लेखक अविनाश कल्ला की पुस्तक ‘अमेरिका 2020- एक बंटा हुआ देश’ दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र होने की दावेदारी करने वाले देश—अमेरिका—के राष्ट्रपति चुनाव का आँखों–देखा हाल बयां करने वाली किताब है।एक पत्रकार की चुनाव यात्रा के बहाने यह किताब अमेरिकी समाज की अनेक ऐसी अनजानी–अनदेखी सच्चाइयों को सामने लाती है, जो उसकी धारणाबद्ध, चमकीली और महाशक्तिशाली छवि के पीछे अमूमन छुपी रहती हैं। वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, कैलिफोर्निया और लास वेगास से परे कोविड-19 दौर के अमेरिका को सामने लाती एक दिलचस्प पुस्तक है। अमेरिका 2020 राजकमल प्रकाशन के उपक्रम सार्थक से प्रकाशित हुई है –
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जब बाहर निकलने के लिए रिसेप्शन पर आया तो, हॉस्टल के मालिक अजी मोहम्मद से बातचीत की शुरुआत हुई। 28 वर्षीय अजी अफ्रीकी अमेरिकी मूल के युवा होटेलीयर हैं, लॉस एंजेलस से आते हैं पर डीसी में ही उनके तीन हॉस्टल हैं जहाँ साल-भर छात्रों और यात्रियों का जमावड़ा-सा लगा रहता है। मेरे साथी द्रोण 2018 में क़रीब दो महीने यहाँ रहकर गए थे, उन्हीं के सुझाव से हम यहाँ पहुँचे थे। उनका कहना था, इस जगह से अच्छा होस्ट पूरे डीसी में नहीं मिल सकता, फ़िलहाल तो ऐसा ही लग रहा था। हमारा कमरा अपग्रेड कर दिया गया, मालिक ने स्वयं पूरी जगह का चक्कर लगाकर हमें हॉस्टल दिखाया, हमें कार किराए पर लेनी थी उसके लिए कुछ नम्बर भी दिए।
जब मैं रिसेप्शन तक पहुँचा तो वे अपने स्टाफ़ को कुछ समझा रहे थे। मैंने पूछा सब ठीक तो बोले, “इन दिनों हर दिन को उसकी मेरिट पर निकाल रहे हैं, मेरे अधिकतर स्टाफ़ स्टूडेंट हैं जो यहाँ पढ़ते हैं और साथ में काम करते हैं। मैं इन्हें रहने की जगह और नाश्ता देता हूँ और बदले में ये यहाँ का रख-रखाव करने में मेरी सहायता करते हैं।
“पिछले 6 महीनों से इनके स्कूल और आमदनी के बाक़ी स्रोत बन्द हो गए हैं, ये सभी लोग बाहर के देशों से आए हुए छात्र-छात्राएँ हैं। मैं जितना हो सके इनकी मदद कर रहा हूँ, पर मेरे भी 4 लोग पिछले 3 महीनों में जा चुके हैं। मेरे 3 हॉस्टल में 12 लोग काम कर रहे थे, अब सिर्फ़ 8 हैं।
नौकरी का िज़क्र चल ही रहा था कि अजी बोले, “मेरे हिसाब से ग़रीबी और अशिक्षित युवा अमेरिका के लिए सबसे बड़ी परेशानी हैं। आप इकोनॉमी और कोविड के बारे में सोच रहे होंगे, पर यह सब टेम्परेरी है, बीमारी का इलाज निकाल लिया जाएगा और अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। पर जिस तरह से शिक्षा को मल्टी बिलियन डॉलर का व्यवसाय बना दिया गया है, उसने इसको आम जन की पहुँच से दूर कर दिया है। अमेरिका में दुनिया की सबसे अच्छी शिक्षा मिलती है पर आम जन की पहुँच से बाहर है। यहाँ उच्च शिक्षा एक विलासिता है जिसे हर कोई अफ़ोर्ड नहीं कर सकता। जो लोग अच्छे इंस्टिट्यूट में शिक्षा लेते हैं और पढ़ाई ख़त्म होते ही एक बड़े क़र्ज़ को चुकाने में लग जाते हैं।”
अजी पढ़ाई के लिहाज़ से कम्प्यूटर इंजीनियर हैं। उन्होंने ग्राफिक्स में मास्टर डिग्री की है। उन्होंने 2005 से 2009 तक ब्रिटेन में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी की और साथ ही वहाँ कुछ वर्ष काम कर, वहाँ की नागरिकता भी ले ली।
“ऐसा क्यों? पढ़ाई तो ठीक है, पर नागरिकता?”
“ब्रिटेन में पढ़ाई अमेरिका के मुक़ाबले सस्ती है, मैं वहाँ रहा इसलिए मास्टर्स तक पढ़ पाया। मेरे भाई-बहन ऐसा नहीं कर पाए। वे ग्रेजुएट नहीं हैं। जहाँ तक नागरिकता की बात है, मैंने उसे अपनाने में कोई हर्ज नहीं समझा। यहाँ अगर हालात ठीक नहीं रहते तो मैं ब्रिटेन में रह सकता हूँ, मैं अपना परिवार वहाँ शुरू कर सकता हूँ और अपने परिवार और बच्चों को अच्छा जीवन दे सकता हूँ।
उनकी बात सुन अचरज हुआ। हिन्दुस्तान में तो यही सुनते हुए बड़ा हुआ कि अटलांटिक महासागार के पार सम्भावनाओं का ख़ज़ाना है। एक ऐसा देश है जहाँ सब कुछ अच्छा है और वहाँ पहुँचते ही जीवन बदल जाता है।
बात चल ही रही थी तो मैंने रुख़ आगामी चुनाव की ओर किया। अजी थोड़ा रुके और बोले, “मैंने पिछली बार वोट ही नहीं दिया। ओबामा रेस में नहीं थे, और हिलरी मुझमें विश्वास ही पैदा नहीं कर पाईं कि मैं उनके लिए जाकर वोट करूँ। उन पर लगे आरोपों ने मुझे उनसे दूर ही रखा। फिर यह भी था िक बिल दो बार राष्ट्रपति रह चुके थे, हिलरी स्वयं ओबामा के साथ महत्त्वपूर्ण पद पर काम कर चुकी थीं, वे ऐसा क्या नया कर देतीं।”
“तो क्या आप राष्ट्रपति ट्रम्प के काम से सन्तुष्ट हैं?”
“ऐसी बात नहीं है, राष्ट्रपति तो स्वयं यह जानकर सकते में थे कि वे जीत गए हैं। ऐसा उनके हाव-भाव से लग रहा था। पर अगर मैं वोट कर भी देता तो क्या, इलेक्टोरल कॉलेज से पड़े वोटों के हिसाब से ट्रम्प ही जीत जाते।”
उनका मानना है कि शिक्षा का अभाव एक तरह की सोची-समझी साज़िश है। “हमारे युवा जो कॉलेज की शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं वे ज़्यादा लिख-पढ़ नहीं पाते, उनकी सोचने-समझने की क्षमता सीमित होती है। जो टेलिविज़न पर दिखता है वही उनकी समझ बनता है। और इसीलिए आप टी.वी. पर न्यूज़ में वह सब देखते हैं जिसकी शायद ज़रूरत नहीं है। मेरे ख़याल में अमेरिका एकमात्र देश होगा जहाँ पुलिस जब बदमाशों का पीछा कर रही होती है तो उसे सीधा प्रसारित किया जाता है। हमारे राष्ट्रपति अभी भी ऐसा बर्ताव करते हैं मानो वे अभी भी अपने शो के अप्रेंटिस पर हों। ‘यू आर फायर्ड’ व्हाइट हाउस में भी उनका पसन्दीदा वाक्य है।”
बात करते हुए मैं अजी की निराशा पढ़ सकता था। वे असहज लग रहे थे। मैंने उनसे आख़िरी सवाल पूछा, “आप कैसा अमेरिका चाहेंगे?”
“एक ऐसा अमेरिका जो दूसरों के जीवन में दख़ल न दे और अपने काम से काम रखे। अगर दूसरे देशों को कोई तकलीफ़ या समस्या है, तो आप उसमें तब तक दख़ल न दें जब तक वे ख़ुद आपसे मदद नहीं माँगते।”
अजी की बातों ने तो अमेरिकी ड्रीम को मानो चकनाचूर ही कर दिया। उन्होंने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि दुनिया जिसके पीछे भागती है उसकी क़ीमत क्या है, शायद वह नहीं जानती।
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लेखक के बारे में
अविनाश कल्ला का जन्म 1 मार्च 1979 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ। इन्होंने सिविल इंजीनियरिंग और एमबीए की पढ़ाई के बाद दस वर्षों तक पत्रकारिता की। उसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टमिन्स्टर, लन्दन से पत्रकारिता में एम.ए. किया। द टाईम्स ऑफ़ इंडिया, मेल टुडे, द हिन्दू, द ट्रिब्यून, डेक्कन हेराल्ड, राजस्थान पत्रिका और गल्फ़ न्यूज़ आदि में प्रकाशित होते रहे अविनाश पत्रकारिता के अनूठे अन्तरराष्ट्रीय आयोजन ‘टॉक जर्नलिज़्म’ (जयपुर) के संस्थापक है। सिनेमा और क्रिकेट देखने, यात्रा करने और लोगों से मिलने-जुलने में इनकी गहरी दिलचस्पी है। ‘अमेरिका 2020 : एक बँटा हुआ देश’ इनकी पहली किताब है।
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