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लवली गोस्वामी के नए संग्रह की कुछ कविताएँ

लवली गोस्वामी मेरी पसंदीदा कवयित्रियों में रही हैं। अभी उनका नया संग्रह आया है ‘उदासी मेरी मातृभाषा है’, जिसकी भूमिका कवि गीत चतुर्वेदी ने लिखी है। प्रस्तुत है गीत की भूमिका के साथ इस संग्रह की कुछ कविताएँ- मॉडरेटर

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प्रस्तावना

मृत्यु द्वारा आमंत्रित अतिथि

– गीत चतुर्वेदी

पिछले कुछ बरसों में जिन कवियों ने हिंदी के गंभीर साहित्य-समाज का ध्यान अपनी ओर खींचा है, लवली गोस्वामी उनमें प्रमुख हैं. और ऐसा करने के लिए उन्हें बहुत ज़्यादा लिखने की ज़रूरत नहीं पड़ी.  प्रेम उनकी कविताओं का मुख्य स्वर है, लेकिन मृत्युबोध एक अंतर्धारा की तरह उनमें लगातार बहता है. इन कविताओं से गुज़रने के बाद अचरज नहीं होता कि वह क्यों उदासी को अपनी मातृभाषा कहती हैं.

दुनिया में जितनी क्रूरता है, उस हिसाब से कविता अभी कम है, और प्रेम भी, लेकिन इसके बावजूद मौजूदा दौर में (और शायद हर दौर में) प्रेम पर लिखना सबसे मुश्किल काम है, क्योंकि प्रेम और कविता अपेक्षाकृत अपर्याप्त होकर भी इफ़रात में हैं. जैसे कि, प्रेम अभिव्यक्तियों का यज्ञ है और तमाम कला-माध्यम अपनी-अपनी ओर से उसमें समिधा डाल रहे, ख़ासकर सिनेमा और लोकप्रिय चलताऊ शायरी. ऐसे में गंभीर, साहित्यिक कविता के भीतर प्रेम की अनुभूतियों को इस तरह ले आना कि कलात्मक लगे, नये की कोशिश से भरा लगे, चलताऊ न लगे, जितना तरल हो, उतना ही दर्शन की आकांक्षा से भरा हुआ भी— बेहद कठिन होता जा रहा है. अंग्रेज़ी के एक प्रचलित मुहावरे में कहें, तो ‘अपहिल टास्क’. एक कवि को कठिन का काठ हाथों में थाम पहाड़ की इस खड़ी चढ़ाई को पार करना होता है. यह जितनी चुनौती है, उतनी ही संभावना भी. लवली गोस्वामी अपनी कविताओं में दोनों को प्राप्त करती हैं.

स्वप्न व स्मृति से निर्मित उनके इस कविता-संसार में जीवन की कोमल अनुभूतियाँ सहज आती हैं, प्रेम की जटाओं से दर्शन की जटिलता अपना रास्ता बनाते हुए एक सरस धार में रूपांतरित हो जाती है. इसके लिए वह सूफ़ीवादी लोकप्रियताओं को नहीं अपनातीं, बल्कि प्रेम के अनंत, जीवन के अबूझ और देह के अलंघ्य को अर्घ्य में भरती हैं. इसीलिए, यह एक साहसी कवि की कविताएँ हैं. बिना साहस, इन इलाक़ों में जाना मुश्किल है, क्योंकि ये तीनों चीज़ें कवियों का शिकार कर लेने के लिए कुख्यात हैं. हृदय की पुरातात्त्विक समझ, शिल्पगत अध्यवसाय और विकसित काव्य-विवेक इस किताब में उन्हें कामयाब बनाता है.

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यदि मृत्यु एक विशाल ब्रह्माण्ड है, तो जीवन उसमें तारों की तरह टिमटिमा रहा है. इसीलिए अंधकार व प्रकाश सहोदर हैं, दर्पण व प्रतिबिंब जैसा गहरा रिश्ता रखते हुए. मृत्यु का स्मरण दरअसल जीवन का उत्सव है. एक पर कही गई बात, धीरे-धीरे, अपने-आप, दूसरे पर भी लागू होती जाती है. मृत्यु पर निशाना लगाने के बाद भी कलाएँ जीवन को पकड़ती हैं, क्योंकि मृत्यु को कोई नहीं पकड़ सकता, जीवन की सबसे बड़ी शक्ति प्रेम भी उसे नहीं पकड़ पाता. महाकवि मीर का एक शेर याद आता है :

जिस सैदगाह-ए-इश्क़ में यारों का जी गया

मर्ग, उस शिकारगाह का, शिकार-ए-रमीदा था

उनकी कल्पना देखिए : प्यार का एक जंगल है, जहाँ प्यार हर आगंतुक का शिकार कर लेता है. वहाँ सब जान से जाते हैं. उसी जंगल में मृत्यु भी विचरती थी, प्यार ने उसका भी शिकार करना चाहा था, लेकिन वह हाथ नहीं आई. मृत्यु, दरअसल, प्यार के जंगल से बचकर भाग निकला शिकार (शिकार-ए-रमीदा) है.

यह भागा हुआ शिकार सभी को आकर्षित करता है. इसे हर कवि, हर कलाकार पकड़ लेना चाहता है, लेकिन कोई सफल नहीं हो पाता. आसमान छूने की चाह में हमने उछलना व उड़ना सीखा, उसी तरह मृत्यु तक पहुँचने की यात्रा को जीवन की तरह देखा. इसीलिए कविता, मंज़िल को पकड़ लेने के क्रम में यात्रा का वृत्तांत रचती हैं, रास्तों की सूक्ष्मताओं-सुंदरताओं का बखान करती है. एक विशिष्ट मृत्युबोध, अंतत:, जीवन का अविकल उच्चारण है.

लवली गोस्वामी की कविताओं में जीवन, इसी ध्वनि की तरह प्रस्तुत होता है. कुछेक बार धरातल पर, बहुधा धरातल के नीचे, तिब्बती बौद्धों के नासिक उच्चारणों की तरह गूँजता हुआ. अपनी एक कविता में वह कहती भी हैं :

मैं प्रेम की राह पर संन्यासियों की तरह चलती हूँ

जीवन की राह पर मृत्यु द्वारा आमंत्रित अतिथि की तरह.

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लवली गोस्वामी अनुभूतियों की गहरी पड़ताल करती हैं, उनकी परीक्षा लेती हैं और इस प्रयास में वह अचरज के सीमा-संसार में प्रवेश करती हैं. इंद्रियाँ उनकी काव्य-आकांक्षाओं के अश्वों की तरह हैं. वह सुगंध की त्वचा रचती हैं. ध्वनि का चित्र बनाती हैं. उनकी कविताएँ चित्रों की ध्वनियाँ और स्पर्श की सुगंध हैं. इसीलिए उनमें अनुभूतियाँ इतनी गझिन है. प्रेम हो या उदासी, जीवन हो या मृत्यु, उनके यहाँ कुछ भी एकल गायन नहीं, सबकुछ एक कोरस है, होना अपने आप में एक कोरस है, रस-गंध-स्वाद-और-आँच का कोरस. लवली गोस्वामी की कविताएँ शब्दों से अधिक स्पर्श की भाषा में रची गई हैं. सहजता की उपासना के लिए वह ऐंद्रिक विलोम की आराधना करती हैं. इन कविताओं की हरी चादर के नीचे भुरभुरी मिट्टी का सहयोग नहीं, बल्कि पथरीली भूमि द्वारा प्रस्तुत चुनौतियाँ हैं. गोस्वामी की कविताओं की विशिष्टता यह भी है कि इन चुनौतियों को झेलने के बाद भी वे रुक्ष नहीं, मृदु हैं. निर्णयवादी नहीं, चिंतनशील हैं. कई जगहों पर समूह से संबोधित होने के बाद भी ये एकांत के उल्लंघन की नहीं, एकांत की रक्षा की कविताएँ हैं. प्रेम व कविता सबसे सुगंधित उन जगहों पर होते हैं, जहाँ वे मनुष्य के एकांत की रक्षा करते हैं. आधुनिक संसार में आदिम अनुभूतियों की स्मृति की रक्षा का दायित्वबोध इन कविताओं में विन्यस्त है. यह कहें कि ये कविताएँ स्वयं एक दायित्व हैं, कवि के लिए भी दायित्व, तो अवांतर न होगा. किसी कवि की पहली किताब इतनी सांद्र हो, तो उससे उम्मीदें होना स्वाभाविक है. ये कविताएँ अपने पाठ से वादा करती हैं कि हिंदी कविता का संसार आनेवाले बरसों में लवली गोस्वामी को स्नेह, अपनापे, उम्मीद व गौरव से देखेगा.

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कविता की असंख्य परिभाषाएँ हैं
 
 
 
तुम्हें चूमने से पहले अपनी नाक की नोक से मैं
तुम्हारी नाक की नोक दबाती हूँ
मुझे वह दबाव महसूस होता है
जो कविता का पहला शब्द लिखने से पहले
क़लम की नोक काग़ज़ पर डालती है
थोड़ी झिझकती-सी उत्सुक दाब 
 
 
 
मैंने माँ के पैर गुनगुने पानी भरी तश्तरी में डुबोकर
बिवाइयाँ पुराने टूथब्रश से साफ़ कीं 
उसपर पेट्रोलियम जेली लगाई
उसके चेहरे पर मुझे महसूस हुआ सुख
उष्ण और मुलायम
जो एक कविता पूरी कर लेने पर होता है
 
 
 
सर्दी की एक सुबह धूप में
पैरों पर बच्चे को निर्वसन लिटा कर
मैंने उसपर सरसों का तेल मला
अब वह थककर डायरी पर लेटी क़लम की तरह निश्चिन्त सो रहा है
कविता जैसा ही है उसका निर्दोष गुलाबी चेहरा
मुझे भरोसा है मेरे शब्द
उसकी निष्कलुष नींद के भीतर साँस ले रहे हैं।
 
 
 
 
 
असंवाद की एक रात
 
 
 
 तुम्हारे भीतर जितनी नमी है
उतने कदम नापती हूँ पानी के ऊपर
जितना पत्थर है तुम्हारे अन्दर
उतना तराशती हूँ अपना मन
 
 
 
इच्छाओं की जो हरी पत्तियाँ असमय झरीं
वे गलीं मन के भीतर, अपनी ही जड़ों के पास
खाद पाकर अबकी जो इच्छाएँ फलीं
वे अधिक घनेरी थीं, इनकी बाढ़ (वृद्धि) भी
गुज़िश्ता इच्छाओं से अधिक चीमड़ थीं
 
 
 
तुम्हारा आना सूरज का उगना नहीं रहा कभी
तुम हमेशा गहराती रातों में कंदील की धीमी लय बनकर आये
तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता
 
कि मुझे चौंधियाती रौशनियाँ पसंद नहीं हैं
 
 
 
मेरा अँधियारों में गुम हो जाना आसान था
तुम्हारी काया थी जो अंधकार में
 
दीपक की लौ की तरह झिलमिलाती थी
तुम्हारी उपस्थिति में मुझे कोई भी पढ़ सकता था
 
 
असंवाद की एक रात, मैंने दो बाते जानीं :
 
 
हम उस चिट्ठी को बार-बार पढ़ते हैं
 
जिसमें वह नहीं लिखा होता
जो हम पढना चाहते थे
 
 
क्षमाओं की प्रार्थना अपने सबसे सुन्दर रूप में कविता है
भले ही आप गुनाहों में शामिल न हों।
 
 
 
अधूरी नींद का गीत
 
तुम मिलते हो, पूछते हो “कैसी हो?”
मैं कहती हूँ  “अच्छी हूँ”
जवाब सिर्फ इतना है कि
जिन रास्तों को नहीं मिलता उनपर चलने वालों का साथ
उन्हें सूखे पत्ते भी ज़ुर्रत करके दफना देते हैं।
 
 
 
मैं तुम्हारे लौटने की जगह हूँ
कोई यह न सोचे की जगहें हमेशा
स्थिर और निष्क्रिय ही होती हैं
 
 
 
प्रेम को जितना समझ सकी मैं ये जाना
प्रेम में कोई भी क्षण विदा का क्षण हो सकता है
किसी भी पल डुबो सकती है धार
अपने ऊपर अठखेलियाँ करती नाव को
यह कहकर मैं नाविकों का मनोबल नही तोड़ना चाहती
लेकिन कई दफ़ा नावों को समुद्र लील जाते हैं
 
 
 
जिन्हें समुद्र न डुबोये उन नावों के तख़्ते अंत में बस
चूल्हे की आग बारने के काम आते हैं
पानी की सहेली क्यों चाहेगी ऐसा जीवन
जिसके अंत में आग मिले?
 
 
 
समुद्र का तल क्या नावों का निर्वाण नहीं है?
जैसे डूबना या टूटना सिर्फ नकारात्मक शब्द नहीं हैं।
 
 
 
प्रेम बिना कोई मरता नहीं है लेकिन
जीवित न होने का विलोम मर जाना नहीं है
विलोम शब्दों का चलन शब्दों की स्वतंत्र परिभाषा के विरुद्ध
एक किस्म का षड्यंत्र है.
 
 
      

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4 comments

  1. डॉ रमाकान्त राय

    वाह! बहुत दिनों बाद ऐसी कविताएं पढ़ने को मिलीं। लवली गोस्वामी का यह संग्रह प्राप्त किया जाएगा।

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