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सदानंद शाही की कविताएँ

सदानन्‍द शाही के तीन संग्रह प्रकाशित हैं, वे हिंदी के प्रोफ़ेसर हैं। पत्र-पत्रिकाओं में उनकी टिप्पणियाँ हम नियमित पढ़ते रहते हैं। उनकी कुछ कविताएँ पढ़ते हैं- 
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1
इंद्रिय बोध
 
 
शब्द
 
तुम्हारा नाम था वह
जो गूंजता रहा
मेरे भीतर
 
मैं आकाश हुआ।
 
 
 
स्पर्श
 
वह हवा की छुवन थी
समीरन सी
त्वचा से होती हुई
आत्मा तक पहुंची
बह चली पवन उनचास
 
आत्मा समुद्र में
लहरें ही लहरें हैं…..
 
 
 
रूप
 
रूप की आंच में सिंकता रहा
जैसे आग में सिंकती है रोटी
 
आग जलती रही
मेरे भीतर
मेरे बाहर
 
मैं सिंकता रहा
उम्र भर।
 
 
 
रस
 
पृथ्वी को
तुम अखंड फल की तरह मिले
 
पृथ्वी के मुंह में उतर आया पानी
अपार जलराशि
लहरायी
 
मैं निर्विकल्प
डूबता चला गया…..
 
 
गंध
 
वह धरती की गंध थी
मेरे नथुनों से होते हुए
मेरी आत्मा में घुस आई थी
मेरे अस्तित्व में घुल मिल गयी सी
 
चाहूँ भी तो
अलग नहीं हो सकता
धरती की गंध से…
 
2
कोरोना का कहर
 
 
यह सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं है
न सिर्फ मुसलमान के लिए
और न ईसाई ,यहूदी या पारसी के लिए
 
 
यह सिर्फ भारत के लिए नहीं आया है
न सिर्फ पाकिस्तान के लिए आया है
और न अमरीका योरप आस्ट्रेलिया के लिए
 
 
 
यह संकट जितना चीन और रूस के लिए है
उतना ही नेपाल मालदीव श्रीलंका फीजी मारिशस के लिए भी है
उन देशों के लिए भी है
जिनके नाम भी हम नहीं जानते हैं
 
 
संकट का यह बादल
सारी दुनिया पर छाया है
 
पृथ्वी पर कितने धर्म है
पृथ्वी पर कितने देश हैं
पृथ्वी पर कितनी जातियां हैं
कितने तरह के लोग हैं
 
क्या आप दावे के साथ कह सकते हैं
कि अमुक धर्म या अमुक जाति पर यह वायरस असर नहीं करेगा
या कि एक खास भूगोल पर इसका असर नहीं होगा
और दूसरे भूगोल पर होगा
 
धर्म की सीमा से बाहर निकलिए
भूगोल की सीमा से बाहर निकलिए
मनुष्य बचेगा ,पृथ्वी बचेगी
तो धर्म भी बच जाएंगे
 
और भूगोल भी बच जाएगा
लोकतंत्र भी बचेगा
और वोट बैंक भी
 
 
मनुष्य को बचाओ
पृथ्वी को बचाओ
 
घृणा से कुछ भी नहीं बचेगा-
न मनुष्य
न पृथ्वी
 
इस आपदा ने जो एकांत दिया है
अपने भीतर के अंधेरे में झांकिए
और हो सके तो
वहां करुणा का दीप जलाइए।
 
 
3
 
यही भारत भाग्य विधाता हैं
 
 
 
ये जो सिर पर गठरियां लिए भागे जा रहे हैं
पांवों से नाप रहे हैं जम्बूदीप
 
जरूरी नहीं
कि तुम्हें इनके दुख का अंदाजा हो
 
जरूरी नहीं
कि तुम्हें उनकी बुद्धि का अंदाजा हो
 
जरूरी नहीं
कि तुम्हें उनके कौशल का अंदाजा हो
 
जरूरी यह भी नहीं
कि तुम्हें मालूम हो
कि वे यहाँ शहरों में क्या
 
4
मझली मामी
वे जब व्याह कर आयीं थीं
तब हम छोटे बच्चे थे
वे बेहद खूबसूरत थीं
इतनी कि
उस बचपन में
वे हमें
मैदे के लोई की तरह लगतीं
गोरी चिट्टी और मुलायम
छू दो तो मैली हो जायें
 
बाद में समझ आया कि नहीं
वे ताजे सेब की तरह थीं
छू दो
तो रस निकल आये
 
 
वे पढ़ी लिखी नहीं थीं
शहराती भी नहीं थीं
हमारी तब की दुनिया में
शहराती औरतें थीं भी नहीं
न पढ़ी लिखी औरतों से हमारा पाला पड़ा था
लेकिन अपनी देहाती धज में
वे यों चलतीं
जैसे सीधे पल्ले की साड़ी पहने चांद आ- जा रहा हो
उनके सौन्दर्य की सहजता से
हम सब अभिभूत थे
 
इसी बीच एक-एक कर
चार बच्चों को जन्म दिया
बेटे दो बेटियां दो
एक से एक सुंदर
उनके सौन्दर्य की आभा में चलता रहा
मेरे ननिहाल का जीवन
 
गो उनका खुद का जीवन जैसा बीता
उसे बहुत अच्छा
या अच्छा नहीं कह सकते
हुआ यह कि
पति अपनी असफल महत्त्वाकांक्षाओं के दाग
शराब से धोकर साफ करने लगे
इसी में
खेत बिके
मान सम्मान बिका
 
मनहूसियत ने
घर में
घर कर लिया
 
वे उन बातों के लिए ताने सुनती रहीं
जिनसे उनका वास्ता नहीं था
सब देखती रहीं
सब सुनती रहीं
सब बीतता रहा
सब बीतने दिया
 
बहुत कोशिश की कि पति सुधर जायें
शराब छोड़ दें
 
चुपके-चुपके
ओझा सोखा, झाड़ फूंक,दवा बिरो
सब करती रहीं
 
वे कोई पूजापाठी नहीं थीं
लेकिन उनके भी अपने भगवान थे
जिन से वे सुख दुख बतियातीं
कहतीं और कुछ नहीं
बस ये पहले जैसे हो जायं
 
 
लेकिन सब बेकार
जिनको पहले जैसा होना था
वे नहीं हुए पहले जैसे
पति की दुनिया अपने ढंग से चलती रही
और उस चलते हुए के साथ
घिसटता रहा उनका अपना जीवन
 
आखिर एक दिन आया
जब पति ने शराब छोड़ दी
पर बहुत देर से आया
इस बात को यों भी कह सकते हैं कि
 
पतिदेव ने दुनिया से
शराब की हस्ती मिटा देने का
जो बीड़ा उठाया था
उसे उठा लिया
बड़े बेटे ने
अब तक जो झाड़ फूंक पति के होती रही
वही होने लगी बेटे के लिए
फर्क इतना था
कि अब पति भी शामिल थे
इस अभियान में
 
लेकिन यह कोशिश भी बेकार जानी थी
गयी
 
जहरीली शराब ने
एक दिन बड़े बेटे के गोरे शरीर को
नीला और ठंडा कर दिया
 
बात यहीं पर नहीं रुकी
 
पिता और बड़े भाई के अधूरे काम को पूरा करने के लिए
छोटा बेटा सामने आया
और बहुत जल्दी
वह भी जहरीली शराब का
शिकार हुआ
इस तरह उजड़ती गयी उनकी दुनिया
और वे इस उजाड़ की गवाह बनी रहीं
 
लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी
यह बीहड़ उजाड़
उनके सौन्दर्य को नहीं उजाड़ पाया
उनके नितांत खाली हाथों
और खाली जीवन में
एक सरल मुस्कान बची हुई थी
सौन्दर्य की मद्धिम रोशनी बिखेरती
इसी से वे
सभी अभावों
सभी विपत्तियों
का
करतीं रहीं सामना
 
एक बार कभी उनसे कहा था-
जितनी सुंदर हैं आप
उतनी ही सुन्दर है आपकी मुस्कान
उनके चेहरे पर उतर आती थी एक करुण मुस्कान
एक दीर्घ नि:श्वास के साथ उनका यह वाक्य कि
भाग्य नहीं था सुंदर
स्मृति में टंक गया
 
न विपत्तियों का सिलसिला थमा
न उनका सामना करने वाली वह मुस्कान कम हुई
 
जो कुछ बाकी बचा था
उसे अब होना था
एक दिन
उनकी जुबान पर एक फुंसी निकल आयी
और देखते देखते
कैंसर में बदल गयी
इलाज शुरू हुआ
लगातार कीमों थेरपी
और रेडियो थेरपी की कष्टप्रद प्रक्रिया
 
दर्द का इलाज
इलाज का दर्द
बकौल ग़ालिब
मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की
 
इस बेइंतहा दर्द के बीच
लगातार बनी रही मुस्कराहट
न गिला न शिकवा
बस मुस्करा देना
 
बीमारी आखिरी स्टेज पर पहुंच गई थी
कहते हैं
एक रात वे चुपके से उठीं
और देर तक ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी
काजल लगाती रहीं
अपनी सुंदर आंखों को
काजल से सजाना
उन्हें बेहद पसंद था
वे आखिरी सांस तक लगाती रहीं काजल
पानी और काजल के अलावा
कोई सौन्दर्य प्रसाधन नहीं था उनके पास
और न ही जरूरत थी
 
मृत्यु तेजी से आ रही थी करीब
चेहरा काला पड़ गया था
सारे जीवन का काजल
चेहरे में उतर आया था
पहले उनके चेहरे से सुंदरता गयी
फिर वे गयीं
 
जब वे गयीं
उनके विस्तर पर
दो ही चीजें छूट गयीं थीं
एक छोटा सा कजरौटा
और एक करुण सी मुस्कान
जब वे ले जायी गयीं
अंतिम यात्रा के लिए
छोटी गंडक के किनारे
साथ साथ चली जा रही थी
वह करुण मुस्कान।
 
 
उनके मृत्युभोज के लिए
सफेद कागज पर
शोक संदेश मिला
तब जाकर मालूम हुआ
जिन्हें
हम सिर्फ मझली मामी के संबोधन से जानते आये हैं
कि उनका नाम प्रीतिबाला है।

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