने को तो बशीर बद्र साहब ने भी कहा है कि फूल से आशिक़ी का हुनर सीख, तितलियाँ ख़ुद रुकेंगी सदाएँ न दे। मगर सच कहें न तो सब की सब बकैती हैबकैती। असल बात तो ये है कि यारहम लोगों के जीवन में नारी का सुख है ही नहीं।”पांडेय ने उदासी से कहा।

“देखो यार 100 में से 80 लौंडे आज भी अपनी पासवर्ड के जाने के बाद या फिर शादी तय होने के बाद मेरी क़िस्मत में तू नहीं शायदजैसे गाने सुनकर अपना ग़म ग़लत करते रहते हैं। लेकिन शेर लौंडा वही है जो फ़िक्र को धुँए में उड़ाता हुआ दूसरा पासवर्ड तलाश ले। नहीं तो हालत तुम सबके जैसी हो जाती है।” आशू का महाज्ञानी मोड चालू हो गया था।

“वैसे सिंगल रहना भी कौन सा बुरा है। देखे नहीं हो अटल बिहारी, अब्दुल कलाम और नरेंद्र मोदी सब सिंगल रहते हुए कहाँ से कहाँ पहुँचे हैं!”पांडेय ने अंगूर खट्टे हैं टाइप मुँह बनाते हुए कहा।

“वाह बेटा, माल्या को भूल ही गए! उसे देखो वो तो आज इंडिया से विदेश पहुँच गया। उसकी सक्सेस का अंदाज़ा नहीं है क्या?” आशू ने पटलवार किया और मोहब्बतें के शाहरुख़ ख़ान की तरह लौंडों को कॉलेज की दीवार फाँद जाने के लिए उकसाने लगा।

“देखो यार बंदियाँ तो आज भी मिलती हैं। बात वही है कि लौंडे बेचारे अक्सर मार खा जाते हैं। दिल्ली में तो लड़कियाँ मिलती ही कहाँ हैं। सब हॉट चिक्स हैं, हॉट चिक्स और उनके लिए तो कूल डूड ही चाहिए न भाई! इसलिए अपना देशीपन खूँटी पर टाँगकर कूल कोट पहनना पड़ेगा तब शायद काम बने।”

सब अपनी पाँचों इंद्रियों को खोलकर महाज्ञानी आशू के प्रवचन का लाभ ले रहे थे।

“देखो यार…एक अदा होती है जो लड़कियों को तुम्हारी तरफ़ खींचती है। कैरेक्टर में थोड़ा-सा कमीनापन ज़रूरी होता है सक्सेस के लिए।”

“नहीं यार मैं नहीं मानता। ये सब जान-बूझकर थोड़े ही होता है। कभी तुमने केले के छिलके पर पैर रखा है और फिसले हो?नहीं फिसले होगे। ये साला इश्क़ भी वैसी ही बीमारी है अचानक पैर पड़ेगा और तुम धाँय से नीचे।” दीक्षित ने आशू को बीच में ही टोक दिया।

“अबे तभी तो तुम सिंगल का स्टेटस लेकर घूम रहे हो। प्यार मोहब्बत के मारे मजनूँ, थोड़ा इश्क़ की गली से बाहर भी निकलकरनो एंट्री में घुसो।” आशू आगे कुछ बोल पाता, उसके फ़ोन की घंटी बजी ये रात और ये दूरी तेरा मिलना है ज़रूरी कि दिल मेरा…।

“हेल्लो..हाँ बेबी। नहीं सोना तुमको ही याद कर रहे थे।…ओह्ह्ह मेरा बच्चा। अच्छा…हाँ, हाँ बिलकुल बिलकुल।अच्छा बेबी मैं तुमको थोड़ी देर में कॉल करूँ? वो क्या है न पड़ोस के कुछ बच्चों को कोचिंग दे रहा हूँ।…अरे नहीं-नहीं वो तो ऐसे ही बच्चे आ गए…भैया थोड़ा गॉइड कर दो एग्ज़ाम टाइम है इसीलिए….।”

बात करते-करते अचानक से आशू का मुँह टेढ़ा हो गया“क्या? कैसे? मतलब इतनी जल्दी कैसे ख़त्म हो गया? अभी 4-5 दिन पहले ही तो 1.5 GB का रिचार्ज करवाया था! और मैंने तो तुम्हें पिक्स और वीडियोज़ भी सेंड नहीं किए। अरे नहीं-नहीं मना कहाँ कर रहा हूँ, अभी रिचार्ज करवा देता हूँ न। ओके हाँ-हाँ सी यू बेबी। बाय…लव यू।” फ़ोन काटने के बाद आशू ने सबके खुले हुए मुँह की तरफ़ देखा।

“ऐसे क्या देख रहे हो बे?वो जो सामने चौथे नंबर फ़्लैट में रहती है न वही है, अभी नया-नया टाँका भिड़ाए हैं। लेकिन ये साला बेरोज़गारी में इश्क़ फ़रमाना भी गुनाह है। साला रोज़ का नया-नया ख़र्चा। ऊपर से यार ये व्हाट्सऐप पर भी न! आजकल लोग-बाग फ़ालतू ग्रुप बनाकर अंड-बंड सेंड करते रहते हैं। साला एक ही वीडियो चार-चार बार डाउनलोड हो जाता है। क़सम से आत्मा किलस जाती है। भेंचो एक महीने से मोबाइल की स्क्रीन टूटी हुई है, उसको नहीं बनवा पा रहे हैं। ख़ाली मिस कॉल मारने का बैलेंस बाक़ी है। लेकिन महीने में कम से कम मैडम का तीन बार रिचार्ज करवाओ। वो तो भला हो धीरू भाई का जो दुनिया में आशिक़ी और आशिक़ों दोनों को ज़िंदा रखे हुए है, नहीं तो साला मोहब्बत महँगी होकर दम तोड़ देती।”

सब मुँह फाड़कर उसे देख रहे थे।

“हाँ तो मैं क्या कह रहा था…” आशू ने पुरानी लाइन फिर से पकड़नी चाही, उससे पहले ही सनीने उसे टोक दिया।

“अबे सब फालतू की बकैती बंद करो और मेरे मैटर पर ध्यान दो। बताओ क्या करें हम?”सनी उन सबकी कहानियों में कोई इंट्रेस्ट नहीं ले पा रहा था।

“करना क्या है। एक बार मिलो लड़की से। ज़रूरी थोड़े ही है कि बात बन ही जाए! आख़िर ट्राई करने में क्या हर्ज है।”पांडेय बोला।

“हाँ और इस बहाने हमारे सनीको थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन किसी महिला का सान्निध्य तो मिल ही जाएगा!” आशू के तेवर अभी भी छेड़ने वाले ही थे।

कुछ देर की ख़ामोशी के बाद सनी बोला“लेकिन यार पहली दफ़े में लड़की से बात क्या करूँगा?”

“ये तो भई करोड़ रुपये का प्रश्न है।”दीक्षित का फ़िल्मी कीड़ा फुदककर बोलने लगा,“एक मुलाक़ात, चार बातें…और बस तय करो कि ज़िंदगी इसी के साथ काटनी है।”

“अबे तुमको क्या लगता है कि अरेंज मैरिज चार बातें करने की वजह से होती हैं? असल में सब यह देखने जाते हैं कि लड़की कितनी गोरी है। खाना बना लेती है या नहीं। ख़ातिर कैसी करते हैं लड़की वाले। लड़की के बाप का स्टेटस क्या है और दहेज में कितना माल मिलेगा? इसी से तय होता है कि शादी होनी है या नहीं। बाक़ी सब बेटा बकैती है।”आशू का तर्क भी एक हद तक सही था।

“लेकिन भाई आज की तारीख़ में भी क्या अरेंज मैरिज रेलेवेन्ट है?”संजू ने पूछा।

“क्यों नहीं रेलेवेन्ट है, बिलकुल रेलेवेन्ट है और आगे भी रहेगी। मालूम है आज भी 75 प्रतिशत इंडियन्स अरेंज मैरिज प्रेफ़र करते हैं। सबसे ज़्यादा कमीने लोग तो अरेंज ही करना चाहते हैं।क्योंकि उसमें दो तरह के फ़ायदे होते हैं,एक तो लड़की तुम्हारे कमीनेपन से वाक़िफ़ नहीं होती है और दूसरा साला ससुर के दहेज पर भी नज़र रहती है। और वैसे भी आज की डेट में अरेंज मैरिज भी हम लोगों के बाप-दादों के ज़माने जैसी थोड़े ही रह गई है। वो दौर अलग था जब दूल्हा फ़र्स्ट नाइट को स्टेटस अपडेट करके गाता था कि सुहागरात है, घूँघट उठा रहा हूँ मैं। अब तो साला सारे घूँघट और परदे पहले ही उठ जाते हैं। रोका हुआ नहीं कि लड़की के पास नया स्मार्ट फ़ोन फ़्री टॉकटाइम के साथ भेज दिया जाता है और फिर व्हाट्सऐप, फ़ेसबुक, मैसेंजर, आईएमओ से दिन रात बकरपेली होती रहती है।‘जानू कैसी हो? खाना खाया कि नहीं?’ से शुरू होकर रात को क्या पहना है तक प्रेमी जोड़े न जाने क्या-क्या बतियाते रहते हैं। अब ज़्यादा मुँह खोलेंगे तो बोलोगे बास आ रही है। साला आधा हनीमून तो फ़ोन पर ही हो जाता है। अरेंज मैरिज अब रह ही कहाँ गई है भाई लोग।” आशू बोला।

“सही कह रहा है यार। आजकल लड़की तो छोड़ो पुरानी फ़िल्मों जैसे ससुर भी नहीं मिलते जो कहते थे, ये लो ब्लैंक चेक और निकल जाओ मेरी बेटी की लाइफ़ से। आजकल ब्लैंक चेक तो छोड़ो मोबाइल रिचार्ज करवाने के पैसे तक नहीं मिलते।”दीक्षित हँसते हुए बोल रहा था।

“और वैसे भी यार सनी तुम कौन से कुछ उखाड़ लिए अभी तक। टिंडर पर भी ख़ूब राइट और लेफ़्ट स्वैप कर लिए। एक भी तो लड़की तुमसे पटी नहीं! अब घर वाले जब तुमको ख़ुद ही ढूँढ़कर दे रहे हैं तो उसमें भी परेशानी है! जो तुमसे न हुआ तो घर वालों को ही कर लेने दो। और रही बात बैचलरहुड ख़त्म होने की तो यार कब तक छुट्टे साँड़ जैसा घूमे आदमी, नथ तो आख़िर पहननी ही है ना।”

“तुम लोग न टॉपिक को डाइवर्ट कर रहे हो।सनीको ये बताओ कि वो जब मिले तो लड़की…मेरा मतलब है भाभी जी से बात क्या करे?”पांडेय ने वापस मुद्दे पर सबको खींचने की कोशिश की।

“पहलीबार में यार फ़ैमिली बैकग्राउंड, पसंद-नापसंद, कॉलेज और एजुकेशन के बारे में पूछना।” दीक्षित ने कहा।

“अबे ये सब जवाब तो लड़की की प्रोफ़ाइल से पता चल जाएगा ही। लड़की वालों ने फ़ोटो और बायो तो भेजा ही होगा न, उसे पहले से ही पता होगा। फ़ालतू बात ही क्यों करनी।” आशू ने अपना तर्क रखा।

“अरे भाभी का फोटू हमको भी तो दिखाओ!”पांडेय ने सनी सेकहा।

सब की उम्मीद से परे फ़ोटो किसी स्टूडियो में खिंचवाई हुईनहीं थी। तीन-चार पिक थे जिनमें से एक शायद किसी मॉल का नज़र आ रहा था और बाक़ी घर के थे। फ़ोटो से कहना आसान नहीं था कि लड़की मॉडर्न कल्चर की थी या फिर ट्रेडिशनल।

“नाइस! भाभी तो सुंदर हैं।”पांडेय बोला।

“अबे सनी!बहुत सही यार… ओ तेरी रब ने बना दी जोड़ी…तू हाँ कर या न कर यारा।” दीक्षित बोला।

“अबे लड़की की सोशल प्रोफ़ाइल चेक की या नहीं?” आशू ने सवाल दागा।

सनीके ब्लैंक एक्सप्रेशन देखकर उसे समझने में देर न लगी कि सनी नेअभी तक उतना सोचा ही नहीं है।

लैपटॉप तुरंत खोला गया और फ़ेसबुक ओपन करके लड़की का नाम सर्च किया। थोड़ी देर की मशक़्क़त के बाद लड़की की प्रोफ़ाइल मिल गई। गौगल लगाए एक मॉडर्न-सी दिखने वाली लड़की की फ़ोटो और प्रोफ़ाइल सामने खुलकर आ गई। लड़की मॉडर्न है या ट्रेडीशनल अब इस बात की शंका दूर हो गई।सनी आँखें और मुँह खोले हुए लड़की की फ़ोटो ताड़ने लगा।

“यार इसको देखकर तो लग रहा है कि बंदी मार अंग्रेज़ी बोलती होगीऔर अपन लोग तो अच्छी अंग्रेज़ी सुनकरya ya, you are right, ya ya कहकर खिसकने का जुगाड़ खोजते हैं। ऐसा ही हुआ तो बब्बू मान की क़सम बहुत बेज्जती हो जाएगी यार।”सनी आने वाले वक़्त की कल्पना करके बोला।

सब हँस रहे थे और इधर सनी को टेंशन हो रही थी।

“अबे मेरे अभिमन्यु ऐसे-कैसे बेज्जती हो जाएगी। हम तेरे को चक्रव्यूह में आने और जाने दोनों का रास्ता बताकर भेजेंगे। ये बता जाना कब है?” दीक्षित ने कहा।

“परसों, संडे के दिन।”सनी ने बताया।

“पहली बार में लड़की से थोड़ा क़ायदे से बात करना और पूरा मुँह भचाक से मत खोल देना। अपने बारे में सब मत बताना कि सिगरेट-दारू पीते हो। धीरे-धीरे आगे चलकर सब पता चल जाता है।”संजू का सुझाव था।

“लेकिन भाई, भाभी जी कहीं दारू-सुट्टा तो नहीं पीती होंगी न!”पांडेय ने मासूमियत से पूछा।

कमरे में एक साइलेंस छा गया।

“नहीं पीती होंगी। हम भी कभी-कभी न जाने कैसी फालतू चीज़ें सोचते रहते हैं।”पांडेय ख़ुद से बात करते हुए बड़ी ही मासूमियत से कहा।

पांडेय जी का इतना कहना काफ़ी था, दिमाग़ की बत्ती जलाने के लिए। सबके दिमाग़ में नए एंगल ने जन्म ले लिया और उनको विभा की याद आ गई जो बड़े प्यार से सबको फुद्दू बनाकर गई थी।सनी के दिमाग़ में होने वाली बीवी के हाथ में शराब और सिगरेट नज़र आने लगी।

“लेकिन यार नाइट क्लब, डिस्को वग़ैरह तो जाती ही होंगी!”पांडेय फिर से बोल पड़ा।

अब तो सनी के कान में ज़ोर-ज़ोर से यो यो हनी सिंह और बादशाह के रैंप धाँय-धाँय बजने लगे और झूमतीहुईलड़की सामने दिखने लगी।

“अरे यार। जब पीती ही नहीं होंगी तो डिस्को जाके क्या करेंगी? मने ऐसे ही मन में आ गया था तो कह रहे हैं।”पांडेय ने सबको घूरता देख भोलेपन से कहा।

किसी को समझ नहीं आया कि पांडेय सच में मासूमियत के फ़्लो में कह गया था या फिर जान-बूझकर कमीनेपन की गंध फैला रहा था। इधर सनी का दिमाग झंड हुआ जा रहा था और बाक़ी सब मन ही मन हँस रहे थे।

“लेकिन भाई…एक बात और है….।”पांडेय फिर से कुछ बोलने को हुआ ही था कि बाक़ी सब चिल्लाकर बोले,“अबे चुप साले बकचोद!”पांडेय के अल्फ़ाज़ गले में ही अटककर रह गए।

 

 
      

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3 comments

  1. बेहतरीन । मेरी अपनी सी कहानी …युवा लेखन मे एक उम्दा प्रयोग ….शुक्रिया ये नायाब उपन्यास लिखने के लिए ।

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