आज महिला दिवस है। इस अवसर पर पढ़िए प्रसिद्ध लोक गायिका चंदन तिवारी का लिखा यह लेख-
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लोक. यह शब्द सामने आते ही जीवन का एक विराट पहलू सामने होता है. सृष्टि,प्रकृति सब समाहित हो जाता है इस एक शब्द में. सृष्टि और प्रकृति के बाद लोक के तत्वों में सबसे अहम कड़ी के रूप में जुड़ती है स्त्री. वजह भी वाजिब है. लोक के किसी पक्ष पर नजर दौड़ाएं. सभी पक्ष से ही महिलाओं का गहरा संबंध है.लोकभाषाओं से तो और गहरा संबंध है. यह तो हम सब जानते हैं कि लोकभाषाओं को स्त्रियां ही पीढ़ियों से सेती हैं, बढ़ाती रही हैं, उसे समृद्ध करती रही हैं. लोकभाषाओं के अधिकांश शब्द चूल्हा—चौका, खेत—खलिहान से आते हैं. ऐसी जगहों पर महिलाओं की ही सक्रियता होती है. इसलिए पीढ़ियों और परंपराओं से किसी भी लोकभाषा में जो गीत रचे गये हैं, उसके केंद्र में स्त्री प्रधान होती है. इसे इस तरह से भी देख सकते हैं कि दरअसल लोकगीत स्त्रियों की ही चीज हैं. गौर कीजिए, खेत—खलिहान में पुरूष भी काम करते हैं, स्त्री भी. दोनों साथ—साथ, पर स्त्रियां गीत गाते हुए काम करती हैं. रोपनी का गीत, सोहनी का गीत, कटिया का गीत. आगे गौर कीजिए. घर में शादी—विवाह होता है. चाहे बेटे की शादी हो या बेटी की, दर्जनों रस्म के गीत गाये जाते हैं लेकिन गीत स्त्रियां गाती हैं, पुरूष नहीं. ऐसे ही अनेक अवसर को मन में सोचकर देखिए, लोक के गीत स्त्रियां ही गाती रही हैं. पारंपरिक रूप से. पीढ़ियों से. लेकिन, इन तमाम बातों का एक दूसरा पक्ष भी है. जो लोकगीत पारंपरिक रहे हैं, उसमें केंद्र में स्त्री का मन है. उसके मन की आकांक्षा है. उसके अंदर का भाव है. तन और देह नहीं.
यह बहुत सामान्य तरीके से सोचनेवाली बात भी है. कोई अपना गिंजन क्योंकर कराना चाहेगा? स्त्री खुद जिस शब्द को रची हो, जिन शब्दों से वाक्यों, मुहावरों, लोकोक्तियों को गढ़ी हो, उस भाषा में, उस परंपरा में वह अपने ही देह का गिंजन करानेवाली गीत कैसे रच सकती है? इसलिए जो भी पारंपरिक लोकगीत हैं, उनमें स्त्री पक्ष पर जब आप गौर करेंगे तो महसूस होगा कि कितनी बारिक बातों पर महिलाओं ने या पुरूषों ने भी या कि समग्रता में कहें तो समाज ने स्त्री के मान—मर्याद का ध्यान रखा. पारंपरिक गीतों में स्त्री का प्रेम है, उसका सौंदर्य है, रस है, रंग है, देह भी है… सब है, पर सबकी एक रेखा है.सीमा है.स्त्री और पुरूष का दोतरफा संवाद रहा है. अगर दैहिक इच्छा—आकांक्षा भी शामिल है तो स्त्री का स्वर है उसमें. आज के गीतों की तरह स्त्री गुंगी नहीं बनती थी गीतों में कि एकतरफा गीतों के जरिये स्त्री का देह रौंदा जा रहा हो, वह या तो चुप है या फिर एकतरफा ही देह को लेकर गाना गाया जा रहा है.
जाहिर—सी बात है, जो लोग लोकसंगीत में अश्लीलता की बात करते हुए उसे लोकसंगीत का पर्याय की तरह पेश करते हैं, उन्होंने पारंपरिक गीतों की दुनिया को नहीं देखा—समझा है.स्त्री के देह की दुनिया में भटकते रहने और अलमोस्ट बलात्कार वाले गीत हालिया दशक के हैं. इसलिए आप गौर करेंगे तो पायेंगे कि जिन बड़े लोक रचनाकारों ने पारंपरिक लोकगीतों की दुनिया को समझा, उनकी रचना दुनिया में भी स्त्री ही प्रधान रही लेकिन स्त्री का मन रहा, तन नहीं. भोजपुरी की बात करें तो गुरू गोरखनाथ, कबीर से यह परंपरा शुरू होती है. गीतों की दुनिया में कबीर के गीत ज्यादा लोकप्रिय हैं. कबीर स्त्री को अलग तरीके से रखते हैं गीत में. जीवन का मर्म समझाने के लिए निरगुण गीतों को स्त्री को केंद्र में रखकर इस दुनिया का मर्म समझाते हैं. कबीर सबको स्त्री बना देते हैं, सबको कहते हैं कि यह मायका है, पिया सबका अलग है, जो ले जायेगा यहां से. कबीर से बात आगे बढ़ती है तो भिखारी ठाकुर से लेकर रसूल मियां, महेंदर मिसिर, महादेव सिंह, भोलानाथ गहमरी, विश्वनाथ सैदा, महेंदर शास्त्री जैसे गीतकार आते हैं. वे अपनी रचनाओं में स्त्री को ही केंद्रित करते हैं. स्त्री के मन की बात को इन रचनाकारों ने जिस तरह से अपनी रचनाओं में रखा, वैसा करना तो किसी स्त्री के लिए भी इतना आसान नहीं. भिखारी ठाकुर की समस्त रचनाओें में जिस तरह स्त्री स्वर उभरता है, वह असाधारण है. महेंदर मिसिर जिस तरह से स्त्री को प्रेम करने के लिए आजाद करने छटपटाहट के साथ रचना करत हैं, वह असाधारण है. विश्वनाथ सैदा आजाद लड़की की दुनिया रचते हैं, बाबू महादेव सिंह तो सोहर रचते समय स्त्री जैसा ही बन जाते हैं और गर्भवती स्त्री नौ माह किन किन पीड़ा से गुजरती है, उसका वर्णन ऐसे करते हैं, जैसे वे स्वयं गर्भवती रही हो. यह तो लोकगीतों में स्त्री का एक पक्ष है. एक दूसरा पक्ष अलग है. वह स्त्रियों द्वारा गाया जानेवाला लोकगीत. उसमें आधुनिकता के तत्व भरे पड़े हैं. उस पर बात गीतों के साथ, अगले क्रम में. महिला दिवस का माहौल है तो बस यह याद रखना है कि लोकगीत के नाम पर जो स्त्री के सिर्फ तन को केंद्र में ला रहे हैं, वे लोक के रचनाकार नहीं हो सकते, लोक के गायक नहीं हो सकते, लोक के कलाकार नहीं हो सकते, कुछ और होंगे.
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Your article made me suddenly realize that I am writing a thesis on gate.io. After reading your article, I have a different way of thinking, thank you. However, I still have some doubts, can you help me? Thanks.