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विनय सीतापति की किताब ‘जुगलबंदी’ का एक अंश

विनय सीतापति की किताब ‘जुगलबंदी’ की बड़ी चर्चा है। वाजपेयी-आडवाणी के आपसी संबंधों को लेकर लिखी गई इस किताब का हिंदी अनुवाद हाल में ही पेंग्विन से प्रकाशित हुआ है। आइए किताब का वह रोचक अंश पढ़ते हैं जो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफ़े को लेकर वाजपेयी और आडवाणी के बीच चल रही रस्साकशी को लेकर है-

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वाजपेयी दिल्ली लौट आये और उस समय भी वे मोदी को बर्ख़ास्त करने के पक्ष में थे, लेकिन वे अंतिम कदम नही उठा पा रहे थे। उन्हें 7 से 11 अप्रैल 2002 तक सिंगापुर और कंबोडिया की यात्रा पर जाना था। पालम टेक्निकल एरिया से सिंगापुर के चांगी एयरपोर्ट तक की उड़ान बहुत छोटी सी थी, लेकिन वाजपेयी के लिए यह एक लंबी यात्रा थी।

प्रधानमंत्री के लिए दो-तीन कुर्सियों, एक टेबल और एक बिस्तर वाला निजी कक्ष बनाने के लिए विमान में फेरबदल किया गया था, जबकि मंत्री और अधिकारी बाहर सामान्य जगह पर बैठे थे। अचानक वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य ने उस यात्रा में प्रधानमंत्री के साथ जा रहे विनिवेश मंत्री अरुण शौरी के पास आकर कहा: ‘कृपया अंदर जाकर उनसे मिलिए, बापजी बहुत नाराज हैं’।

शौरी तुरंत निजी कक्ष में पहुँचे, तो उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता को अपनी कुर्सी पर बैठे हुए पाया। शौरी याद करते हैं: ‘उन्होंने मुझे देखकर बैठने का इशारा किया। वे उसी मुद्रा में बैठे रहे। वे क्रोधित थे’। वाजपेयी ने कहा, ‘मुझे विदेश क्यों भेजा जा रहा है? मेरे चेहरे पर कालिख लगी है’। शौरी ने उन्हें सलाह दी: ‘सिंगापुर पहुंचकर आडवाणी को फोन करके बोलिए कि वे मोदी से त्यागपत्र देने को कहें’।

 वे उस शाम सिंगापुर अपने गंतव्य पर पहुँचे और मध्य सिंगापुर के शांग्री-ला होटल में ठहरे। अड़तीस मंज़िला इमारत में सबसे ऊपर मार्कोपोलो नामक एक लाउंज रेस्त्रां है, और उसकी एक दीवार शीशे की है, जिससे आसपास की गगनचुंबी इमारतों का शानदार नज़ारा दिखाई देता है। भारतीय उच्चायोग ने अपने प्रधानमंत्री और उनके शिष्टमंडल के लिए पूरा रेस्त्रां बुक कर लिया था।

अरुण शौरी खाने के लिए जल्दी पहुँच गये। वाजपेयी पहले से वहाँ थे, वे शीशे की दीवार के पास खड़े होकर बाहर के नज़ारे देख रहे थे और उनकी पीठ कमरे की तरफ थी। शौरी इस उम्मीद से वाजपेयी की ओर बढ़े कि शायद वे पुष्टि कर देंगे कि उन्होंने आडवाणी को फोन करके मोदी को हटाने की बात कही थी। उसकी बजाय वाजपेयी ने शौरी से कहा: ‘नीचे देखो, मैं यहाँ आया करता था। यह कलकत्ता के जैसा था। देखो, यह चमत्कार है। एक आदमी ने क्या किया है’।

उस यात्रा में हर दिन वाजपेयी विचार करते रहे, लेकिन उन्होंने कभी मोदी का त्यागपत्र मांगने के लिए आडवाणी को फोन नहीं किया। परेशान शौरी ने अपने साथ मौजूद एक राजनयिक से कहा, ‘अटलजी, आडवाणी को फोन क्यों नहीं कर रहे’। राजनयिक ने जवाब दिया: ‘उन्हें डर है कि वे ‘‘ना’’ कर देंगे’।

वाजपेयी अपने सबसे पुराने दोस्त को नाराज करने से क्यों डर रहे थे? अरुण शौरी इसका जवाब देते हुए कहते हैं: ‘यह ऐसी बहू जैसा मामला है जो कई सालों से सब कुछ झेल रही है, अब सास को डर है कि अगर बहू को ज़्यादा नाराज किया गया तो वह अपना मुंह खोल देगी और फिर रुकेगी नहीं’।

सास ने दूसरी रणनीति अपनाने का निर्णय लिया। 11 अप्रैल 2002 को दिल्ली लौटते समय प्रधानमंत्री ने विमान में ही प्रेस कॉन्फ्रेंस की। मोदी के बारे में पूछने पर वाजपेयी ने कहा कि वे ‘नई दिल्ली पहुँचने पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में निर्णय लेने पर विचार करेंगे, परंतु पहले अपने सहयोगियोंसे सलाह लेंगे’।  वाजपेयी ने अगले दो दिनों में  यानी 12 और 13 अप्रैल 2002 को गोवा में आयोजित हो रही भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का भी उल्लेख किया। इस बीच अधिकारियोंने मीडिया में ख़बर लीक कर दी कि ‘प्रधानमंत्री ने मोदी को हटाने का फ़ैसला कर लिया है’।  भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हममें से कुछ लोग जानते थे कि वाजपेयीजी (गोवा में) मोदी का इस्तीफ़ा लेना चाहेंगे। हम जानते थे कि आडवाणी जी ऐसा नहीं चाहते थे। हमें पता नहीं था कि वे दोनों इस मामले को कैसे संभालने वाले थे’।

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अगले दिन दिल्ली से गोवा की उड़ान में वाजपेयी और आडवाणी साथ थे। अंतिम पलों में अरुण शौरी भी उनके साथ आ गए थे। ब्रजेश मिश्र ने पिछली रात उन्हें फोन किया था। उन्होंने  शौरी से कहा: ‘आप उन दोनों को नहीं जानते। वे आपस में बात नहीं करेंगे, इसीलिए मैं आपको और मेजर (जसवंत सिंह) को साथ भेज रहा हूँ’।

वे वायुसेना के जिस विमान में यात्रा कर रहे थे, वह वाजपेयी की विदेश यात्राओं के लिए इस्तेमाल होने वाले एयर इंडिया के ख़ास जंबोजेट्स से अलग था। इसमें प्रधानमंत्रीके लिए कोई निजी कमरा नहीं था, बस एक छोटा सा केबिन था, जिसमें एक मेज़ और चार कुर्सियाँ थीं। मेज़ पर उस दिन के अख़बार रखे हुए थे। उनकी सुर्खियाँ उस छोटे से केबिन पर हावी मुद्दे को बयान कर रही थीं। द  हिंदू  में गोवा में मोदी की नियति को लेकर अनुमान लगाते हुए तीन लेख थे। उसके पहले पन्ने पर लिखा था: ‘अगर कई वक्ताओं ने (गोवा बैठक में) माँग की किमोदी को हटा दिया जाए तो यह इस बात का संकेत होगा कि शायद प्रधानमंत्री उन्हें हटाना चाहते हैं’।102 टाइम्स आॅफ़ इंडिया  ने इससे एक कदम आगे बढ़कर अधिकारियों के हवाले से लिखा कि प्रधानमंत्री ने मोदी को बर्ख़ास्त करने का फैसला कर लिया है। दिल्ली  के आभिजात्य वर्ग के प्रिय समाचारपत्र इंडियन एक्सप्रेस  ने भी लिखा कि‘प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाने का मन बना लिया है’। वाजपेयी और आडवाणी गोवा की उड़ान में आमने-सामने बैठे थे और दोनों के बीच पड़े अख़बार उनके मन की बात बयान कर रहे थे।

विमान के उड़ान भरते ही वाजपेयी ने हिंदी का एक समाचारपत्र उठाकर पढ़ना शुरू कर दिया और इस तरह आडवाणी उनकी नज़रों से ओझल हो गये। फिर आडवाणी ने अंग्रेज़ी का एक अख़बार उठाकर दोनों के बीच एक और अवरोधखड़ा कर दिया।

कई सालों तक वाजपेयी की हर मनमानी को झेलने के बादअब आडवाणी अपनी बात पर अड़ गए थे।

जसवंत सिंह और अरुण शौरी ने एक-दूसरे की ओर देखा। फिर शौरी ने वाजपेयी के हाथ से अख़बार लेकर कहा: ‘आप अख़बार तो कभी भी पढ़ सकते हैं। पिछले तीन दिनोंसे आप आडवाणीजी से बात करना चाहते थे। अब कर लीजिए’।

इस पर भी ख़ामोशी छाई रही।

आडवाणी याद करते हैं कि वाजपेयी ने चुप्पीतोड़ते हुए कहा था कि ‘कम से कम इस्तीफे  का ऑफ़र  तो करते ’। आडवाणी ने तुरंत जवाब में कहा कि मोदी के इस्तीफ़े से गुजरात में स्थिति नहीं सुधरेगी और वे निश्चित नहीं थे किपार्टी उसे स्वीकार करेगी। जसवंत सिंह याद करते हैं किआडवाणी ने कहा था कि मोदी के इस्तीफे से पार्टी में ‘बवाल’ हो जाएगा।  उड़ान इस सहमतिके साथ ख़त्म हुई कि वाजपेयी की बात मानी जाएगी। आडवाणी तय करेंगे कि मोदी का इस्तीफ़ा कैसे लिया जाएगा।

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